पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/७४

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३३१३ फूलमंडनी फूलदार देवताओं के सामने रखा जाता है । २. गुलदस्ता रखने का करम सिर पर चढे चेति न देखे मर्म। -कबीर (शब्द०)। कांच, पीतल, चीनी मिट्टी आदि का गिलास के घालार फूलकर कुप्पा होना=(१) अत्यधिक प्रानंद, गर्व या हर्ष का बरतन। युक्त होना । (२) अत्यंत स्थूल होना । फूलदार-वि० [हिं० फूल + फा० दार (प्रत्य॰)] जिसपर फूल ८. प्रफुल्ल होना। पानंदित होना। उल्लास में होना । बहुत पत्ते और बेल बूटे काढकर, 'बुनकर, छापकर वा खोदकर खुश होना । मगन होना। उ०—(क) परमानंद प्रेम सुख बनाए गए हों । २. फूल रखनेवाला । फूलोंवाला। फूले । बीथिन फिर मगन मन भूले । —तुलसी (शब्द०)। (ख) प्रति फूले दशरथ मन ही मन कोणल्या सुख पायो। फूलना-क्रि० अ० [हिं० फूल + ना (प्रत्य० )] १. फूलों से युक्त सौमित्रा कैकयि मन आनंद यह सब ही सुत जायो ।- होना । पुष्पित होना । फूल लाना। जैसे,—यह पौषा वसंत सूर (शब्द०)। में फलेगा। उ०—(क) फूल फर न बेत जदपि सुघा घरसहिं जलद । —तुलसी (शब्द०)। (ख) तरुवर फूले फल परिहर मुहा०—फूला फिरना या फूला फूला फिरना = प्रसन्न घूमना । अपनो कालहि पाइ । —सूर (शब्द० :) आनंद में रहना । उ०—(क) फूली फिरति रोहिणी मैया नखसिख किए सिंगार । —सूर (शब्द०)। (ख) फूलै संयो॰ क्रि०-जाना ।-उठना ।-श्राना । फिरत अयोध्यावासी गनत न त्यागत पीर । परिरंभन हँसि मुहा०-फूलना फरना =धन धान्य, संतति प्रादि से पूर्ण और देत परस्पर पानंद नैनन नीर । —सूर (शब्द०)। (ग) प्रसन्न रहना । सुखी और संपन्न होना । बढ़ना पौर प्रानंद फूले फूले फिरत हैं अाज हमारो ब्याह ।-(प्रचलित)। फूले मे रहना । उन्नति करना । उ०- फूली फरी रही जहँ चाही अंग अंग वपु न समाना = प्रानंद का इतना अधिक उद्वेग यहै असीस हमारी।—सूर (शब्द०)। फूलना फलना= होना कि बिना प्रकट किए रहा न जाय । अत्यंत प्रानंदित (१) प्रफुल्ल होना । उल्लास में रहना । प्रसन्न होना । (२) होना । उ०—(क) उठा फूलि अंग नाहिं समाना। कंथा दे० 'फूलना फरना' । फूली फाली=प्रफुल्लित प्रसन्न वदन । टुक टुक भहराना ।—जायसी (शब्द०)। अति मानंद उ०-फूली फाली फूल सी फिरती विमल विकास । भोर कोलाहल घर घर फूले अंग न समात । —सूर (शब्द०)। तरयाँ होयेंगी चलत तोहि पिय पास |-बिहारी (शष्ट०)। (ग) चेरी चंदन हाथ के रीझि चढ़ायो गात । विहवल छिति २. फूल का संपुट खुलना जिससे उसकी पंखड़ियां फैल पायें। धर रिंभ शिशु फले वपु न समात ।-केशव (शब्द०)। विकसित होना । खिलना । उ०—(क) फूले कुमुद केति उजि- फूले फरकना =प्रफुल्ल होकर घूमना। फूले फरकत से यारे।-जायसी (शब्द०)। (ख) फलि उठे कमल से अमल फरी पल कटाच्छ करवार । करत, बचावत पिय नयन पायफ हितू के नैन, कह रघुनाथ भरे चैन रस सियरे । -रघुनाथ घाय हजार ।-बिहारी (शब्द०)। फूले न समाना = दे० ( शब्द०)। ३. भीतर किसी वस्तु के भर जामे या पधिक 'फी पंग न समाना'। उ.-याधुनिक मत की प्रशंसा में होने के कारण अधिक फैल या बड़ जाना। टीम डोमया फूमे महीं समाते ।-प्रेमघन०, पा० २, पृ० २०८ । पिंह का पसरना । जैसे, हवा भरने से गेंद फूलना, गाल ६. मुह फुलाना । छठना । मान करना । जैसे,—वह तो वहाँ फूलना, भिगोया हुआ चना फूलना, पानी पड़ने से मिट्टी फूलना, फूलकर पेठा है। कड़ाह में फौरी फूलना । ४. सतह का उभरना । पासपास फूलनि-सज्ञा स्त्री॰ [ हिं• फूलना ] फूलने की शिया या भाव । की सतह से उठा हुआ होना। ५. सूजना। शरीर के किसी विकास । प्रस्फुटन । उ•-दत यह ललित लतनि की फूलनि भाग का आसपास की सतह से उभरा हुप्रा होगा। जैसे- फूलि. फूनि जमुना जल अवनि ।-बंद०६०, पृ० ३१६ । जहाँ चोट लगी वहाँ फूला हुआ है मौर दर्द भी है। फूलपान-वि० [हिं० फत+पान ] ( फूल या पान के समार) संयो॰ क्रि०-याना। बहुत ही कोमच। नाप्नुक (लाख)। ६. मोटा होना। स्थूल होना । जैसे,—उसका बदन घादी से फूलविरंज-संज्ञा पुं॰ [ हिं० फूल + विरंज ] एक प्रकार का पान फूला है । ७. गर्व करना । घमंड करना । इतराना । जैसे,- जिसका पावर पच्छा होता है। जरा तुम्हारी तारीफ कर दी घस तुम फूल गए। उ०- विशेष—यह भादों उतरते कुपार के प्रारंभ में पककर काटने कबहुँक वैठ्यो रहसि रहसि के ढोटा गोद खेलायो । कपहुंक योग्य हो जाता है। फूलि सभा में बैठयो मुच्छनि ताव दिखायो ।—सूर (शब्द०)। फ्लभांग-संशा स्त्री० [हिं० फल + भांग ] हिमालय में होनेवाली (ख) वैठि जाइ सिंहासन फूमी। प्रति अभियान पास सब एक प्रकार की पान का पर पेन जिसकी टहनियों से रेशे भुली।-तुलसी (शब्द०)। निकाले जाते है। मुहा०-फूले फिरना = गर्व करते हुए घूमना । घमंड में रहना । फूलमंडनी-संवा बी० [हिं० पसं० मण्डन + हिं० ई (प्रत्य॰)] उ०-मनवा तो फूला फिर कहे जो करता धर्म। कोटि पुष्पोत्सव । वह फेनि जिसमें सब कुछ पुष्पमय होता है।