पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१७१

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मिष्टान ३६३० मिसल मिष्टान-सज्ञा पुं० [० मिष्टान्न ] दे० 'मिष्टान्न' । उ०-दस एक साल और निकला था, शहर भर के मकानो को मिसमार महल संग हेमरा मिष्टान महारे । -प० रासो, पृ० १७६ । कर दिया ।—फिसाना०, भा० ३, पृ० ५०८ । मिष्टान्न-मज्ञा पुं॰ [ म० ] मिठाई। मिसमपी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ म० मसि + हिं० मुख + ई (प्रत्य० -) ] मिस'-नज्ञा पु० [ स० मिप ] १ बहाना। हीला। जैसे,—उन्होने मसिमुखी । लेखनी । उ० - लेखन रदनी मिममुपी कठी कलम उपदेश के मिम ही उन्हें बहुत कुछ खरी खोटी कह सुनाई। कहायो –अनेकार्थ०, पृ० ११२ । ० नकल । पापड । उ० - भांड पुकार पीर बस, मिम ममुझे मिसर' - सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'मिस्र' । मव कोय।-वृद ( शब्द०)। मिसर-सज्ञा पुं॰ [हिं॰] श्रेष्ठ व्यक्ति । विद्वान् । पडित । दे० 'मिश्र' । मिस -मज्ञा पुं० [फा०] ताँवा । उ.-वेद पढता ब्राह्मण मारा सेवा करता स्वामी। प्ररथ यो-मिसगर = तावे का काम करनेवाला । तमेरा। करता मिसर पछाड्या, तूर फिर मैमती ।—कवीर ग्र०, पृ० १५१ । मिस-सज्ञा स्त्री॰ [अ० ] कुंयारी लडकी । कुमारी। मिस-मज्ञा स्त्री॰ [ म० श्मश्रु ] दे० 'मस' | उ० मिस भीने मिसरा-सज्ञा पुं० [अ० मिसरन] कविता, विशेपत उर्दू या फारसी श्रादि की कविता का एक चरण | पद । मुमयक मुख निपट विराजत नूर । मनौ वीर उर काम के उगे श्रानि अकूर ।-पृ० रा०, ११७५५ । मुहा०—मिसरा लगाना = किसी एक मिसरे मे अपनी ओर से मिसकाली-सज्ञा पुं० [अ० मिस्काल (= चार माशे की तौल ? ] रचना करके दूसरा मिसरा जोडना । एक प्रकार का पुराना सिक्का । उ०-बादशाह ने उस यौ॰—मिसरा तर = सुदर और उपयुक्त मिसरा। मिसरा तरह । वाग के स्वामियो को जो उसके सबधी थे एक महत्र सिक्का मिसरये सानी = दूसरा मिसरा । मिमकाली दिया। हुमायूँ०, पृ० ६ । मिसरातरह-सज्ञा पु० अ० मिसरा+फा० तरह ] वह दिया हुआ मिसकीन-वि० [अ० मिस्कीन ] जिसमे कुछ भी सामर्थ्य या मिमरा जिसके आधार पर उसी तरह को गजल कही जाती बल न हो। वेचारा । दीन । २ नम्र। विनम्र । खाकसार । है। पूर्ति के लिये दी हुई ( उर्दू या फारमी कविता की ) उ०-शाह सिकदर देखकर, बहुत गए मिसकीन ।—कवीर म०, समस्या । पृ० ११४ । ३ गरीव । निर्धन । ४ सीधा सादा । मिसरी'-सञ्ज्ञा पुं० [अ० मिस्री ] १ मिश्र देश का निवासी । मिश्र मिसकीनता-सज्ञा स्त्री० [अ० मिसफीन + हिं० ता (प्रत्य॰)] नामक राष्ट्र का नागरिक । १ दीनता। गरीबी। २ नम्रता । उ०-एही दरवार है मिसरी-सञ्ज्ञा स्त्री० १ मिस्र मे बोली जानेवाली भाषा | मिस्र देश गरव तें सरव हानि, लाभ जोग छम को गरीवी मिसकोनता।- की भाषा । २ दोबारा वहुत साफ करके कूजे या थाल मे तुलमी ( शब्द०)। जमाई हुई दानेदार या रवेदार चीनी। उ०—कह मिसरी फंह मिसकीनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ०] मिमकीन होने का भाव । दीन या ऊंख रस नही पियूस समान । कलाकद कतरा कहा तुव अधरा दरिद्र होने का भाव । रस पान ।-स० सप्तक, पृ० ३४६ । मिसफौट-मना पुं० [हिं० मिस्कोटे ) गुप्त मत्रणा । दे० 'मिस्कोट' । विशेष - प्राय यह कूजे या कतरे के रूप मे बाजारो मे बिकनी उल-इधर तो यह मिमफोट हो रही थी। रगभूमि, भा०२, है। यह वैद्यक में स्निग्ध, धातुवर्धक, मुखप्रिय, बलकारक, पृ० ५८६। दस्तावर, हलकी, तृहिकारी, सब प्रकार के रोगो को मिसटॉन, मिसठाणT- सज्ञा पु० [ सं० मिष्टान्न ] दे॰ 'मिष्ठान्न' । शात करनेवाली यौर रक्तपित्त को दूर करनेवाली मानी उ०-( क ) मॉपहि पैपान मिमटान महा अमृत के, उगलत कालकूट ह मै अभिमान के।-मुदर० ग्र० (जी०), मुहा०—मिसरी की ढली = बहुत ही माठा या मधुर पदार्थ । पृ० १०४ । (स) अदतारां घर मखरस, नह कारण मिस मिसरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] एक प्रकार की शहद को मक्सी। ठाण । मन कारण मिसठाणरो, जठ भूख रम जाण । - मिसरोटी-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० मिस्सा +रोटी ] १ मिम्मे आटे की बाँकी० ग्र०, भा० ३, पृ० ८१ । वनी हुई रोटी। विशेप दे० 'मिस्सा' । २ फडे आदि पर सेंक- मिसन-सक्षा स्पी० [हिं० मिसना (= मिलना)] ऐसी भूमि कर बनाई हुई बाटी । अगाकडी।। जिसकी मिट्टी मे बालू भी मिली हो । बालू मिली हुई मिट्टी मिसल-सच्चा स्त्री० [अ० मिसिल ] १ सिक्खो की जमीन । जो अलग अलग नायको की अधीनता मे स्वतत्र हो गए थे। मिसनार-क्रि० अ० [सं० मिश्रण ] मिश्रित होना। मिलना । विशेप-गुरु नानक के वदा नामक शिष्य की देखादेखी और भी मिसना-मि० अ० [हिं० 'मीसना' का भक० रूप ] मीजा या अनेक सिख सरदारो ने अपने अपने समूह स्थापित कर लिए मना जाना । मीमा जाना। थे, जिन्हें वे मिसल कहते थे। जैसे, भगियो की मिसल, मिसमार-वि० [अ० मिस्मार ] नष्ट । समाप्त । ध्वस्त । उ०- रामगढिया मिमल, अहलूवालिया मिसल आदि । गई है। वे अनेक समूह