पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५३५

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मध्यममा ३७७४ मध्यच मध्यसूत्र-मंना . [ मं०] १. 'मध्यरेखा' । मध्वरिष्ट-संज्ञा पुं॰ [सं०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का अरिष्ट मध्यस्थ-संज्ञा पु० [2] १, दो वादियों के भगढे को निपटानेवाला। जो संग्रहणी रोग में उरकारी माना जाता है । दबोच में पड़कर विवाद को मिटानेवाला। २.जो दोनों पक्षों मध्वल-संज्ञा पुं॰ [सं०] बार बार और बहुत शराब पीना। में किमी पक्ष में न हो। उसमीन । तटस्थ । उ०- मध्वला-संज्ञा तो० [सं०] १. मद पीने का पात्र ! चष। शत्रु 'मय मध्यम तीन ये मन : न्हे बरियाई -तुलसी प्याली । २. पान के समय का कलह (को०] । (गन्द०)। ३. वह जो अपनी हानि न करता हुपा दूसरों का उपचार करता हो । ४. शिव का एक नाम (को॰) । मध्वाचारज-संज्ञा पु० [सं० मध्वाचार्य ] दे॰ मनाचार्य' । उ.-मध्वाचार मेघ भक्ति सर असर भरिया ।-भक्तमाल मध्यस्थता-संगको [२०] मध्यस्थ होने का भाव या धर्म । ( श्री.), पृ० ३७६ । मात्यल गु० [ म०] १. पमा । २. बीच का भाग [को०] । मध्वाचारी-गंज्ञा पुं॰ [ मं० मध्वाचार्य ] वह वैष्णव जो मध्वा- मध्या-- संवा बी० [म०] १. काव्यशास्त्रानुसार वह नायिका चार्य के मत को मानता हो । २०-२ध्वाचारी होइ तो तुं जिम्मे ला पोर नाम समान हो। २. एक वर्णवृत्त जिसके मधुर मन को निचारि, मधुर मधुर धुनि हृदै मा गाइए - चरण में तीन डाक्षर होते हैं। इसके पाठ भेद हैं। ३. बीच की सुदर० ग्र०, भा० २, पृ० ६१२ । गडी । ४. वह लड़की जो रजस्वला हो चुकी हो (को॰) । मध्यान-:: पु० [सं० मध्याह्न ] दे॰ 'माह। -चित्रंग मध्वाचार्य-संज्ञा पुं० [सं० मध्वाचार्य ] दक्षिण भारत के एक प्रसिद्ध वैष्णन प्राचार्य और मात्र या 'माध्वाचारि' बीर पंनो परत, चढयो भान मधान नाम |--पृ० नामक संप्रदाय के प्रवर्तक जो वारहरी शताब्दी में हुए रा, २४/१४६। यौ---मन्यानोपरांत = दोपहर के विशेष-ये वायु के अवतार माने जाते थे । पहले इनका नाम बाद। मध्य न परात से पुर: मेले का प्रारंभ हुप्रा ।--प्रेमघन॰, वासुदेवाचार्य था। इन्होंने प्रच्युत प्रेक्षाचार्य या श्रद्धानंद भा०२, पृ० ११०। नामक एक महात्मा से दीक्षा ली थी और दीक्षा लेते ही मध्यान्ह-संश पु० [ म० मब्याह ] दे० मध्याह्न' । विरक्त हो गए थे। कहते हैं, ये अपना 'गीताभाष्य' तैयार करके बदरिकाश्रम गए पौर वहाँ इन्होंने उसे वासुदेव मध्यारिक-राग सी० [स०] एक प्रकार की लता। को अर्पण किया था। वासुदेव से इन्हें तीन शालिग्राम मिले मध्याहारिणी-संशा ही० [स०] ललितविस्तर के अनुसार ६४ थे जो इन्होने तीन भिन्न भिन्न मठों में स्थापित किए थे। प्रकार को लिपियो में से एक प्रकार की लिपि । इन्होंने बहुत से ग्रंथ रचे घोर अनेक भाष्य लिखे थे। मध्याह-ज्ञा पु० [सं०] दिन का मध्य भाग। ठीक- दोपहर इनके सिद्धांत के अनुसार सबसे पहले केवल नारायण थे; गनमग। और उन्ही से समस्त जगत् और देवतानों की उत्पत्ति हुई। यो०-मध्याहमाल = दोपहर । मध्याह्नकृत्य, मध्याहक्रिया- ये जीव और ईपवर दोनों को पृथक् पृयक सना पानते थे । दोपहर को किए जानेवाले विहित कम। मध्याह्न भोजन = इनके दर्शन का नाम 'पूर्णप्रज्ञ दर्शन' है और इनके अनुयायो दोहरदा बाना । प्रधान या मुख्य भोजन | मध्याह्नवेला, मध्वाचारी या मान कहलाते हैं। मध्याहरूमय% महकाल । मध्याह्नपंध्या = सब्स जो मध्वाधार- ज्ञा पुं० [सं० ] मधुमक्खी का छत्ता । दोपहर में दी जाय । मध्याहस्नान = दोपहर का स्नान । मध्वालु-संज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार के पौधे की जड़ । मध्याहोत्तर -ज्ञा पु० [म० ] नीसरा पहर (दिन का )। दोपहर के गदा समय। विशेष-यह स्वाद मे मीठी होती है और खाई जाती है वैद्यक मध्ये-कि- वि० [सं० मध्य ] बाबत । वारे में | संबंध में । मद्धे । में इसे भारी, शीतल, रक्तपित्तनाशक और वीर्यवर्धक माना है । निगमधे। मध्वालुक-मशा पुं० [ म०] दे० 'मध्वालु' [को०] । मध्येज्योतिः -नना ली [स०] पान पाद का एक वैदिक छंद मध्वावास-संज्ञा पु० [सं०] ग्राम का पेड । मिलके पहले और दूसरे चरण में पाठ पाठ वर्ण तथा तीसरे मध्वाशी-वि० [स० मध्वाशिन् ] मधु या मीठा खानेवाला [को॰] । पुनः चौये और पांचवें में आठ वर्ण होते हैं। मध्वासव-ज्ञा पुं॰ [ पुं० ] महुए की शराब या मधु की मदिरा । मध्येपृष्ठ-किन मध्येपृष्टम् ] पीठ पीछे। माच्चीक। मध्वर-संज्ञा पु० [हिं० ] दे॰ 'मधु'। मध्यासवनिक -संज्ञा पुं० [सं०] पाराब बनाकर बेचनेवाला। मध्व'--शा पु० [ 10 ] दे० 'मनाचार्य। कलाल | कलवार। यो०-मध्यमत = मध्वाचाय का गत वा सिद्धात । मध्वास्वाद-वि० [स०] मधु के स्वादवाला फो०] । संप्रदाय = मनाचार्य द्वाग प्रवर्तित वैष्णव संप्रदाय ! मध्विजा-संडा श्री० [सं०] मदिरा । मद्य । शराव । मध्वक-संज्ञा पुं० [सं०] महद को नक्सी। मवृच-संशा स्त्री० [सं०] वेद की ऋचा । ग्यारह, गैर O मध्य-