पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५०३

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चूनरि ललचाना ४२१४ ललाई करना । अभिलाप से अधीर होना । लालसा करना । उ०-तौ ललन बु-सज्ञा पुं॰ [सं० ललदम्यु] नव का वृक्ष (को०] । मुख चद निरीछन को ललचे चख चारु चकोर लला के । ललदेया-सज्ञा पुं० [-०] एक प्रकार का पान जि फमन प्रगन दीनदयाल (शब्द०)। मे तैयार होती है। मुहा-जी ललचना = मन मे पाने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होना । ललन-सा पुं० [म०] " प्यारा वाता। दुलाग २ ललचाना -क्रि० स० [हिं० ललचना ] १ विमी के मन मे लालच का । पाक मार । ३ नाया के लिये प्यार तो शन्द । उत्पन्न करना । प्राप्ति को अभिलापा से अधीर करना । लालसा प्रिय नायक या पति । 30-(1) ललन चन्नन वो चित धरी, उत्पन्न करना।२ मोहित करना। लुभाना। उ० - कन न पलन की प्रोट -बिहारी (गन्द०)। (प) मानह मुप, चारु चुई सी पर चटकीली हरी अंगिया ललचावै ।-पद्माकर दिग्वरावनी दुनिहिनि करि अनुगगग । मासु मदन, मन जलन, ( शब्द०)। ३ कोई अच्छी या नुभ'नेवाली वस्तु मामने सौतिन दियो गुहाग ।-विहारी (जन्द०)। ४ ले । मोटा। रखकर किसी के मन मे लालच उत्पन्न करना। कोई वस्तु ५ जीभ को लपलपाना। जीभ लपलप फरना या हि नाना दिखा दिखाकर उसके पाने के लिये अधीर करना। जसे,- डुलाना (को०)। ६ माल । मागू या पेठ । ७ पियार या उसे दूर से दिखाकर लाचाना, देना कभी मत । चिगजी का पेड । प्रियाल । मुहा०- जी या मन ललचाना = मन मोहित करना । मुग्ध करना । ललना--गशा स्रो॰ [सं०] १ स्त्री। गामिनी । २ जिहा। जीभ । लुभाना । उ०—गनी में प्राय, तान मोहिनी सुनाय, मेरो मन ३ एक वर्णवृत्त जिमके प्रत्येक चरण में भगण, मगरण और ललचाय भरघो कानन मे रस है ।-(शब्द०)। दो नगण होत है । उ०-सारत ही सोग परे पलना । चारित ललचानोg'-क्रि० अ० दे० 'ललचना' । उ०—(क) भौहन चढाय भंया री मुधरी ललना । -छद प्रभाव र (गन्द०)। ४ विना- छिनु रहै लखि ललचाय, मुरि मुसुकाय छिन सखी सो लपटि सिनी या कामुक औरत । म्वैरिणा (को०)। जाय।-रघुनाथ (शब्द०)। (ख) सांझ समै दीप को यो०-ललनाप्रिय = (१) प्रीता को प्रिय । जा पियो को प्रिय बिलोकि ललचाय सोऊ लबे को चहत दोऊ कर को उठाव हो। (२) स्वादु । स्वादिष्ट । नलनावी = पौरता में घग रो।-दीनदयाल ( शब्द०)। हुा । महिलामो से प्रावृत । ललचौहाँ-वि० [हिं० लालच +ौहाँ (प्रत्य॰)] [वि॰ स्त्री० ललनाप्रिय-मशा पुं० [सं०] १ ह्रीवेर नामक गधन्य । २ क्दन। ललचौही ] लालच से भरा । ललचाया हुआ। जिमसे प्रबल कदर का वृक्ष । लालसा प्रकट हो। उ०-(क) खरी खरी मुसुकाति है, लखि ललनिका-सशा सो [म०] ललना । स्त्री । साधारण स्त्री। ललचौहे लाल ।-बिहारी (शब्द)। (ख) चितई ललचीहैं ललना-सश स्री० [सं० नलिनी पास का न तो । चखनि डटि घूघट पट माहि ।-विहारी (शब्द॰) । ललनी-मशा सी० [सं० ललन नलन का सी०६५। दे० 'ललन' । ललछौहाँ - वि० [हिं० लाली + छूना ] लाली लिए हए । कुछ कुछ उ०-झरि झारि झरोम्या झांकि रहा लतनी ललना मुख लाल। उ०-पा, समदृष्टि प्रवृति । विपरामा आगन मे जोहत है।-मत० दारया, पृ० ६३ । स्वर्गिक स्मिति भर, फूल उठे ये पाडू, ललछौहे मुकुलो मे ललरी1-पी० [ स० लता ] १ पान का नीचे गा लटरता सू दर ।-प्रतिमा, पृ० १५ । हुना भाग। २ गले के भीतर नटकता मारापिट । घाटो। ललजिह्व-वि० [स०] १ जीभ लपलपाता हुआ। २ भयकर । काना।लगर। खूखार । ललल्ल- पु० [म०] तुतलाहट । हाताकर बोलना [को०] । ललजिह्व -सञ्ज्ञा पुं० १ कुत्ता । २ ऊंट । ललही छठ-सज्ञा स्त्री॰ [10] हलपष्ठो । भाद्रपर गण पष्ठी जिग ललडिव-सज्ञा पु० [ स० ललडिम्ब ] भीरा। लकडी या धातु का दिन स्त्रिया देवी का प्रा और पूजन करना र और हरू के बना हुमा एक प्रकार का सिलोना यो०] । कर्पण से उत्पन्न अन्न नही ताती। विशेप-यह लट्टू के आकार का होता है। बच्चे इसके बीच की लला- सज्ञा पुं० [सं० तलना । हि० 'लाल' का रूप ] [पी० लली| कील मे रस्सी लपेटकर इस प्रकार फेंकते है जिससे वह देर १ प्यारा या दुलारा लडका । २ नका । कुगर । ३ लडके तक नाचता रहता है। या कुमार के लिये प्यार का शन्द । ४ न यक या पति क लिये प्यार का शब्द । पिय नायक या पति । उ०-नैन नगइ ललत्-वि० [सं०] १ खेलता हुया । क्रीडारत । २ हिलता डुलता या कांपता हुआ । ३ लपलपाता हुआ । जैसे जीभ [को०] 1 कयौ मुमुकाइ लला फिर आइयो पेलन हारी। पाकर (शब्द०)। यो०-ललज्जिह्न = ललजिह्व । ललकिब = ललडिंब । ललाई -सशा पी० [हिं० लाल + आई (प्रत्य॰)] ल लमा । मुखौं । ललताई- सञ्चा सी० [हिं० लाल ] है 'लालिमा'। उ-मुख लाली । उ०—(क) रंगीले नैन मे प्रौललाई दौरि प्राई पर छवि बाढी अधिकाई । गइ पियराइ भई ललताई।-इद्रा०, है।-प्रताप (शब्द॰) । (ख) लाल ललाई ललितई कलित पृ० १६३ । नई दरसाय ।-रामसहाय (शब्द०)। 1