पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१७८

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मीनांडी मीमांसा मीनांडी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० मीनाण्डी ] एक प्रकार की शक्कर । मीनारा-सचा पुं० [अ० मनारद, हिं० मीनार ] दे० 'मीनार' । मीना-सशा स्त्री॰ [ स० ] ऊषा की कन्या का नाम जिसका विवाह मीनालय-सज्ञा पुं० [सं०] समुद्र । कश्यप से हुआ था। मीनी-सज्ञा स्त्री० [सं० मीम ] दे० 'मीन' । उ०-वग मीनी का मीना-सझा पु० [ देश० ] राजपूताने की एक प्रसिद्ध योद्धा जाति । ध्यान धरि, पसू विचारे खाइ । दादू०, पृ० २०७ । उ० च्यारि सहस मीना प्रवल बैठे प्राइ वलाइ । मीमासक-सशा पुं० [स०] १. वह जो किसी बात की मीमासा करता पृ० रा०, ७। ७८। हो । मीमासा या व्याख्या करनवाला । पालोचक । समीक्षक । विशेप - इस जाति के लोग बहुत वीर होते है और युद्ध मे उ.--श्रव्य काव्य के मीमासक वाणी के वैचित्र्य का काव्य का इनकी प्रवृत्ति बहुत होती है। किसी समय ये बहुत बलशाली लक्षण मानते थे और दृश्य काव्य के विवेचक रस का।-रस०, थे और प्राय लूटमार करके अपना निर्वाह करते थे। महाराणा पृ० १। २. वह जो मीमासा शास्त्र का ज्ञाता हो। मीमासा प्रताप को अपने युद्धो मे इनसे बहुत सहायता मिली थी। का पडित । ३ पूर्व मीमासा के सूत्रकार जीमनि ऋपि । ४ मीना ३- सचा पु० [फा०] १ २ग विरगा शीशा । २ एक प्रकार कुमारिल भट्ट का एक नाम । ५. भाष्यकार शबरस्वामी का का नीले रंग का कीमती पत्थर । ३ कीमिया। ४ सोने, चांदी एक नाम । ६ रामानुज का एक नाम। ७ माधवाचार्य का आदि पर किया जानेवाला रग विरग का काम | एक नाम। यौ०-मीनाकारी। मीमासन-सञ्चा पु० [सं०] [वि० मीमासित ] किसी प्रश्न की मीमासा या निणय करन का काम । ५ शराब रखने का कटर या सुराही । उ०-मीना की ग्रीवा से झर झर गाती हो मदिरा स्वणिम स्वर ।-मधु०, पृ०६४ । मीमासा-मज्ञा स्त्री० [सं०] १. किसी तत्व का विचार, निर्णय या मोनाकार-सञ्ज्ञा पुं० [फा० ] वह जो चाँदी या सोन आदि पर विवेचन । अनुमान, तक आदि द्वारा यह स्थिर करना कि कोई बात कैसी है। उ०-अश्लीलता का मामासा क रामय अपन रगीन काम बनाता हो । मीना करनेवाला । पक्ष को न देखकर दूसरे पक्ष को भी दखना चाहिए।--रस क०, मीनाकारी-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ सोने या चांदी पर होनेवाला रगीन काम । २ किसी काम मे निकाली या की हुई बहुत पृ० ४ । २. हिंदुओ के छह, दर्शनो मे से दो दर्शन जा पूर्व मीमासा और उत्तर मीमासा कहलाते हैं। बडी वारीकी। विशेष-साधारणत. मीमासा शब्द से पूर्व मीमामा का ही ग्रहण मुहा०—मीनाकारी छांटना= व्यर्थ का छिद्रान्वेषण करना । निरर्थक दोष निकालना । बाल की खाल निकालना । होता है, उत्तर मीमासा 'वेदात' क नाम से ही अधिक प्रसिद्ध है। मीनाक्ष-वि० [ स० मछली के समान मुदर आँखोवाला। ३ जैमिनि कृत दर्शन जिसे पूर्व मीमासा कहते है और जिसमे वेद मीनाक्ष-सञ्ज्ञा पु० एक राक्षम का नाम । के यज्ञपरक वचना की व्याख्या वह विचार क साय की मीनाक्षी-सक्षा सो. [ स०] १. भगवती दुर्गा का एक नाम । एक एक देवी जिनका मूर्ति मदुराइ ( तामलनाडु ) म है । २. कुबेर विशेप-इसके सूत्र जोमनि के हैं और भाष्य शबर स्वामी का है। की कन्या का नाम । ३ गाडर दूब । ४ ब्राह्मा वूटो। ५ मामासा पर कुमारिल भट्ट के 'कातत्रवातिक और श्लाकवातिक' शक्कर । चीनी। भी प्रसिद्ध है। माधवाचाय ने भी 'जैमिनीय न्यायमाला विस्तार' मीनाबाजार-सञ्ज्ञा पु० [फा० मानाबाजार । १ बाजार जिसम नामक एक भाष्य रचा है। मामासा शास्त्र मे यज्ञो का विस्तृत हारा मोता जैमा कामता वस्तुए बिकता हा । २ वह बाजार विवेचन है, इससे इसे 'यज्ञविद्या' भी कहत है। बारह अध्याया जिसमे स्त्रिया के उपयोग का हा सारा चाज हा भार जिन्हे मे विभक्त होन के कारण यह मीमासा 'द्वादशलक्षणा' भी वे ही खरीदता बेचती हो। उ०-इस उत्सव म मीनावाजार कहलाती है। भी लगाया जाता था, जहाँ सब अमीर उमरावा को 'न्यायमाला विस्तार' मे माधवाचार्य ने मीमासासूत्रो क ।वषय मे स्त्रियाँ पाकर दुकानें लगातो थी और सादा भी प्राय. सक्षप में इस प्रकार बताया है-पहल अध्याय म वाघ, जनाना रखा जाता था।-राज० इति०, पृ० ७६६ । अर्थवाद, मत्र, स्मृति और नामवय की प्रामाणता का विचार विशेप-अकवर ने एक ऐसे ही बाजार का संचालन किया था। है। दूसरे मे अपूर्व कर्म और उसक फल का प्रातपादन तथा मीनाम्रोण-सञ्चा पु० [स०] खजरीट पक्षा । ममाला । खजन । विाय ओर निपेय का प्रक्रिया है, तीसर म श्रुतिालग वाक्यादि मीनार- सच्चा स्त्री० [अ० मनार ] १ ईट, पत्थर आदि की वह की प्रमाणता और अप्रमाणता कहा गई है, चाय मानत्व और चुनाई जो प्राय गोलाकार चलती है। यह प्राय किसी प्रकार नैमित्तिक यज्ञो का विचार है, पाँचवे म यशा और श्रुतिवाक्या की स्मृति के रूप में तैयार की जाती है । स्तभ । लाठ । २. के पूवापर सवय पर विचार कया गया है, छठे म यज्ञा का करन मसजिदो आदि के कोनो पर बहुत ऊंची उठी हुई इसी प्रकार और करानेवाला के माधकार का निर्णय है, सातवे और आठ म की गोल इमारत जो सभे के रूप म होती है। ३. वह ऊंचा एक यज्ञ की विधि को दूसरे यज्ञ मे करन का वणन है, नवे में स्थान जहाँ रोशनी की जाती है । मत्रो के प्रयाग का विचार है, दसवें म यशो म कुछ कमो क गई है।