पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/९०

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३३२६ ७. 1 बंटा बंदनवार मल्पा० बंटी ] गोल अथवा पोकोर कुछ छोटा डब्बा । जैसे, सड़ जाता है । (ख) चारो प्रोर से बंद मकान में प्रकाश या पान का बंटा ठाकुर जी के भोग का वटा । उ०-(क) हवा नहीं पहुंचती। २. जो इस प्रकार घिग हो कि उससे कोऊ बंटा कोक चादर लिए ठाड़े हैं।-दो सौ बावन०, अंदर कोई जा न सके । ३. जिसके मुंह अथवा मार्ग पर पर- भा० १, पृ० ३३ । (ख) बंटा जमल जोत के मानहु ।- वाजा, ढकना या ताला प्रादि लगा हो। जैसे, बंद मंदूक, बंद इंद्रा०, पृ०६१। कमरा, बंद दुकान । ४. जो खुला न हो। जैसे, बद ताला । ५. चंटा-वि० छोटे कद का। छोटे आकारवाला। जिसका मुह या अगे का मार्ग खुला न हो । जैसे,—(क) बंटा-संज्ञा पुं० [हिं० बट्टा ] दाग । ऐव । कलंक । दोष । उ०- कमल गत पो बंद हो जाता है । (ख) शीशी बंद करके रख जो भौतिक वस्तुओं में तो बंटा लगा ही चुका है। कंकाल, दो। ६. (किवाड़, ढकना, पल्ला आदि) जो ऐसी स्थिति में पृ० ७७। हो जिससे कोई वस्तु भीतर से बाहर न जा सके पीर बाहर वंटी'- संज्ञा स्त्री० [हिं० ] हिरन प्रादि पशुओं को फैमाने का जाल की चीज अंदर न घा सके । जैसे,-(क) किवाड़ पाप से या फंदा। आप बंद हो गए । (ख) इसका ढकना बंद कर दो। जिसका कार्य रुका हुप्रा या स्थगित हो। जैमे,--कल दफ्तर वंटी-संज्ञा सी० [हिं०] अंटी। दे० 'बंटा' । उ०-नव रेडा ने श्री बंद था । ८. जो चलान चलता हो । जो गनि या व्यापार ठाकुर जी को अपनी स्त्री के माथे पधराय के माला बंटी में करि कै दियो ।-दो सौ बीवन०, भा॰ २, पृ० ७३ । युक्त न हो । रुका हुमा। थमा हुप्रा । जैसे, मेह बंद होना, घड़ी बंद होना, लड़ाई बंद होना। ६. जिसका प्रचार, वंडो-वि० [हिं० बाँड़ा ] दुमकटा । पुच्छहीन । बांडा । प्रकाशन या कार्य प्रादि रुक गया हो। जो जारी न हो। बडल-संज्ञा पुं० [40] कागज या कपड़े में बंधी हुई छोटी गठरी। जिसका सिलसिला जारी न हो। जैसे,—(क) इस महीने पुलिंदा । जैसे, अखबारों का बंडल, किताबों का बंडल, मे कई समाचारपत्र बंद हो गए। (ख) घाटा होने के कारण कपड़ों का बंडल। उन्होंने अपना सब कारवार बंद कर दिया। १०. जो किसी वंडा'--संज्ञा पुं० [हिं० वटा ] एक प्रकार का कच्चू या अभई जो तरह की कैद में हो। आकार मे गोल, गाँठदार और कुछ लंबोतरी होती है। बंद३–प्रत्य० १. बंधा हुआ। जैसे, पाबंद । २. जोड़ने या बांधने- बंडा--संज्ञा पुं० [ स० बन्ध ] छोटी दीवार से घिरा हुआ वह स्थान वाला । जैसे, नाल बंद [को॰] । जिसमें अन्न भरा जाता है । बडी बखारी । बंद-वि० [सं० वन्य ] दे० 'वंद्य' । वडी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बाँडा (= कटा हुआ) ] १. बिना प्रास्तीन बदगी-संज्ञा स्त्री० [फा०] १. भक्तिपूर्वक ईश्वर की वंदना । की मिरजई । फतुही । कुरती। २. बगल बंदी नामक पहनने ईश्वराराधन । २. सेवा । खिदमत । ३. मादाब । प्रणाम । का वस्त्र । सलाम । ४. नम्रता । विनम्रता (को॰) । वंडैला--संज्ञा पुं० [हिं० वंडा +ऐला (प्रत्य॰) बा हिं० बनैला ] बंदगोभी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बंद +गोभी] करमकल्ला । पात गोमी । जंगली सूपर । उ०-खुदा की कसम आपके काले कपड़ों से बंदन'-संज्ञा पुं० [सं० वन्दनी (गोरोचन) ] १. रोचन । रोली। मैं समझा कि बंडेला कुसुम के खेत से निकल पड़ा। उ०-ग पंग घरचे प्रति चंदन । मुंडन भुरके देखिय फिसाना०, भा० १, पृ० २। बंदन ।-राम चं०, पृ० ५। २. ईगुर । सिंदुर । सेंदुर । वंद-संज्ञा पुं० [ फा०, तुल० सं० बन्ध ] १. वह पदार्थ जिमसे कोई उ०-वंदन भाल नयन विच काजर ।-गीत (जब्द०)। ३.बंदनार । वस्तु बांधी जाय बंधन । उ०-चौरासी को बंद छुडावन पाए सतगुर पाप री। कबीर श०, पृ० ८६ । २. पानी रोकने बंदन-संज्ञा पुं० [सं० वन्दन] दे० 'बंदन' । उ०-कियो रणथंमहि फा घुस्स । रोक । पुश्ता । मेड । बांध। विशेष-२० बंदन धीर ।-ह. रासो, पृ० ६३ । 'बधि' । ३. शरीर के अंगों का कोई जोड़ । बंदनता-संशा सी० [सं० वन्दनता ] बंदनीयता । प्रादर या बंदना क्रि० प्र०-जकड़ जाना ।-ढीले होना । किए जाने की योग्यता। उ०-चंद्रहि वंदत हैं सब केशव ४ वह पतला सिला हुपा कपड़े का फीता जिससे अंगरखे, चोली ईश ते बंदनता अति पाई।-शव (शब्द०)। प्रादि के पल्ले बांधे जाते हैं। तनी। ५. कागज का लंबा बंदनमाल-प्रज्ञा पुं० [सं० वन्दनमाल ] [ सी० बंदनमाला ] दे० और बहुत कम चौडा टुकडा । ६. उर्दू कविता का टुकडा या 'बंदनवार'। २०-(क) मुक्ता बंदनमात जुलसै । जनु पद जो पांच या छह चरणों का होता है। ७. बंधन । कैद । प्रानंद भरे घर हंसें ।-नंद० ग्र०, पृ० २३५ । (स) मालनि ८. चौसर में के वे घर जिनमे पहुंचने पर गोटियां मारी सी जहँ लछिमी लोले । वंदनमाला बांधति डोले ।-नंद० नहीं जाती। ग्रं, पृ० २३१ । वंद -वि. १. जिसके चारो और कोई अवरोध हो। जो किसी पोर बंदनवार-सज्ञा पु० [सं० वन्दनमाल या वन्दन+द्वार (प्रा. से खुला न हो। जैसे-(क) जो पानी बंद रहता है, वह वार ) ] फूल, पत्ते, दूद इत्यादि की बनी हुई वह माला जो