पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/६७

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फुलका ३३०६ फुलाना' फुलका-सज्ञा पुं० [हिं० फूलना ] १. फफोला । छाला। उ.- वेल बूटे बुने या कढ़े होते हैं। उ०-स्त्रीजन पहनी छोटे, तब तिय कर फुलका करि प्रायो। कछु दिन मे ताते सुत फुलवर साटन । -ग्राम्या, पृ० ३६ । जायो ।-रघुराज ( शब्द० ) । २. [ स्त्री० फुलकी ] हलकी फुलवाईल. 3-सज्ञा स्त्री० [स० पुष्पवाटी] दे० 'फुलवाड़ी' । उ०-(क) और पतली रोटियाँ। चपाती। ३. एक छोटा कड़ाह जो एक सखी सिय सग बिहाई । गई रही देखन फुलवाई।- चीनी के कारखाने में काम आता है। तुलसी (शब्द० ) । (ख) एक दिन शुक्रसुता मन पाई । देखों फुलकारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फूल + कारी (प्रत्य० ) ] १. एक जाय फूल फुलवाई।—सूर (शब्द०)। प्रकार का कपड़ा जिसमें मामूली मलमल प्रादि पर रंगीन फुलवा घास-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का तृण । दे० 'फुलनी' । रेशम से बूटियां आदि काढो हुई होती हैं । १०-मरना तो फलवाड़ी-सशा स्त्री० [सं० पुष्पचाटी ] दे॰ 'फुलवारी' । उ०-इस था ही, दस रोज पहले ही मरती। नसीबन सुहागन तो फुलवाड़ी के दक्खिन और क्या पालाप सा सुनाई देता है ।- मरती। पर्थी पर फुलकारी पड जाती।-अभिशप्त, पृ० शकुतला, पृ०१३ । १०१ । २ कसीदाकारी । गुलकारी । फुलचुहो-संज्ञा मी० [हिं० फूल + चूसना ] नीलापन लिए काले फुलवार-वि० [ स० फुलल ] प्रफुल्ल । प्रसन्न । उ०—जानई जरन भागि जल परा। होइ फुनवार रहस हिय भरा ।- रग की एक चमकती चिड़िया जो फूलों पर उडती फिरती है । जायसी (शब्द०)। इसकी चोंच पतली और कुछ लबी होती है जिससे वह फूलों फुलवारो. - सज्ञा स्त्री॰ [ सं० पुष्प चा फुल्ल, हिं० फूल + सं० वाटी, फा रस चूसती है। फुलसुधी। उ०-रायमुनी तुम पौरत- हिं० वारी ] १. पुष्पवाटिका। उद्यान । बगीचा । उ०- मुही। अलिमुख लागि भई फुलचुही।-जायसी (शब्द०)। (क) प्रापुहि मूल फूल फुलवारी आपुहि चुनि चुनि खाई । कह फुलमड़ी -संज्ञा स्त्री० [हिं० फूल + झड़ना] १. एक प्रकार की कवीर तेई जन उबरे जेहि गुरु लियो जगाई ।-कबीर यातश याजी जिससे फूल की मी चिनगारियां निकलती हैं । (णब्द०)। (ख) पुनि फुनवारि लागि चहुँ पासा । वृक्ष वेधि उ०-हँसी तेरी पियारे फुलझड़ी है । यही गुचा के दिल में चदन भइ बासा । —जायसी (शब्द॰) । २. कागज के बने गुलझड़ी है।