पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५३२

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म० स० मधुवात ३७७१ मधूद्यान मधुवात-संचा पुं० [ स०] वसंत की हवा । उ०-बीता रे, जो मधुसूदन-सज्ञा पुं० [स०] मघु नामक दैत्य को मारनेवाले, श्रीकृष्ण । २. भौरा। मधुवात सदश । -मिट्टी०, पृ० ११ । ] पालक का साग। मधुवामन-सज्ञा पु० [ सं० ] भौरा । उ०-मधु। मधुवत मधुर सिक मधुसूदनो-सज्ञा स्त्री॰ [ मधुवामन बग भोर ।-नदास (शब्द॰) । मधुस्कंद-सा पु० [स० मधुस्कन्द पुराणानुसार एक तीर्थ का नाम । मधुवार-संशा पु० [सं०] १. मद्य पीने का दिन । २. मद्य पीने मधुस्थान-सज्ञा पु० [ स०] मधुमक्खी का छत्ता। की रीति । शनैः शनै बार बार पीना। ३. मद्य । मदिरा । मधुठील-संज्ञा पु० [ स० मधुष्ठोल ] दे० 'मधुष्ठील' । उ०- मधुवाही-सशा पुं० [सं० मधुवाहिन् ] महाभारत के अनुसार एक माधव मधुद्रुम मधुश्रवा मधु ठील गुड फून ।-अनेकार्य, प्राचीन नद का नाम पृ० ७२० -पज्ञा स्त्री० [स० मधुस्यन्दिन ] प्राचीन काल का एक मधुविद्विट- मधुस्वंदी- --संज्ञा पु० [सं० मधुविद्वप] विष्णु । प्रकार का वाजा जिसमे तार लगा रहता था | मधुवीज-संज्ञा पु० [ ] अनार । मधुस्यंद--संज्ञा पुं० [स० मधुर न्द] विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम । मधुव्रत-संज्ञा पुं० [सं०] भौरा । मधुसव-सज्ञा पु० [सं०] जिससे मधु का नाव होता हो-१. महुए मधुशर्करा [-सञ्चा खी० [सं०] १. शहद से बनाई हुई चीनी जो का वृक्ष । २. पिंड खजूर का वृक्ष । वैद्यक के अनुसार बलकारक और वृष्य होती है । मधुस्रवार-संज्ञा पु० [स० मधुरवस् ] महुए का वृक्ष । पर्या०-माध्वी । सिता । मधुजा ! क्षौद्रजा । क्षौद्रशर्करा । मधुस्रवार २-सज्ञा श्री० [स०] १. संजीवन बूटो। २. मुलेठी । ३. २. सेम । लोविया। मूर्वा । ४. हंसपदी नाम की लता । मधुशाख-सज्ञा पुं॰ [ स०] महुए का वृक्ष । मधुस्राव-संज्ञा पुं० [सं०] महुए का वृक्ष । मधुशाला-संज्ञा स्त्री० [सं०] मदिरालय । मयखाना । उ०-वैभव मधुस्वर-संज्ञा पु० [ स० ] कोयल । की है यह मधुशाला। -लहर, पृ० ५४ । मधुहंता-संज्ञा पु० [सं० मधुहुन्न ] मधु दैत्य को मारनवाले, विष्णु । मधुशिग्रु-सज्ञा पु० [सं०] गोभाउन । सहिजन । मधुहा--संज्ञा पु० [सं० मधुहन् ] १. शहद को नष्ट करनेवाला । मधुशिता-संज्ञा स्त्री० [सं०] सेम । लोविया । २. शहद का संग्रह करनेवाला । शहद निकालनेवाला । उ०-माखिन आखिन धूरि पूरि मधुहा मधु जैसे ।-नंद मधुशिष्ट-संञ्चा पु० [ स०] मोम | म०, पृ० २१० । ३. एक शिकारी पक्षी । ४. विगु (को॰) । मधुशेष-सज्ञा पु० [सं०] मोम । मधुहेतु-संज्ञा पु॰ [सं० ] कामदेव । मधुश्रम-संज्ञा पुं॰ [ सं० मधुनवा ] संजीवन मूरि । संजीवनी बूटी। (नंददास)। मधूक-मंज्ञा पु० [ म०] १. महुए का पेड़ । उ०-जो प्राप्ति हो फून तथा फलो की. मधूक चिंता न करो दलो की ।-साकेव, मधुश्रवा-संज्ञा पु० [सं० मधुश्रवस् ] महुअा । मबूक । उ०-~-माधव, पृ० २८६ । २. महुए का फूल । उ०-पहिराई नल के गले - मधुद्रुम, मधुश्रवा; मधुष्टीव, गुफूल । -नद ग्रं०, पृ० १०२ । नव मधूक की माल ।-गुमान (शब्द॰) । ३. मुलेठी । मधुश्री-संज्ञा स्त्री॰ [स] वसत की शोभा । बसत का सौदर्य (को० । भौरा (को०)। मधुश्रेणी-संञ्चा स्त्री॰ [स० ] मूर्वा । मधूकपर्ण-सज्ञा स्त्री० [ ] अमड़ा। मधुश्वासा-संञ्चा श्री० [स०] जीवंती नामक वृक्ष । मधूकरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'मधुकरी' । मधुष्ठील-सज्ञा पु० [सं०] महुए का वृक्ष । मधूकशर्करा-संज्ञा स्रो॰ [ स० ] महुए के फल या फूल से निकाली मधुसंभव-संज्ञा पु० [सं० मधुसम्भव ] १. मोम । २. दाख । हुई चीनी। मधुसख-संज्ञा पुं॰ [सं०] कामदेव । मधूख-संज्ञा पुं॰ [सं० मधूक ] दे० 'मधूक' । मधुसहाय-संज्ञा पुं० [सं० ] कामदेव । मधूच्छिष्ट-सहा पु० [स०] मोम । मधुसारथि-सज्ञा पु० [सं०] कामदेव । मधूछेदन--संज्ञा पु० सं० मयु+छेदन ] विष्णु । ३०-मधूछेदनं पाय पावेस कारी।-पृ० रा०, ११२५६ । मधुसिक्थक-संक्षा पु० [सं०] १. मोम । २. एक प्रकार का स्थावर विष। मधूत्थ-संज्ञा पुं० [ त०] मोम | मधुसुक्त-सग पुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का रस मधूत्थित-संश पु० [सं०] मोम । जो पिप्पलीमूल को एक बर्तन मे बंद करके तीन दिन तक मधूत्पन्ना-संज्ञा स्त्री० [स०] शहद से बनाई हुई चीनी । धूप में रखने से तैयार होता है। मधूत्सव-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १. वसंतोत्सव । २. चैत्र की पूर्णिमा । मधुसुहृद्-संज्ञा पुं० [ स०] कामदेव । मधूद्यान-संज्ञा पु० [सं०] वसंती वाग | वसंतोद्यान [को०] । स०