पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५६

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फिक्रमंद ३२६५ किटाना फिक्रमंद-वि० [अ० फिक्र+फा० मद ] चिंताग्रस्त । ग्राफ अलुमीनियम के मिलकर पानी में जमने से बनता है । फिगार-वि॰ [ फा० फ़िगार ] घायल । जैसे, दिलफिगार, सीना- विशेप-यह स्वच्छ दशा में स्फटिक के समान श्वेत होता है, फिगार । उ०-हरजा विहिश्त बाग में देखो तो नौ बहार । इसो से इसे स्फटिका या फिटकिरी कहते हैं । मैल के योग से और जा बजा में बैठे हैं सदहा जो दिल फिगार ।-कबीर फिटकिरी लाल, पीली और काली भी होती है। यह पानी मं०, पृ० २२३॥ में घुल जाती है और इसका स्वाद मिठाई लिए हुए बहुत ही फिचकुर-संज्ञा पुं० [सं० पिछ (= लार)] फेन जो मूर्छा या बेहोशी । कसैला होता है। हिंदुस्तान मे निहार, सिंध, कच्छ और पाने पर मुह निकलता है। पंजाब में फिटकिरी पाई जाती है। सिंधु नदी के किनारे क्रि० प्र०-निकलना ।-बहना । 'कालाबाग' और दिल्ली घाटी के पास 'कोटकिल' फिटकिरी फिजूलखर्ची-वि० [अ० फुजूल+फा० खची ] दे० 'फजूलखर्ची' । निकलने के प्रसिद्ध स्थान हैं । फिटकिरी मिट्टी के साथ मिली उ.-परोपकार की इच्छा ही अत्यंत उपकारी है परंतु हद्द रहती है । मिट्टी को लाकर छिछले हौजों में विछा देते हैं और से पागे बढ़ने पर वह भी फिजूलखर्ची समझी जायगी।- ऊपर से पानी डाल देते हैं । 'प्रलमीनियम सलफेट' पानी में श्रीनिवास पं०, पृ० १८९। घुलकर नीचे बैठ जाता है जिसे फिटकिरी का वीज कहते हैं। इस बीज (प्रलुमीनम सलफेट) को गरम पानी में घोलकर ६ फिट'-प्रव्य० [अनु०] षिक् । छी । थुड़ी ( धिक्कारने का शब्द ) । भाग 'सलफेट प्राफ पोठाश' मिला देते हैं। फिर दोनों को यौ०-फिट फिट-धिक्कार है, धिक्कार । थुड़ी है। छी छी। माग पर गरम करके गाढ़ा करते हैं। पांच छह, दिन में लानत है। फिटकिरी जम जाती है। फिट- वि० [० फिट] १. उपयुक्त । ठीक । २. जिस फल पुरजे फिटकिरी का व्यवहार बहुत कामों में होता है । कसाव के कारण प्रादि ठीक हों। जैसे—यह मशीन बिलकुल फिट है। इसमें संकोचन का गुण बहुत अधिक है। शरीर में पड़ते ही मुहा०—फिट करना = मशीन के पुरजे आदि यथास्थान बैठाकर यह ततुप्रों और रक्त की नलियों को सिकोड़ देती है जिससे उसे चलने के योग्य बनाना । रक्तस्राव धादि कम या बंद हो जाता है। फिटकिरी के पानी ३. जो अपने स्थान पर ठीक बैठता हो । जैसे,—(क) यह कोट से धोने से पाई हुई पाँख भी अच्छी होती है। वैद्यक में बिलकुल फिट है। (ख) यह आलमारी यहाँ बिलकुल फिटकिरी गरम, कसैली, झिल्लियों को संकुचित करनेवाली फिट है। तथा वात, पित्त, कफ, व्रण और कुष्ठ को दूर करनेवाली फिट-संशा पु० मिरगी आदि रोगों का वह दौरा जिसमें आदमी मानी जाती हैं । प्रदर, मूत्रकृच्छ्र, वमन, शोथ, निदोष और वेहोश हो जाता है और उसके मुंह से झाग आदि निकलने प्रमेह में गी वैध इसे देते हैं। फपडे की रंगाई में तो यह बड़े लगती है। ही काम की चीज है। इससे कपड़े पर रंग पच्छी तरह चढ मुहा॰—फिट पाना = मिरगी का दौरा होना । बेहोशी पाना । जाता है। इसीसे कपड़े को रेंगने के पहले फिटकिरी के पानी फिट का रोग = मिरगी या मूर्खा का रोग । में बोर देते हैं जिसे जमीन या अस्तर देना कहते हैं। रंगने फिटकारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'फिटकिरी' । के पीछे भी कभी कमी रंग निखारने और वराबर करने के फिटकार-संज्ञा पुं० [हिं० फिट + कार ] १. धिक्कार । लानत । लिये कपड़े फिटकिरी के पानी में बोरे जाते हैं। 3०-काफिरों को सदा फिटकार मुबारक होए।-गारतेंदु फिटकी'-संज्ञा स्त्री० [ अनु० ] १. छोटा। २. सून के छोटे छोटे ग्रं, भा० १, पृ० ५४२ । फुचरे जो कपड़े की बुनावट में निकले रहते हैं। क्रि० प्र०-खाना ।—देना । फिटकी-सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'फिटकिरी'। मुहा०-मुंह पर फिटकार बरसना = फिट्टा मुंह होना । चेहरा फिटन-संशा श्री॰ [अं० ] चार पहिए की एक प्रकार की खुनी फीका या उतरा हुमा होना। मुख मलिन होना। मुख वी गाड़ी जिसे एक या दो घोड़े खींचते हैं। कांति न रहना । श्रीहत होना । २. पााप । कोसना । बददुपा । फिटरा-वि० [अ० फितरह (= धूर्त)] फितरा । फितरती। उ०- जो फिटरे ! ते मोकों अवताई क्यो न जनाई।-दो सौ मुहा०--फिटकार लगना = शाप लगना । शाप ठीक उतरना । घावन, भा० १, पृ० १३६ । ३. हलको मिलावट । बास । भावना । जैसे,—इसमें केवड़े की फिटकार है। फिटसन-सका पु० [ देश ] कठसेमल नाम का छोटा वृक्ष जिसकी फिटकारना-क्रि० स० [हिं० फिटफार + ना (प्रत्य॰)] १. शाप पत्तियां चारे के काम में पाती है। वि० दे० 'कठसेमल'। देना । कोसना । २. दे० 'फटकारना' । फिटानाg+-क्रि० स० [हिं०] हटाना । भगाना । उ०-नैक न फिटकिरी-संशा स्त्री॰ [सं० स्फटिका, स्फटिकारि, फाटकी ] एक उसास लेत फौज में फिटाइ देत, पेत नहिं छाई मारि करे मिश्र खनिज पदार्थ जो सलफेट आफ पोटाश और सलफेटा चकचूर है ।-सुदर ग्रं०, मा० २, पृ० ४८६ ।