पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५२९

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मधुमात सारंग HO मधुविधी ३७६८ मधुबिंबी-शा स्त्री॰ [ म० मधुविम्यो ] कुदरू । नया छत्ता बनाती हैं। शहद मे से जो मैल निकलती है, उसी को मोम कहते हैं। बहुत प्राचीन काल से प्रायः सभी मधुबोज-सज्ञा पुं० [ ] अनार । देशों में लोग शहद और मोम के लिये इनका पालन करते मधुबैनील-संज्ञा स्त्री० [स० मधु +हिं० वैन+ई (प्रत्य०) ] थाए हैं। इस संबंध मे अग्रेजी पौर हिंदी में अनेक पुस्तके मधुरभाषिणी । उ०-मधुबैनी बारिज वर वैनी । हास विलास भी प्रकाशित हैं। रास रसरैनी ।-नंद० ग्रं॰, पृ० १५८ । मधुमक्ष -ज्ञा पुं० [ म०] [त्री० म घुमक्षा ] मधुगाली किो०] । मधुव्रत-संज्ञा पु० [हिं० मधुव्रत ] भौंरा । दे० 'मधुवन' । उ० मधुमक्षिका, मधुमक्षी-मशा त्री० [सं०] शहद की मक्खो । बनी रससानी ता मधुव्रत को, लह्यो जिन कृपा मकरंद स्याम मधुमक्खी। हृदय सरोज को।-घनानंद, पृ० १५० । मधमज्जन-संज्ञा पु० [म.] अवगेट का पेड़ को । मधुमार-सज्ञा पु० [ स०] एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण मधमत-संज्ञा पु० [सं०] म समारत के अनुसार एक प्राचीन देश मे आठ मात्राएँ होती हैं और अत मे जगण होता है। का नाम जो कामोर के पास था। जैसे-प्रभु हौ सुदीन । तुम ही प्रवीन । जग मह महेश । मधुमती-संज्ञा स्त्री॰ [ स०] १. एक वर्णवृत्त जिनके प्रत्येक चरण हरिए कलेश । मे दो नगण और ए गुरु होता है। २. एक प्राचीन नदी का मधुभूमिक-संज्ञा पु० [ स०] योगी जो साधना की द्वितीय यवस्था नाम । ३. ताधिको के अनुसार एक प्रकार की नायिका मे हो (को०] । जिसकी उपासना और सिद्धि से मनुष्य जहाँ चाहे, यहाँ मधमंगल-सज्ञा पु० [स०] श्रीकृष्ण का एक सखा। उ०- प्रा जा सकता है । ४. पतंजलि के अनुसार समाधि की वह मधुमंगल ले ले फिरि नाटत ।-घनानद, पु० २४८ । अवस्था जो अभ्यास मोर वैराग्य के कारण रजः और तम के बिलकुल दूर हो जाने और सत्गुण का पूग प्रकाश होने मघुमंथ-सज्ञा पु० [ स८ मधुमन्थ ] पाहद के मिश्रण से बनाया पर प्राप्त होती है। ५. गंगा का एक नाम । ६. मधु दैत्य हुमा एक प्रकार का पेय [को॰] । की पन्या का नाम जो इक्ष्वाकु के पुत्र हर्यश्य को व्याही थी। मधुमक्खी-संज्ञा स्त्री॰ [ स० मधुमक्षिका ] एक प्रकार की प्रसिद्ध ७. पुराणानुसार नर्मदा की एक शाखा का नाम । मक्खी जो फूलो का रस चूसकर शहद एकत्र करती है । मधमत्त-वि० [सं०] १. शराब पिए हुए। पाराव के नशे मे या मुमाखी। हुप्रा । २. वसंत ऋतु के प्रभाव से मस्त या प्रानंदित (को०] । विशेष-दस हजार से पचास हजार तक मधुमक्खिया एक मधमथन-संज्ञा पुन ] विष्णु। साय एक घर बनाकर रहती हैं जिसे छत्ता कहते हैं। इस मधुमल्लि, मधमल्लिका, मधुमल्लो-संज्ञा स्त्री॰ [स०] मालती। छत्ते मे मक्खियो के लिये अलग अलग बहुन से छोटे छोटे म. मधु+मय (प्रत्य॰)] मधुयुक। भानंदप्रद । घर बने होते हैं । प्रत्येक छत्ते मे तीन प्रकार की मधुमक्खियाँ सुदर । उ०-मर तेरे मधुमा देशन मे।-हिं० का०प्र०, होती है। एक तो मादा मक्खी होती है जो 'रानी' कहलाती पृ०२४८। है। इसका काम केवल गर्भ धारण करके अंडे देना होता मधुमयता-संज्ञा स्त्री० [सं० मधुम+ता (प्रत्य॰)] पानंद । है। यह दिन में प्रायः दो हजार अडे देती है। प्रत्येक छत्ते माधुयं । मादकता। उ०-श्री लाई तुम शोना लाई, लाई में ऐसी एक ही मक्खी होती है। साधारण मक्खियो की मधुमयता ।--प्रग्नि०, पृ० २३ । अपेक्षा यह कुछ बड़ी भी होती है । दूसरी जाति- नर मक्खियों की होती है, जिनका काम गनी को गर्भ धारण कराना मधुमस्तक-ज्ञा पुं० [ ] एक प्रकार का पकवान । होता है। और तीसरे वर्ग मे न साधारण मक्खियाँ होती विशेष--यह मैदे को घी मे भूनकर प्रौर ऊपर से शहद में लपेट- हैं जो फलो का रस पी पीकर शाती हैं और उन्हे शहद या कर बनाया जाता है । वैद्यक के अनुपार यह वलकारक और भारी होता है। 'मधु के रूप मे छत्ते में जमा करती हैं। जव र म क्सया गभवारण का कार्य करा चुकती है, तब उन्हे तीउरे वर्ग की मधुमाखी-संज्ञा सी० [सं० मधुमक्षी, हिं० मधुमक्खी ] दे० 'मधु. साधारण मक्खियों मार डाली हैं। इसके अतिरिक्त उत्ता मक्खी' । उ०—मधुमाखो लो डीठि दुई दिसि अति छवि बनाने और नवजात मक्खियों के पालन पोषण का काम भी पावति । -नद०६०, पृ० ३० । इसी तीसरे वर्ग की साधारण मक्खियां करती हैं। इस प्रकार मधुमात-संज्ञा पुं० [स] एक राग जो भैरव राग का सहचर अडे देने के सिवा और समय काम इसी वर्ग की मक्खियो द्वारा माना जाता है। किया जाता है। मादा और काम करनेवाली मक्खियों का ढंक मधुमात सारंग-संज्ञा पु० [ स० मधुमातसारङ्ग ] सारंग राग का जहरीला होता है जिससे वे अपने शत्रु को मारती हैं। एक भेद जिसके गाने का समय दिन में १७ दंड से २० जब एक छत्ता बहुत भर जाता है, तब रानी मक्खी फी दंड तक मोना जाता है । यह संकर राग है और सारंग तथा याज्ञा से काम करनेवाली मक्खियाँ किसी दूसरी जगह जाकर मधुमात के योग से बनता है। म० मधुमय-सी [ 1 O