पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/७६

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४ कराना। फकरना ३३१५ फेदी अनुसार हार जीत का निर्णय हो। जैसे, पांसा फेंकना, कौड़ी कसे द्विजदेव जू चंचलता बस अचल तारन ।-द्विजदेव फेंकना । ८. तिरस्कार के साथ त्यागना । ग्रहण न करना । (शब्द॰) । (ख) पाग पेंच खैच दे, लपेटि पट फैट वाघि, छोड़ना। पत्यिाग करना । उ०-कंचन फेंकि कांच कर ऐंड़े ऐंड़े प्राव पैने टुटे डीम डीम ते ।-हनुमान (शब्द०) । राख्यो । प्रमरित छांछि मूढ़ विष चाख्यो। लल्लू (शब्द०) ३. फेरा । लपेट । घुमाव । ६. अपव्यय करना । फजूल खर्च करना । जैसे,—ऐसे काम फैटर-संज्ञा स्त्री॰ [ फेंटना ] फेंटने की क्रिया या भाव । में क्यो व्ययं रुपया फॅझते हो ? १०. उछालना । ऊपर नीचे फैटना-क्रि० स० [सं० पिष्ट, प्रा. पि+ना (प्रत्य०) या हिं० फेंट हिलाना डुलाना। झटकना पटकना । जैसे, (क) बच्चे का से नामिक धातु] १. गाढ़े द्रव पदार्थ को उंगली घुमा घुमाकर हाथ पैर फेंकना । (ख) मिरगी में हाथ पैर फेंकना । ११. हिलाना । लेप या लेई की तरह चीज को हाथ या उगली से (पटा) चलाना। (पटा) लेकर घुमाना या हिलाना मथना । जैसे, पीठी फॅटना, बेसन फेटना, तेल फेंटना । हुलाना। संयो॰ क्रि०-देना.- लेना। करनाल-क्रि० प्र० [ अनु० फेंकें + करना ] १. गीदड़ का रोना या बोलना । उ०-फ्टु कुठार्य करटा रटहिं फेंकरहिं २. उँगली से हिलाकर खुब मिलाना । जैसे,—इस बुकनी को शहद में फेंटकर चाट जानो। ३. गड्डो के तासों को उलट फेरु कुभौति । नीच निसाचर मीच बस पनी मोह मद माति । पलटकर अच्छी तरह मिलाना । जैसे, ताश फेंटना । —तुलसी (शब्द०)। २. फूट फूटकर रोना । चिल्ला चिल्ला- कर रोना: फेटा-सज्ञा पुं० [हिं० फेंट ] १. कमर का घेरा। २. धोती का वह भाग जो कमर मे लपेटकर बांधा गया हो। ३. पटुका । काना'-क्रि स० [हिं० फेंकना, का प्र० रूप ] फेंकने का काम कमरबंद । उ०-अब मैं नाच्यो बहुत गुपाल | माया को कटि फेंटा बाँध्यो लोभ तिलक दियो भाल । —सूर (शब्द॰) । फकाना-क्रि० प्र० फेंक दिया जाना । झटके से बिना किसी कारण ४. वह वस्त्र जो सिर पर लपेटकर वांधा जाता है। छोटी के या भकस्मात् गिर पड़ना । पगडी । ५. अटेरन पर लपेटा हुप्रा सून । सून की बड़ो अटो। फै कैत-संज्ञा पुं॰ [हिं० फिकैत ] फेकैत । पटेबाज । उ०-रसिकों फेंटी-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० फॅट ] सून का गोला । अटेरन पर लपेटा के हासविलास, गुडों के रूप रंग भोर फेंकेतों के दावघात हुप्रा सून । का मेरी दृष्टि में रत्ती भर भी मूल्य नहीं।-मान०, भा० फेकरना'-क्रि० घ० [हिं० फेझारना सिर का) खुलना। ५, पृ०७४। (सिर का) पाच्छादन रहित होना। नंगा होना। उ०- फगा-संशा पुं० [हिं० ] दे० 'फिंगा' । फेकरे मूड वर ननु लाए। निकसि दांत मुह बाहर फैट'-संशा स्त्री० [हिं० पेट या पेटी, श्रथवा देश०] १. कमर का पाए ।—जायसी (शब्द०)। घेरा । कटि का मडल । उ०-फेंट पीवपट, साँवरे कर पलास के फेकरना-क्रि० प्र० दे० 'फेरना। पात । हंसत परस्पर ग्वाल सब बिमल बिमल दघि खात।-सूर फेकारना -क्रि० स० [सं० अप्रखर (=विना मूल का? ) ] (बन्द०)। २. धोती का वह भाग को फमर में लपेटकर (सिर ) खोलना या नंगा करना। घांधा गया हो। कमर में बांधा हुप्रा कोई कपड़ा । पटुका । कमरबंद । उ०—(क) खायचे को कछु भाभी दीनी श्रीपति फेकैत-संज्ञा पुं० [हिं० फेकना ] लाठी से प्रहार करने मे कुशल , पटेबाज । लाठी फेकने में कुशल । उ०-पक्का फेकैत है।- मुख तें बोले । फेंट उपर ते अजुलि तंदुल बल करि हरि जू खोले ।-सूर (शब्द॰) । (ख) लाल की फेंट सों लेके गुलाल फेट--संज्ञा स्त्री० [हिं० फेटना ] फेंटने की क्रिया या भाव । लपेट । रंगभूमि, भा॰ २, पृ० ५२४ । लपेटि गई अब लाल के गाल सों ।-रघुनाथ (शब्द०)। चक्कर । उ-उर अंधारो जहें नरा सतगुर • नहिं भेट । मुहा०-फेठ गहना, धरना या पकड़ना=जाने न देना। पाए थे हरि मिलन कू लगी पौर ही फेट।-राम० धर्म, रोकना । इस प्रकार पकड़ना कि भागने न पाए । उ०- पृ० ७१। (क) श्याम सखा को गेंद चलाई। धाय गह्यो तब फेंट फेड-पंज्ञा पुं० [हिं० पोंड, पेड़ ] । उ०—-हीरा मध्य फेड़ श्याम की देहु न मेरी गेंद मंगाई।-सूर (शब्द॰) । विस्तारा ।-दरिया० वानी, पृ० १६ । (ख) अब लो तो तुम विरद बुलायो भई न मोसों भेंट । फेण-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'फेन'। तजो विरद के मोहि उबारी सूर गद्दी कसि फेट।-सूर फेणक-संज्ञा पुं॰ [ सं०] १. फेन । २. एक प्रकार की मिठाई जिसे (शब्द०)। (ख) जो तु राम नाम पित धरतो। सूरदास फेनी, वतासफेनी भी कहते हैं [को॰] । बैकुंठ पैठ में कोउ न फेंट पफरतो।-सूर (शब्द०)। फेत्कार-सज्ञा पुं० [सं०] गीदड़ का 'हुमा हुमाँ' करना । उ०- फेंट कसना या याँधना= कटिबद्ध होना। कमर फसकर चौर क व्यापार शिवा के फेत्कार ।-वर्ण०, ५०१०। तैयार होना। सन्नद्ध होना । उ०—(क) ढोल वजावती गावती पोत मचावती धूधुर धूरि के धारन । फेंट फो की फेदाई-संज्ञा पुं॰ [देश॰] घुइया । मरुई । 1