पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/६८

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फुलाना ३३०७ पृ०२३। मुहा०-- मुंह फुलाना वा गाल फुलाना = मान करना। फुलेरा-संज्ञा पुं० [हिं० फूल ऐरा + (प्रत्य॰) ] फूल की बनी हुई रिसाना । रूठना। छतरी जो देवताओ के ऊपर लगाई जाती है । २. किसी को पुलकित वा आनंदित कर देना। किसी में इतना फुलेल-संज्ञा पुं० [हिं० फूल + तेल ] १. फूलो की महक से वासा श्रानंद उत्पन्न करना कि वह प्रापे के बाहर हो जाय । उ०- हुमा तेल जो सिर में लगाने के काम में श्राता है । सुगधयुक्त तुलसी भनित भली भामिन उर सो पहिराइ फुलावों खेल । उ०-(क) उर पारी लठे छटी पानन पै, मीजी तुलसी (शब्द॰) । ३. किसी में गर्व उत्पन्न करना । गर्वित फुलेलन सों, पाली हरि संग फेलि । -सूर (शब्द॰) । (ख) करना । घमंड वढ़ाना । जैसे,—तुम्ही ने तो तारीफ कर रे गंधी, मतिमंद तू पतर दिखावत काहि । करि फुलेल को करके उसे और फुला दिया है । ४. कुसुमित करना । फूलो प्राचमन मीठो फहत सराहि ।-बिहारी (शब्द०)। । युक्त करना। उ०-चावर द गेहूँ रहे कबो उरद ह्र विशेप-फुलेल बनाने के लिये तिल को धोकर छिलका पलग आय। कबहूँ मुदगर चिबुक तिल सरसों देत फुलाय । कर देते हैं । ताजे फूलों की कलियां चुनकर विछा दी जाती -मुबारक (शब्द॰) । हैं और उनके ऊपर तिल छितरा दिए जाते हैं। तिलों के फुलाना-क्रि० अ० दे० 'फूलना' । ऊपर फिर फूलो की कलियाँ विछाई जाती हैं। बलियो के फुलानाg3-वि० [हिं० फुलना ] फूला हुआ । उ०-गगन मंदिल खिलने पर फूलो की महक तिलो मे मा जाती है । इस प्रकार मे फूल फुलाना उहाँ भंवर रस पीवै ।-कवीर श०, भा० ३, कई बार तिलों को फूलो की तह पर फैलाते है । तिल फूलों में जितना हो अधिक बासा जाता है उतनी ही अधिक सुगंध उसके तेल में होती है। इस प्रकार बासे हुए तिलों को पेलकर फुलायल -सशा पु० [ हिं० फूल ] दे० 'फुलेल'। उ०-(क) कई प्रकार के तेल तैयार होते हैं, जैसे, चमेली का तेल, बेले मुहमद बाजी पेम के ज्यौ भावै त्यो खेल । तिल फूलहिं से संग ज्यों होइ फुलायल तेल । —जायसी (शब्द॰) । (ख ) का तेल । गुलाब के तेल को गुलरोगन कहते हैं । २. एक पेड़ जो हिमालय पर कुमाऊँ से दारजिलिंग तक होता है। छोरह जटा, फुलायल लेहू । झारहु केस, मुकुट सिर देहू ।- विशेष-इसके फल की गिरी खाई जाती है और उससे तेल भी जायसी (शब्द०)। निकलता है जो साबुन और मोमबत्ती बनाने के काम में फुलाव-सज्ञा पु० [हिं० फूलना ] फूलने की क्रिया या भाव । फूलने पाता है। इसकी लकड़ी हलके भूरे रंग की होती है जिसकी की अवस्था । उभार या सूजन । मेज, कुरसी प्रादि बनती है । फुलावट-सज्ञा ली. [हिं० फूलना ] फूलने की क्रिया या भाव । फुलेली-सशा स्त्री० [हिं० फुलेल ] काँच प्रादि का वह बड़ा बरतन उभार या सूजन । जिसमें फुलेल रखा जाता है । फुलावा-संज्ञा पु० [हिं० फूल ] स्त्रियों के सिर के बालो को गूथने फुलेहरा-संज्ञा पुं० [हिं० फूल + हार ] सून, रेशम आदि के बने की डोरी जिसमे फूल वा फुदने लगे रहते हैं । खजुरा । हुए झवेदार वंदनवार जो उत्सवो में द्वार पर लगाए जाते फुलिग-मज्ञा पु० [मं० स्फुलिङ्ग, प्रा० फुलिंग] चिनगारी। उ०- हैं। उ०-प्रदीप पांति भावती सुमंगलानि गावती । सुदाम जोन्ह लग प्रव पावक पुज श्री कुज के फूल फुलिंग ज्यों धाम पावती फुलेहानि लावती।-रघुराज (शब्द०)। लागे ।-(शब्द०)। फुलौरा-संशा पुं० [हिं० फूल + बरा ] वडी फुलौरी । पकौड़ा। फुलिया- सज्ञा स्त्री [हिं० फूल ] १. किसी कील या छह के प्राकार फुलौरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फूल + घरी ] चने या मटर प्रादि थे की वस्तु का फूल की तरह उभरा और फैला. हुप्रा गोल बेसन की वरी। वेसन की पकोडी। उ०-पापर, वरी, सिरा । २. कील या कोटा जिसका सिरा फूल की तरह फैला फुलोरि, मियोरी। कूरवरी, कचरी, पीठौरी।-सूर हुआ, गोल और मोटा हो। ३. एक प्रकार की लोग (गहना) (शब्द०)। जो फान में पहनी जाती है। विशेप-वेसन को पानी मे खूब फेटकर उसे सोलते हुए घी फुलिसकेप-संशा पु० [अ० फूल्स+कैप ] एक प्रकार का लिखने या तेल में घोड़ा घोड़ा करके डालते हैं जिसमें वह फूल और या छापने का कागज। पककर गोल गोल बरी बन जाती है । विशेष-पहले इसके सस्ते में मनुष्य के सिर का चित्र बना फुल्ल'-संशा पुं० [सं०] फूल । रहता था जिसपर नोकदार टोपी होती थी। इसी कारण फुल्ल-वि० १. फूला हुधा । विकसित । उ०-शिशिर के धुले फुल्ल इसे 'फूल्स कैप' कहने लगे जिसका अर्थ वेवकूफ की टोपी होता गुख को उठाफर वे सकते रह जाते है ।-अनामिका, पृ० है। अब इस कागज मे अनेक चिह्न बनाए जाते हैं। इस १०३ । २. प्रसन्न । प्रमुदित । कागज की माप १३३४१७ इंच होती है। यो०-फुल्लसुवरी । फुल्लदाम । फुलनयन, फुक्लनेत्र फुलुरिया-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] कपड़े का एक टुकड़ा जो छोटे बच्चों के जिसकी प्रांखें प्रसन्नता से विकसित हों । फुपकालोचन = (१) चूतह के नीचे इसलिये बिछाया वा रखा जाता है कि उनका एक प्रकार का मृग । (२) दे० 'फुल्लनयन' । फुतलपदन- मल दूसरी जगह न लगे । गैड़तरा । प्रसन्नमुख।