-कविता को०, भा० ४, पृ० २० । हुए फूल और वृक्षादि जो ठाट पर लगाकर विवाह में वरात क्रि० प्र०-छोड़ना। के साथ निकाले जाते हैं। २. कही हुई ऐसी वात जिसमें कुछ प्रादमियों में झगडा, विवाद फुलवारी-संज्ञा पुं० [ देष्टा० ] एक प्रकार का घोड़ा। उ०-हरे या और कोई उपद्रव हो जाय | आग लगानेवाली बात । हरदिया इस सिंग गर्ग फुनवारो। सुजान०, पृ० ८ । क्रि० प्र०--छूटना।-छोड़ना । फुलसरा--संज्ञा पुं० [हिं० फूल+सार ] काले रंग की एक चिड़िया फुलझरी -संशा स्त्री० [हिं० ] दे० 'फुलझड़ी। उ०—विहंसी जिसके सिर पर सफेद छोटे होते हैं। शशि वरई जनु फरी। कैघों रेन छुट फुलझरी । —जायसी फुलसुधी-संज्ञा स्री० [हिं० फूल + सूघना ] एक चिडिया । (शब्द०)। फुलचुही। फुलडास@-सज्ञा पुं० [हिं० फूल + डास ] फूल का विछौना । फुलसुँघो-ज्ञा स्त्री॰ [ हिं० फूल +सूंघना ] दे० 'फुलसुघो' । उ०-भा निरमर सव धरनि पकासू । सेज संवारि कीन्ह फुलहारा-शा पुं० [हिं. फूल +हारा ] [सी० फुल हारी ] फुलडासू । —जायसी ग्रं० ( गुप्त), पृ० ३५० । माली । उ०-लैके फूल बैठे फुलहारी। पान अपूरब घरे संवारी।-जायसी (पाब्द०)। फुलनी-सज्ञा स्त्री० [हिं० फूलना ] एक बारहमासी घास जो प्रायः ऊसर भूमि में होती है। फुलांग-संज्ञा पु० [हिं० फूल + अंग] एक प्रकार की भाग । फुलफुल, फलफुला-वि० [हिं० फूलना ] फूला हुआ जैसा । फुलाई-संज्ञा स्त्री० [ हिं• फूल ना ] १. दे० 'सरफुनाई' । २. खुखंडी ३. एक प्रकार का बबूल.। फुलाह । फुलवारीg+-संज्ञा स्त्री० [हि० फूल + वारी<सं० वाटिका, वाटी] दे० 'फुलवारी'। उ०-मोहित होत मनुज मन लखि लीला विशेष-यह पंजाब में सिंधु और सतलज नदियों के बीच की फुलवारी।-प्रेमघन०, भा० १, पृ० ३३४ । पहाड़िों पर होता है । इसके पेह बहुत ऊंचे नहीं होते पौर विशेषकर खेतो की बाडों पर लगाए जाते हैं। इसकी लकड़ी फुलरा-संज्ञा ५० [हिं० फूल +रा (प्रत्य०) ] फुदना । मजबूत पौर'ठोस होती है तथा कोल्हू की जाठ और गाड़ियों फुलरी-सं० स्त्री० [हिं० फूल+री (प्रत्य॰)] फूल । वेलबूटे । उ० के पहिए मादि बनाने के काम में आती है। इससे एक प्रकार बैसे बुनत महीर मै, फुलरी परती जाहिं । ऐसे सुंदर ब्रह्म से का गोंद निकलता है जो प्रोषव में काम घाता है भौर अमृत- जगत भिन्न कछु नाहिं । -सुदर० प्र०, भा० २. पृ० ५०४ । सर का गोंद कहलाता है। फलवना-क्रि० स० [हिं० फूलना का सफ० रूप] दे० 'फुलाना' । फुलाना'-क्रि० स० [हिं० फूलना] १. किसी वस्तु के विस्तार उ०-बलुप्रा के घरुमा मै बसते, फुलवत देह अयाने ।- या फैलाव को उसके भीतर वायु आदि का दबाव पहुंचाकर कवीर ग्र०, पृ० २७६। वढ़ाना । भीतर के दवाव से बाहर की ओर फैलाना। उ०- फुलवर-सशा पुं० [ हिं० फूल+वार ] एक कपड़ा जिसपर रेशम के हरखित खगपति पंख फुलाए। तुलसी (शब्द०)। ,