पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५५

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कसना। फासफूस ३५६४ देर तक २१२ मात्रा की गरमी से कुछ कम गरमी में रखने फिकई --संज्ञा स्त्री॰ [देश० ] चेने की तरह का एक मोटा अन्न जो से यह लाल फासफरस के रूप मे हो जाता है। तब यह बुदेलखंड में होता है। इतना ज्वलनशील और विषैला नही रह जाता और हाथ फिकना-क्रि० स० [हिं० ] फेंका जाना । दे० 'फेंकना' । उ०- मे अच्छी तरह लिया जा सकता है। मातापो के हाथो पथ में शिशुग्रो फो फिकते देखो। हस०, पृ० ३३ । फासफूस-सझ पुं० [हिं० फास+फूस ] घास फूस । तुच्छ वस्तु । उ०-नाम विना सब संचय झूठा फासफूस हो जाय फिकर-सशा रसी० [अ० फ़िक ] दे० 'फिक' । रे।-राम० धर्म०, पृ० २१६ । फिकरा-सझा पु० [अ० फिकरह ] १. शब्दों का सार्थक समूह । फासला- ज्ञा पुं० [अ० फासलह ] दूरी। तर । वाक्य । जुमला । २. झामापट्टी । दमयुत्ता । यौ०-फिकरेबाज । फासिज्म-संज्ञा पुं० [ इता० फास+4 इज्म ] फासीवाद । अधि- नायक तय । इटली की फासिस्ट पार्टी का मूल दर्शन वा मुहा०-फिकरा चलाना = धोखा देने के लिये कोई बात बनाकर सिद्धात । कहना । जैसे,-प्राप भी बैठे बैठे फिकरा चलाया करते हैं। फिकरा चलना = धोखा देने के लिये कही हुई बात का अभीष्ट फासिस्ट-वि० [अं०] अधिनायक तत्र को माननेवाला या अनुयायी। फल होना । जैसे,—अगर प्रापका फिकरा चल गया तो फासिटीवाद-सशा पु० [अ० फासिटी+सं० वाद ] फासिज्म । रुपए मिल ही जायेंगे । फिकरा देना या बताना = झॉमा देना। अधिनायकवाद । दम वुत्ता देना । फिकरा बनाना या तराशना = धोखा के फासिद-वि० [ प्र० फ़ासिद ] फसादी । खोटा । वुरा । लिये कोई बात गढ़कर नहना । फिकरे सुनाना, ढालना या फासिल-वि० [अ० फासिल ] अंतर डालनेवाला । पृथक् या कहना = व्यंगपूर्ण बात कहना । योलो बोलना । भावाज अलग करनेवाला। फासिला-सज्ञा पु० [अ० फ़ासलह ] : 'फासला'। फिकरेवाज-सज्ञा पुं० [अ० फ़िकरह +फा० बाज़ ] वह जो लोगो फास्ट-वि० [अ० फ़ास्ट ] १. तेज । २. शीघ्र चलनेवाला। शीघ्र., को धोखा देने के लिये बातें गढ़ गढ कर कहता हो। झांसा. गामी । वेगवान् । जैसे, फास्ट पैसिंजर । पट्टी देनेवाला। विशेप-जब घडी की चाल बहुत तेज होती है, तब उसे फास्ट फिकरेवाजी-संग स्त्री० [अ० फ़िकरह +फ़ा. बाजी ] धोखा देने कहते हैं। के लिये तरह तरह की बातें कहना । झांसापट्टी देना। दमबाजी। उ०-कांग्रेस प्रदर्शनी को सैर भी साथ ही हुई फाहशा-वि० [प्र. फाहशह ] छिनाल । पुश्चली । ३०-फाहशा और पग पग पर फिकरेवाजियां रही।-प्रेम और गोर्की, का पति कहलाने से यो गम खाना ही क्या बेहतर नहीं।- पृ०८। भस्मात०, पृ०४० । फिकवाना-क्रि० स० [हिं० ] दे० 'फिकवाना' । फाहा-सज्ञा पु० [ स० फाल (= रूई का) वा सं० पोत ( (= कपड़ा), प्रा० पोय, हि. फोया ] १. तेल, घी, इन मादि चिकनाई फिकार-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] चेने की तरह एक मोटा अन्न । फिकई । में तर की हुई कपड़े की पट्टी वा रुई का लच्छा । फाया। फिकाह-संज्ञा पुं०.[ म० फिकाह ] इस्लाम का धर्मशास्त्र । साया । २. मरहम से तर पट्टी जो घाव, फोड़े आदि पर फिकिर-संज्ञा स्त्री० [अ० फिक ] दे० 'फिक' । रखी जाती है। फिकैत-तंज्ञा पु० [हिं० फेंकना + ऐत (प्रत्य॰)] वह जो फरी- फाहिशा-वि० [अ० फाहिशह छिनाल । पुश्चली। गदका या पटाबनेठो चलाता हो। फिंगक-सज्ञा पुं० [सं० फिङ्गक ] फिंगा नामक पक्षी। यौ०-फिकैतबाज=फिकैती का काम जाननेवाला । फिंगा-संज्ञा पु० [ स० फिङ्गक ] एक प्रकार का पक्षी जिसके पर भूरे, फिकैतो-सज्ञा स्त्री० [हिं० फिकैत + ई (प्रत्य॰)] पटाबनेठी चोंच पीला मोर पजे लाल होते हैं। फेंगा। चलाने का काम या विद्या । विशेष-यह सिंघ से अासाम तक ऐसे बड़े बड़े मैदानो मे जहाँ फिक-मशा स्त्री० [अ० फिक्र ] १. चिता। सोच । खटका । दुख- हरी घास अधिकता से होती है, छोटे छोटे झंडो में पाया पूर्ण ध्यान । उदास करनेवाली भावना । क्रि० प्र०-फरना।-होना । जाता है । इसके झुड में से जहाँ एक पक्षी उडता है, वहाँ बाकी सब भी उसी का अनुकरण करते हैं। इसकी लंबाई २. ध्यान । विचार । चित्त अस्थिर करनेवाली भावना । जैसे,- प्रायः डेढ़ बालिप्त होती है और यह वर्षा ऋतु मे तीन अंडे काम के प्रागे उसे खाने पीने की भी फिक्र नहीं रहती। मुहा०-फिक्र लगना - ऐसा ध्यान बना रहना कि चित्त अस्थिर रहे । ख्याल या खटका वना रहना। फिकरना-क्रि० प्र० [हिं० ] दे० 'फैकरना' । ३. उपाय की उद्भावना । उपाय का विचार । यत्न । तदबीर । फिकवाना-क्रि० स० [हिं० फेंकना का प्रेर० रूप ] फेंकने का जैसे,—अब तुम अपनी फिक्र करो, हम तुम्हारी मदद नहीं काम कराना । फेंकने के लिये प्रेरित करना । कर सकते। देता है।