पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/७३

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फूल' २३१२ फूलदान फूलों की माला, हार आदि सिंगार या सजावट का सामान । का होता है । १८ एक मिश्र या मिलीजुली धातु जो तांबे (२) ऐसी नाजुक और कमजोर चोज जो छोड़ी देर की धौर रांगे के मेल से बनती है। शोधा के लिये हो। फूलों की छडी = वह छही जिसमें फूलो विशेष-यह घातु उजली और स्वच्छ चांदी के रग की होती है की माला वपेटी रहती है और जिससे चौथी खेलते हैं। और इसमें रखने से दही या घोर खटटी चीजें नहीं बिगड़तीं। फूलों की सेष-वह पलंग या शय्या जिसपर सजावट और प्रच्छा फूल 'वेधा' कहलाता है। साधारण फूल में चार भाग कोमलता के लिये फूलों की पंखड़ियां बिछी हों। पानंद की तांबा और एक भाग रांगा होता है पर बेधा फूल सेज । (श्रृंगार की एक सामग्री)। पान फूल सा = प्रत्यत भाग तांबा पौर २७ भाग रागा होता है और कुछ चांदी भी सुकुमार सा। पड़ती है। यह धातु बहुत खरी होती है पौर प्राघात लगने २. फूल के प्राकार के वेल बूटे या नक्काशी। उ०-मनि फूल पर चट टूट जाती है । इसके लोटे, कटोरे, गिलास, पावखोरे रचित मखतूल की झूलन जाके तूल न कोउ |-गोपाल आदि बनते हैं। फूल कांसे से बहत मिलता जुलता है पर (शब्द०)। ३. फूल के आकार का गहना जिसे स्त्रियाँ कई बगों कासे से इसमें यह भेद है कांसे में तवे के साथ जस्ते का मेल में पहनती हैं। जैसे, करनफूल, नक् फूल, सीसफूल । उ०- रहता है और उसमें सट्टी चीजें बिगड़ जाती हैं। (क) कानन कनक फूल छबि देही । -तुलसी (शब्द०) । (ख) पुनि नासिक भल फूल प्रमोला ।—जायसी (शब्द०) । (ग) फूल ---संज्ञा पी० [हिं० फूलना] १. फूलने को किया या भाव । पायल प्रो पगपान सुनूपुर । चुटकी फूल अनौट सुभूपुर ।- प्रफुल्ल होने का भाव । उत्साह । उमंग । उ०—(क) फूलि सूदन (शब्द०) । ४. चिराग की जलती बत्ती पर पड़े हुए फूलि तरु फूल बढावत । मोहत महा मोद उपजावत ।- गोल दमकते दाने जो उभरे हुप मालूम होते है । गुल । केशव (शब्द॰) । (ख) फरक्यो चंपतराय को दच्छिन भुज मुहा०-फूल पड़ना = बत्ती मे गोल दाने दिखाई पड़ना । फूल अनुकून । बड़ी फौज उमही सुनि भई जुद्ध की फूल ।-लाल करना = बुझना (चिराग का)। (शब्द०)। २. प्रानंद । प्रसन्नता । उ०—(क) करिए अरज कबूल । जो चित्त चाहत फूल । - सूदन (शब्द॰) । (ख) फूल ५. पाग की चिनगारी । स्फुलिंग। श्याम के उर लगे फूल श्याम उर प्राय ।-रहीम (शब्द०)। क्रि० प्र०-पड़ना। ६. पीतल प्रादि की गोल गांठ या घुडी जिसे शोभा के लिये 1-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० फूल +फा० कारी ] बेल बूटे बनाने फलकारी- का काम। छड़ी, किवाल के जोड प्रादि पर जड़ते हैं। फुलिया । ७. सफेद या लाल धब्बा जो कुष्ठ रोग के कारण शरीर पर फूलगोभी-सज्ञा स्त्री० [हिं० फूल + गोभी ] गोभी की एक जाति जगह जगह पड़ जाता है । सफेद दाग । श्वेत कुष्ठ । जिसमें मंजरियों का बंधा हुमा ठोस पिंड होता है जो तरकारी के काम मे पाता है। क्रि० प्र०-पड़ना। ८. सत्त । सार । जैसे, अजवायन का फूल । विशेष-इसके बीज पसाढ से कुमार तक बोए जाते हैं। इसके क्रि० प्र०-निकालना ।-उतारना । बीज की पहले पनीरी तयार करते है। फिर पौधों को उखाड उखाडकर क्यारियों में लगाते है। कहीं कही पौधे ६. वह मद्य जो पहली बार का उतरा हो । कड़ी देशी शराब । उ.-थोसो ही सो चाखिया भाडा पीया धोय । फून पियाला कई बार एक स्थान से उखाड़कर दूसरे स्थान में लगाए जाते जिन पिया रहे कलाला सोय ।-कबीर (शब्द०)। हैं। दो ढाई महीने पीछे फलो फी घुडियो दिखाई देती हैं । उस समय कीडो से बचाने के लिये पौधों पर राख छितराई विशेष-यह शराब बहुत साफ होती है और जलाने से जल जाती है। कलियो के फूटकर अलग होने पहले ही पौधे उठती है। इसी को फिर खीचकर दोभातशा बनाते हैं । काट लिए जाते हैं। १०. पाटे चीनी आदि का उत्तम भेद । ११. स्त्रियों का वह रक्त जो मासिक धर्म में निकलता है । रज । पुष्प । फूलझरोल-संज्ञा स्री० [ हिं० ] दे० 'फुलझडी' । कि० प्र०-श्राना। फूलडोल-पज्ञा पु० [ फूल + डोल ] एक उत्सव जो चैत्र शुक्ल १२ गर्भाशय । १३. घुटने या पैर की गोल हड्डी। चक्की । एकादशी के दिन मनाया जाता है। टिकिया। १४ वह हड्डी जो गव जलाने के पीछे बच रहती विशेप-इस दिन भगवान् कृष्णचंद्र के लिये फूलों का डोल है और जिसे हिंदू किसी तीर्थ स्थान या गगा में छोड़ने के वा झूला सजाया जाता है। मथुरा और उसके प्रासपास के लिये ले जाते है। स्थानों में यह उत्सव मनाया जाता है। क्रि० प्र०-चुनना । फूलढोंक-सज्ञा पु० [ देश० ] एक जाति की मछली जो भारत के १५. सूखे हुए साग या भाग की पत्तिया (बोलचाल) । जैसे,- मभी प्रांतों में पाई जाती है और हाथ भर तक लंबी मेथी के दो फूल दे देना । १६. किसी पतले या द्रव पदार्थ होती है। को सुखाकर जमाया हुमा पत्तर वा वरक। जैसे, स्याही फूलदान-संज्ञा पुं० [हिं० फूल + फा० दान (प्रत्य॰)] १. के फूल । १७. मथानी के प्रागे का हिस्सा जो फूल के आकार पीतल आदि का बना हुमा बरतन जिसमे फल सजाकर