पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/६४

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फुटकार मरन। ३३०३ फुनिंद क्रि०प्र०-पडना। फुड़िया-संज्ञा स्त्री० [हिं० फोड़ा का अल्पा० ] छोटा फोड़ा या २. धान, मक्के, ज्वार प्रादि का लावा। फुसी। उ०--जस बालक फुड़िया दुख माई। माता चहै फुटकार-संज्ञा पुं॰ [देश॰] वह पड़ाह जिसमे गन्ने का रस पकता है । नीक होइ जाई।-घट०, पृ० २४० । फुटको-संज्ञा सी० [सं० पुटक ] १. किसी वस्तु के छोटे लच्छे, या फुतकार-भशा पु० [सं० फुस्कार ] दे० 'फूत्कार'। 6०-जिन जमे हुए फरण जो पानी, दुध मादि में अलग अलग दिखाई फन फुतकार उड़त पहार भारे ।-भूषण प्र०, पृ०६७ । पड़ते हैं। बहुत छोटी छोटी अंठी। जैसे,—(क) दूध फट फुतूर-संशा पु० [प० फुतूर ] दे० फतूर' । गया है, उसमें फुटकियां सी दिखाई पड़ती हैं । (ख) घुले हुए फुतूरिया, फुतूरी-वि० [हिं० ] दे० 'फतूरिया' । वेसन को फुटकियाँ । २. खून, पीव आदि का छीटा जो किसी फुत्कर-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] अग्नि [को०] । वातु (जैसे मल, थूक आदि ) में दिखाई दे। ३. एक प्रकार फुत्कार-संघा पुं० [सं०] दे० 'फूत्कार' को०] । की छोटी चिड़िया । फुदको। फुत्कृत'—वि० [सं०] १. फूका हुमा । २. चिल्लाया हुमा [को०] । फुटना - वि० [हिं०] जो फूट जाय। भग्न होनेवाला । फूटा हुघा । फुत्कृत-संशा पुं० १. फूकचे से बबनेवाले बाजे की ध्वनि । २. चीत्कार । ३. दे० फूरकृति' [को॰] । फुटना@-कि० म० दे० 'फूटना'-१ । उ०—यह सन काचा कुंभ है लिये फिरे घा साथ | ठपका लागा फुटि गया फछु न पाया फुत्कृति-संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'फूरकृति' [को॰] । हाय ।-कबीर (शब्द०)। फुदंग-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] नेपाल के लिंबू जाति में प्रचलित एक वैवाहिक प्रधा। फुटनोट-संज्ञा स्त्री० [५० फुटनोट ] वह टिप्पणी जो किसी लेख या पुस्तक के पृष्ठ मे नीचे की ओर दी जाती है। विशेष-जहाँ वर वधू में कोई पूर्व परिचय नहीं होता वहाँ वर पादटिप्पणी। अपने किसी निकट सबंधी द्वारा वधू के पिता पास एक मारा फुटपाथ-संज्ञा पुं० [अ० फुटपाय ] १. शहरों में सड़क की परी हुमा सूघर भेजता है। इस प्रथा को लिंबू लोग 'फुदग' कहते हैं। पर फा वह मार्ग जिसपर मनुष्य पैदल चलते हैं। २. पगडंडी। फदकना-क्रि०अ० [अनु०] १. उछल उछलकर कूदना । उछलना । फुटवाल-संशा पुं० [अ०] १. चमड़े का बना हा बड़ा गेंद २. हपं से फूल जाना । उमंग मे पाना । फूले न समाना। जिसके अंदर रबर की थैली में हवा भरी जाती है पौर जिसे फुदकी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फुदकना ] एक छोटी चिड़िया जो उछल पर की ठोकर से उछालकर सेलते हैं। उछल फर कूदती हुई चलती है। फुटमता-संघा पुं० [हिं० फूट+सं० मत ] मतभेद । विरोध । फुनंग-मंज्ञा स्त्री० [ स० पुलक ] वृक्ष वा शाखा का अग्रभाग वा फुटानी-संग मनी [हिं० फुट+पानी (प्रत्य०) या देश० ] चुपने या भकुर । जैसे,—अगर कोई दरस्त की फुनंग पर जा चढ़े तो भी काल नही छोड़ता। लगवेवाली बात । व्यंग्यात्मक बड़ी चढ़ी या बेलगाम पात । उ०-बीच में फुटानी छठफर सब गड़बड़ा दिया ।-मला०, फुन-प्रव्य० [सं० पुम.] फिर । पुनः । पृ० २६३ । फुनकारी-संज्ञा पुं० [सं० फुत्कार ] दे० 'फुकार'। फुटेरा-वि० [हिं० फूटना + ऐरा (प्रत्य॰)] प्रभागा। फूटे भाग्य फुनग-संवा पु० [सं० पन्नग. प्रा० पएणग] शेषनाग । उ०- का । फुटल। उ०-स्वारथ सब इंद्रिय समूह पर विरहा मोहे इंद्र फुनग फुनि मोहे, मुनि मोहे तेरी करत सेवा ।- घोर धरत । सूरदास घर घर की फुटेरी कैसे धीर धरत ।- दादू० बानी, पृ० ५०८ । सूर (शब्द०)। फुनगी-संज्ञा स्त्री० [सं० पुलक या देश०] वृक्ष और वृक्ष की शाखायों फुटेहरा-संज्ञा पुं० [हिं० फूटना + हरा (= फल) ] १. मटर या का अप्रभाग। फुनंग । अकुर । उ०—वह अपनी ऊंची फुनगियों पने फा दाना जो भूनने से ऐसा खिल गया हो कि छिलका को वायु के झोंके से न हिलने दें पोर न पत्तों की खड़खड़ा- फट गया हो। २. चने का भुना हुपा पर्वन । हट फा शब्द होने दें।-भारतेंदु ग्रं०, भा० १, पृ० ६२५ । फुटैल-वि० [हिं० फुट +ऐल (प्रत्य०) ] दे० 'फुल' । फुनना-संशा पुं० [हिं० ] दे० 'फुदना'। फुट-वि० [हिं०] दे० 'फुट'। फुनसली-संग्ना नी० [हिं० फुन्सी ] छोटी फुसी। उ०-सुदर फटक-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का वस्त्र [को०] । कबहूँ फुनसली कहूँ फोरा होइ । ऐसी याही देह मैं क्यों फुट्टिका-संघा नी० [सं०] एक प्रकार का बुमा हुमा वस्त्र [को०] । सुख पावै कोइ ।-सुपर पं०, भा॰ २, पृ० ७२२ । फट्टेल'-वि० [सं० स्फुट, पा० फुट +ऐल (प्रत्य॰)] १. झुड या फुनिंग-संक्षा पुं० [सं० पन्नग ] नाग । सर्प। उ०—ज्यू फुनिंग समूह से अलग । अफेला रहनेवाला। जिसका जोड़ा न हो। चदनि रहै, परिमल रहै लुभाए रे । त्यूँ मन मेरा राम सों जो जोड़े से अलग हो । (विशेषतः जानवरों के लिये)। अबकी वेर अघाए रे ।-दादू० बानी, पृ० ६८१ । फु?ल'-वि० [हिं० फूटना ] फूटे भाग्य का । प्रभागा । फुनिंदल संज्ञा पुं० [सं० फणीन्द्र ] दे० 'फणीद्र' । उ०-अग्गेव