पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/८०

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फेरनि ३३१४ फेरी 1 ८. पोतना । तह चढ़ाना । लेप करना । जैसे, कलई फेरना, रंग फेरवा-रज्ञा पुं० [हिं० फेरना ] सोने का वह छल्ला जो तार को फेरना, चूना फेरना। दो तीन बार लपेटकर बनाया जाता है । लपेटुना। मुहा०-पानी फेरना = धो देना । रंग बिगाड़ना । नष्ट करना । फेरवासिंज्ञा पुं० दे० 'फेरा' ६. एक ही स्थान पर स्थिति बदलना । सामना दुसरी तरफ फेरा-संज्ञा पुं० [हिं० फेरना ] १. किसी स्थान या वस्तु के चारों करना । पाश्वं परिवर्तित करना । जैसे,—(क) उसे उस पोर गमन । परिक्रमण । चषकर । जैसे,—वह ताल चारो करवट फेर दो। (ख) वह मुझे देखते ही मुह फेर लेता है । पोर फेरा लगा रहा है । उ०-चारि खान में भरमता कबहुँ न लगता पार । सो फेरा सब मिट गया सतगुरु के उपकार । संयो० कि०-देना ।-लेना । -कबीर ( शब्द०) १०. स्थान वा कम बदलना। उलट पल6 या इधर उधर क्रि० प्र०-करना। -लगाना। करना । नीचे का ऊपर या इधर का उधर करना। जैसे, २. लपेटने में एक बार का घुमाव । लपेट । मोड़ । बल । पान फेरना। ११. पलटना। और का मौर करना । पद- जैसे,—फई फेरे देकर तागा लपेटा गया है। लना । भिन्न फरता। विपरीत करना। विरुद्ध करना। जैसे, मति फेरना, चित्त फेरना । उ०-(क) फेरे भेख रहे क्रि० प्र०—करना ।-डालना ।—लगाना । भा तपा । पूरि लपेटे मानिक छपा ।—जायसी (शब्द॰) । ४. इधर उधर से आगमन । घूमते फिरते पा जाना या जा (ख) सारद प्रेरि तासु मति फेरी । मांगेसि नीद मास षठ पहुंचना । जैसे,-वे कभी तो मेरे यहाँ फेरा करेंगे। उ०- केरी । —तुलसी (शब्द०) । १२. माजना। बार बार (क) पीजर मह जो परेवा घेरा। आप मजार कीन्ह तह दोहराना । अभ्यस्त करना। उद्धरणी करना । जैसे, पाठ फेरा ।—जायसी शब्द०)। (ख) जहँ सतसंग कथा फेरना । १३. चारों मोर सब के सामने ले जाना । सब के माधव की सपनेहु करत न फेरो। तुलसी (शब्द०)। ५. सामने ले जाकर रखना । घुमाना । जैसे, जनवासे में पान लौटकर फिर पाना । पलटकर पाना । जैसे,—इस समय फेरना। उ०-फेरे पान फिरा सब कोई । लागा व्याचार तो जा रहा हूँ, फिर कभी फेरा करूंगा । उ०-कहा भयो जो सव होई । —जायसी (शब्द०)। १४. प्रचारित करना । देश द्वारका कीन्हों जाय बसेरो। पापुन ही या प्रज के कारन घोषित करना । जैसे, डौंड़ी फेरना । १५. चलाकर चाल ठीक करिहैं फिरि फिरि फेरो।-सूर ( शब्द०)। ६. प्रावर्त । करना । घोड़े प्रादि को ठीक चलने की शिक्षा देना । चाल घेरा| मंडल । ७. भिक्षा मांगना । चलाना | निकालना । जैसे,—वह सवार बहुत अच्छा पोसा फेराफेरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फेरना ] हेराफेरी। इधर का उधर । फेरता है । उ०-फेरहिं चतुर तुरंग गति नाना । -तुलसी क्रमपरिवर्तन । उलट। (शब्द०)। फेरि -पन्य० [हिं० फिर ] | पुनः । दुबारा ।-उ०-दास फेरनि -सशा सी० [हिं० फेरना ] फेरने का कार्य या स्थिति । इते पर फेरि बुलावत यों अघ अायत मेरी घलया।-दास उ०-मानंद घन सम सुबर रमि । इत उत वह हेरनि, (शब्द०)। पट फेरनि ।-नंद० ग्रं॰, पृ० २७६ । मुहा०-फेरि फेरि = बार बार। उ०-हरे हरे हेरि हेरि हसि फेर पलटा-संज्ञा पुं० [हिं० फेर+पलटा ] गौना । द्विरागमन । हंसि फेरि फेरि कहत कहा नीकी लगत ।-देव (शब्द०)। फेरफार-संज्ञा पुं० [हिं० फेर ] १. परिवर्तन | उलट फेर । उलट फेरी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० फेरना ] १. दे० 'फेरा' । २. दे० 'फेर' । ३. पलट । जैसे,—इसमें इधर बहुत फेरफार हुमा है । २. अंतर। परिक्रमा । प्रदक्षिणा । भावरी । जैसे-सोमवती की फेरी। बीच । फर्क । ३. टालमटूल । बहाना । उ०-भानु सो पढ़न क्रि० प्र०-डालना ।—पड़ना ।—देना । हनुमान गयो भानु मन अनुमानि सिसुकेलि फियो फेरफार सो ।-तुलसी (शब्द०)। ४. घुमाव फिराव । पेंच । चक्कर मुहा०-फेरी पड़ना= भाँवर होना । विवाह के समय वर कन्या जैसे, फेरफार की बात। का साथ साथ मंडपस्तंभ, अग्नि की परिक्रमा करना । ४. योगी या फकीर का किसी वस्ती में भिक्षा के लिये बराबर फेर बदल-वज्ञा पुं० [हिं० फेर+० बदल] परिवर्तन । धाना । उ०—(क) माशा को इंधन कर मनसा फरूं भभूत । फेरव'–वि० [सं०] १. धूतं । कपटी । चालबाज । २. हिंस्र । दुःख जोगी फिरि फेरी कहें यों परि पावै सून । -कवीर पहुँचानेवाला । (शब्द०)। (ख) प नगर हग जोगिया फिरत सो फेरी देत । फेरबर--संज्ञा पुं० १. शृगाल । गीदड़ । २. राक्षस । छवि मनि पावत हैं जहाँ पल झोरी भरि लेत ।-रसनिधि फेरवट-संज्ञा स्त्री० [हिं० फेरना ] १. फिरने का पाष । २. सपेटने (शम्द०)। में एक एक वार का घुमाव । फेरा। ३. घुमाव फिराव । क्रि० प्र०-देना ।—लगाना । पेच । चक्कर जैसे, फेरवट की बात । ४. फेरफार। अंतर । ५. कई वार माना जाना । चक्कर। उ०-न्योते गए नंदलाल फर्क। ५. दे० 'फेरौरी। कहूँ सुनि बाल विहाल वियोग की घेरी । ऊतर कौनहूँ के