पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१८०

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२०१६ मुजक मोरकारवाँ मीरकारवा-'मीरवाफिला'। मीरसामान- पुं० [फा०] वह प्रधानमनाग जो समास या मीरजा-मक्षा पुं० [फा० मीरजा] १ अमीर या सरदार का नया वादशाहो की पायशाला की व्यगन्धा परता।। अमीरजादा । २ मुगल शाहजादो का एक उपाधि। ३ मैयद मीरहाज-रश पुं० [फा० मीर ५०+ इज्ज ] जिरा या सदार मुसलमानो की एक उपाधि । उ०-'यकरग' ने तलाश किया या हाजियो के समूह का प्रधान । है बहुत वले । मजहर मा इरा जहा मे कोई मीरजा नहीं। मोगस-सा ग्री० [२०] वह धन गपति जो मिली। मरने पर विशेष-दे० 'मिरजा'। उसके उनगाधिकारी को मिले । नरपा । पानी। मीरजाई-सशा जी० [ फा० मीरजाई १ मीरजा होना भार। मीगसी-सज्ञा पुं० [अ० मीराम ] [ सी. मीरामिन ] प्रकार २ मीरजा का पद या उपाधि । ३ मरदारी। अमीरी । ४ क मुसनमान जा पश्चिम म पाए जात। अारो या शाहजादो का सा ऊंचा दिमाग होना । ५ अभिमान विशेप-ये प्राय गाने बजाने का नाम पते है प्रार मागाशी घमड । शेसी। ६ दे० 'मिरजई । नरह मारागपन करा लागा को प्रगान करते हैं। मीरफर्श-सज्ञा पु० [फा० मीरफर्श] वे गोल, कचे और भारी मीरी-मशा सी० [फा० मीर+ई (प्रत्य॰)] , मी दोन गा पत्थर जो वडे बडे फर्शा या चांदनिया ग्रादि के कोना पर भाव । २. मन में किमी लडके का मरप्रयम हाना । गत इसलिये रखे जाते है जिसमे वे हवा में उड न जायं। में नको का अपना दांव रोल कर मेल ग यनग हा जाना । मीरवख्शी-सरा पु० [फा० मीरवल शी ] मुसलमानी रागत्व कान मील'-सज्ञा पुं० [सं०] १ वन । जगल । २. निमा (२०) । का एक प्रधान कर्मचारी जिसका काम वेतन बाँटना होता था। मील-सज्ञा पुं० [अ०] दूरी की रक नाप जो १७६० गज की हाती है। से भाधारण काम का प्राधा मानते हैं। मीरवहर-सज्ञा पुं० [फा० मीरवल ] दे० 'मीरवहरी' । यो०-मील के पत्थर = प्रगति का प्रतीक । याा का एप भीजल मीरवहरी-सज्ञा पुं० [फा०] १ मुसलमानी राजत्यकाल मे जल- सेना का प्रधान अधिकारी। २ वह प्रधान कर्मचारी जो का मूचर। वदरगाहो प्रादि का निरीक्षण करता था। मीलक-मा पुं० [सं० ] रोहित मद्यलो । रोहू । मीलन-सा पुं० [सं०] [वि० मीलनीय, मीलित] १. बद मीरवार-सज्ञा पुं० [फा० ] पुराने मुसलमानी समय का वह अधिकारी करना । जैम, नेत्रमोन्नन । २ मचित करना । पिकोटना । जो लोगो को किसी सरदार या बादशाह के मामने उपस्थित मीलित'-वि० [सं०] १ वद किया प्रा । २. निको हुप्रा। होने से पहले उन्हे देखता और तब उपस्थित होने की प्राजा मोलित'-सग पु० एक अनकार जिनम यह रहा देता था। जाता है कि एक होने के कारण दो वस्तुमा ( उपमेय और उपमान ) मोरभुचड़ी-सज्ञा पुं० [फा० मीर+देश० भुचडी ] एक कल्पित पीर मे भेद नहीं जान पटता, वे मे मिनी जान पाती।। जिरो हिजडे अपना प्रादि पुरुप और प्राचार्य मानते हैं और जमे,-पंसुरी लगी गुलाब की गात न जानी जाय । जिसके वश मे वे अपने आप को समझते हैं । मीवग-सा पु० [सं०] एक बहुत यटी मग्या का नाम । (बौद्ध)। विशप-कहते हैं कि ये स्त्रियो के वेश मे रहते, चरसा कातकर मीवर'-वि० [ 10 ] १ हिंसक। २ पूज्य । अपना निर्वाह करते और छह महीने स्त्री तथा छह महीन मीवर'-सा पु० सगापति । पुरुष रहा करते थे। जब हीजडो मे कोई नया होगा पाकर ममिलित होता है, तब वे उना के नाम की कलाही मीवा- पुं० [ #० मीपन् ] १ पट मे का फोग। • यायु । तलते और उसे पकवान सिलाते है। कहते है, जो कोई यह हवा । ३ मार तत्व । पकवान खा लेता है, वह भी हीजडो की तरह हाथ पैर मटकान मीशान-राक्षा ० [ मुं० ] महारग्वध वृत्त । यमनमान। लगता है। मुगा-मा सो [ म० मुना] पुराणानुसार पासी गा नाम । मीरमजिल-सज्ञा पुं॰ [ फा० मीर+य० मजिल ] यह कर्मचारी जो मुचन-सा पुं० [ ० मुञ्च ] ३० मानग' । बादशाहो या लश्कर आदि के पहुचन से पहले ही मजिन या मु चना-निग[ म मुच. ) मा ITI योगा। पटाव पर पहुंनकर वहाँ सब प्रकार की व्यवस्था गरे । मुक्त करना। उ०-I71 मुम्पे पभिराम । पभिन पनि मीरमजलिस-सशा पुं० [फा०] भा या अक्वेिशन का प्रधान जरं मुर न्यान।-२००, पृ. १४ । आधिकारी । सभापति । मुछार'-11० [ म० मूर्याउ ] नदित । मूरो। मीरमहल्ला-मुश f० [फा० गीर + अ० महल्ला ] किगी मल्ले मुचार- [Fro मूए । यार (प.) । गीत। फा प्रधान या सरदार। yा गौरय गांगना । २ मि.fre मोरगुशी-सरा पुं० [फा० मीर+भ० रशी ] मुगियों में प्रधान या मुदाला-० [FOf - दान (76)] । सरदार । सबमे वा मुंशी । गुज--17 to [ज]

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गारावानी भोर या मापा। मोरशिकार-सरा पुं० [फा०] पर प्रभान पर्मचारी जो पमीन या पादशाहो के शिकार को व्ययस्था करता है। मुंजक -० [सं० नुन्जर ] पोटो पो माया रोग मां