पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/८१

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फेरीवाला ३३२० फैलाना पाना। बुरा फेल । co पद्माकर दे फिरि कुंजगलीन मे फेरी ।—पद्माकर (शब्द०)। या शास्त्र के पंडितों और प्राचार्यों का समाज या मंडल । ६. किसी वस्तु को बेचने के लिये उसे लादकर गांव गांव विद्वत्समिति । विद्वनमंडल । जैसे, फैकल्टी पाफ ला । फैकल्टी गली गली घूमना । भांवरी। ७. वह चरखी जिसपर रस्सी घाफ मेडिसिन, फैकल्टो घाफ सायन्स । पर ऐंठन चढ़ाई जाती है। फैक्टरी-तशा सी० [पं० फैक्टरी ] कारखाना । फेरीवाला-संशा पुं० [हिं० फेरी+वाला ] घूम घूमकर सौदा फैज-संशा पु० [अ० फैज़ ] १. वृद्धि । लाम । २. फल । परि- बेचनेवाला व्यापारी। रणाम । फेरु-संज्ञा पुं० [स०] गीदड । मुहा०-अपने फैज को पहुँचना = अपने कर्म का उचित फल फेरुआ-संज्ञा पुं॰ [ हिं० ] दे० 'फेरवा' । फेरौरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फेरना ] टूटे फूटे खपरैलों को छाजन से फैदम-संज्ञा पुं० [ अं० फेदम ] गहराई की एक नाप जो छह फुट निकालकर उनधी स्थान में नए नए खपरैल रखने की क्रिया । की होती है । पुरसा। फेल'-संज्ञा पुं० [अ० फेल ] कर्म । काम । कार्य । जैसे, पदफेल, फैन'-सशा पु० [सं० फैन] पंखा । जैसे, इलेक्ट्रिक फैन | फैना-संज्ञा पुं॰ [ म० फण ] दे॰ 'फण' । उ०-सो अपने विले तें क्रि० प्र०-फरना । —होना । वह बाहिर निकरि के फैन नवाय के श्री गुसाई जी को फेल'-वि० [पं० फेल ] अकृतकार्य । जिसे कार्य में सफलता न दंडवत कियो।-दो सौ बावन, भा० १, पृ० २६५ । हुई हो । असफल । जैसे, इम्तहान में फेल होना । फैन+3-संज्ञा पु० [सं० फेन ] दे० 'फेन'। उ०-दुग्ध फैन सम क्रि० प्र०—करना । —होना । सैन रमा मनो ऐन सुहाई।-नंद ग्रं॰, पृ० २०४ । फेल3-सञ्ज्ञा पुं० [ ] जूठा अन्न । उच्छिष्ट [को०] । फेल --संज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार का वृक्ष जिसे बेपार भी कहते फैमिनी-संशा स्त्री० [अ० फैमिली ] परिवार । उ०—फैमिली के साथ होगे?-संन्यासी, पृ० १७२ । है। वि० दे० 'बेपार'। फैयाज-वि० [अ० फेलक-सज्ञा पुं० [सं०] खाकर छोड़ा हुमा अन्न यादि । फैयाज़ ] उदार। उच्छिष्ट [को०] । फैयाजी-सशा स्त्री० [अ० फैयाज+फा० ई (प्रत्य॰)] उदारता फेला, फेलि, फेलिका, फेली-संज्ञा स्त्री० [स०] दे० 'फेलक' (को०] । उ०-यह क्षण हमें मिला है नहीं नगर सेठों की फैयाजी फेलुक-सज्ञा पुं॰ [ स०] ग्रहकोप । वृषण । मुष्क (को०] । से ।-हरी घास०, पृ० ६२ । फेलो-सज्ञा पुं० [अं० फेलो ] सभासद । सभ्य । जैसे, विश्वविद्या- फैरी-संज्ञा को [ प्र० फायर ] बंदूक, तोप प्रादि हपियारो का दगना। लय का फेलो। क्रि० प्र०-करना ।-होना। फेल्ट-सज्ञा पु० [घं० फेल्ट ] नमदा। जमाया हुआ कन । जैसे, फेल्ट की टोपी। फैल-संज्ञा पुं० [अ० फेल ] काम । फार्य । उ०-शैल तजि बैल तजि फैन तजि गैलन में, हैरत उमा को यों उमापति फेस-सञ्ज्ञा पुं॰ [ पं० फेस ] १. चेहरा। मुंह । २. सामना । ३. हितै रहे । -पद्माकर (शब्द०)। २. क्रीड़ा। खेल । ३. टाइप का वह ऊपरी भाग जो छपने पर उभरता है। ४. घड़ी का सामने का भाग जिसपर सूई और घंक रहते हैं। क्रि० प्र०-करना ।-मचाना । फेसना-क्रि० स० सं० पेपण ] दे॰ 'पीसना' । उ०-सुलेमान जमसेद नू', फेस गयो जम फाक।-बांकी० प्र०, भा० २, फैल २-संज्ञा सी० [स० प्रसृत, वा प्रहित, प्रा० पयल्ल ] १, फैला पृ०४४ । हुमा । २. विस्तृत । लंबा चौड़ा । २. फैलाव । विस्तार । फेहरिस्त-संशा स्त्री० [ फेहरिस्त ] दे० 'फिहरिस्त'। फैलाना-कि०म० [सं० प्रहित वा प्रसृत, प्रा० पपल्ल+हिं० ना फैंसी-वि० [पं० फैन्सी ] १. देखने में सुंदर । प्रच्छी फाट छांट (प्रत्य॰)] १. लगातार स्थान घेरना । यहाँ से वहा तफ या रंगढग का। रूपरंग में मनोहर । जैसे, फंसी छाता, । बराबर रहना । जैसे,-जंगल नदी के किनारे से पहाड़ तक फैसी धोती। २. दिखा। वो ऊपर से देखने में सुघर पर टिकाक न हो । सहक भढ़क का । संयोकि०-जाना। फैट, फैंटा+-संज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'फेंटा' । उ०—(क) मातुर २. अधिक स्थान छकना । ज्यादा बगह भेरवा। पधिक व्यापक न छोह हाहा नेफ फंठ छोरि वैठो मोहि वा विसासी को है होना । विस्तृत होना । पसरना । संकुचित या थो स्थान व्योरो बूझिबो घनौ ।-रसखान, पृ० ४६ । (ख) कठ फूल में न रहना। अधिक बड़ा या लंबा चौड़ा होना। इधर घागो, फैटा फूल फूल गाछी ।-नंद० प्र०, पृ० ३७६ । उधर बढ़ जाना। जैसे-(क) खूब फैलकर बैठना । (ख) फैकल्टी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] विश्वविद्यालय के मतगंत किसी विद्या गरमी पाकर लोहा फैल जाता है। उ०-पांव घरै जित ही नखरा । मकर। फैला है।