पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

४० दृघ के निर्देशों का अधार लैवर अनेक विद्व नो द्वारा मे अग्रेजी और इतर भापामो के कोण वने ।। ( ५ )--पाँचवे चरण में अनेक वर्षों में संकलित सामग्री की सहायता से अवसफोर्ड इग्लिश अग्रेजी के क्लिट शब्दो के शब्दसग्रहवाले अर' कोश बने । वेष्ली द्वारा डिक्शनरी का प्रथम रूप और सर करण 9व।शित हुा । इनमे सामान्य शब्दों को जोड़ने के साथ साथ व्युत्पत्ति निर्देश की भी चेष्टा की गई। अब शब्दप्रयोग के उदाहरण भी संगृहीत होने अाठ सौ वर्षों के अग्रेजी साहित्य में प्रयुक्त लिखित स्पो, थ । लगे। ( ६ )--छठी अवस्था में उच्च कोटि के के शनिर्माण की चेष्ट। प्रादि वा यथासंभव विकास इस फोगा में दिख या गया। प्रथम प्रय ग और अर्थ पटवरण के लिये सत्य में प्रयक्त उद्धरण का उपयोग से लेकर उनके प्रमय प्रयोगम की ज ४ नी f खाई गई । झापा के प्रच- प्रारभ हुआ। (७)-gf के साथ साथ या फुछ पहले से ही अंग्रेजी लित अप्रचलित--प्रायः सभी पदपों अौर उनके प्रथांश की वैकसिक कोशो में प्रयज्यमान माप छाड्दो के उच्चारणसकेत देने की भावना प्रारंभ ३ तिहासिक विवरण भी यथ सभव दिया गया है । अप्रचलित घच्दो हई । (६)--अष्ट्र में स्थिति वह है जव रिचर्डसन द्वारा शब्दव्याख्या के पलव्ध प्रतिम प्रयोग की सूचना देने का भी प्रयास हुअा। भापा- छ डेवर केवल दाहरणमाध्यम से अर्थ बोध का प्रयास है । और आगे वैज्ञानिक अध्ययन र अनुशीलन के ग्राघार पर शब्दो की व्युत्पत्तियों चलकर अतिम रूप से इन सयकी परिणति डा० ट्रैच की प्रेरणा से का भी सयोजन किया गया । इस ऐतिहासिक को, का महत्व था इसकी निमित महाकोश में दिखाई देती है। शब्दोच्चारण, शब्द, अर्थ शब्दयथासमव संपूर्णता । इसी आधार पर इस युग के भाषाविज्ञों ने इस प्रयोग और व्युत्पत्ति संबद्ध शब्दप्रयोग के इतिहासक्रम अदि को कोश को समादर दिया और इसकी प्रशसा हुई । इसकी सामग्न के सक- विस्तृत र ऐतिहासिक अायाम के साथ कोश में अनुस्यून करने की लन में पचास लाख शब्द चिटें एकत्र हुई थी और उनके संकलन का वैष्टा हुई है। कार्य लगभग दो सहस्र उत्साही पाठक ने किया था। इस संदर्भ में कुछ विस्तार से विवरण देने का तात्पर्य इतना ही है कि हम हिंदी के सबसे कोशविज्ञान की प्रारंभिक स्थिति में पश्चिम के कोश भी पर्याय बड़े वर्तमान कोश--हिंदी-शव्द-सागर--के संपादन में भी समस्त सूचित करते हैं। धीरे धीरे विभिन्न अर्थों का भी निर्देश होने आवश्यक एव अपेक्षित साधनों और उपकरणो को एकत्र करने में सर्वथा लगा। पर व्याकरण, उच्चा" णमकेत, शव्दार्थप्रयोग का इतिहास, समय नहीं हो पाए हैं। इस विपय की चच अन्यत्र की जा रही है। व्युत्पत्ति निर्देश और उदाहरण द्वारा पर्य विवरण था उनमै अभाव या । सस्कृत कोशों में भी यह नहीं था। क्योकि वे ऐसे छदौवद्ध | इसी संबध में यह भी ध्यान रखने की बात है कि उक्त कोश के शब्दसंग्रह थे जो पययिो के माध्यम से एक या अनेक अर्थों का पुन सोधित और परिवधि त संस्करण का संपादन कार्य निरतर परिचय देते थे । परतु संस्कृत के प्रसिद्ध वैयकिरण 'भानुर्जी दीक्षित चली आ रहा है । सो सवा सौ वर्षों से इलैड के कशविज्ञान द्वारा निर्मित अमरकोश की व्याख्यासुधा' नामक टीका में सभी विशारद विद्वानो की भडली सर्वदा कार्यरत रहता है । अपार धनराशि घाब्दों की व्याकरणानुसारी व्युत्पत्ति देने का स्तुत्य प्रयास किया का निरतर व्यय किया जाता है । इन समस्त साधनो के योग से और गया है। सस्था विशेष के निर्देशन में विशेप विभाग द्वारा उक्त कोश के परिप्कार, विस्तार अरि पुन संपादन की अखड यज्ञ चल रहा है। ज्ञान विज्ञान पश्चिम में ऐतिहासिक और भाषावैज्ञानिक अनुशीलन की दृष्टि ने की सभी शाखा के केशप्रेमी विद्व नो की अबाध सहायता भी कोश के आधुनिक रूप को पूर्ण बनाने का प्रयास किया। प्रथमत सदा प्राप्त होती रहती है। क शविज्ञान, भोपाविज्ञान, साहित्यविद्या फिलिप्स के कोश में शब्दमूल का व्युत्पत्ति के प्रसग में निर्देशऔर भापा एव साहित्य के धुरंधर और ऐतिहासिक सुधियों द्वारा मान्न हुआ। शब्दसागर के तत्सम और अनेक तद्भव शब्दो की उसके पुन संपादन में सभी प्रावश्यक प्रयत्न होते चल रहे हैं। इतना व्यत्पत्ति इसी रूप में सके तित मात्र है। यही से अग्रेजी कोश हो नहीं, उक्त कार्य में देश के बहुसख्यक जागरूक पाठको बा भी विना में व्यत्पत्तिप्रदर्शन का अति सामान्य प्रारभ होता है। इससे कुछ पहले पारिश्रमिक के स्वल्पाधिक सहयोग मिलता रहा है ।। या इसी के आसपास शब्दार्थबोध के लिये पर्याय मान देने के स्थान 'फिनालाजिकल सोसाइटी' की योजना के साथ साथ अनेक पर * पर अर्यसू वक व्याख्या लिखने की पद्धति अग्रभ हो गई थी । अन्य छोटे ब? कोश भी वनते रहे जो कोशविद्या की सर्वांगीणता जॉनसन से एकाध ही वर्ष पूर्व प्रकाशित मार्टिन के कोश मे के विचार से अपूर्ण भी थे तथा उनमे अन्य प्रकार की वृटियाँ या अर्थच्छायाशो को यद्यपि विस्तृत सदर्भ मे - देखने का प्रयाप्त हुआ, इसी ढग से मिलते जुलते को धनते रहे। तथापि व्युत्पत्तिसकेत वहाँ लुप्त हो गया। जॉनसान के कोश में नाना अर्थछाया और उदाहरणों के साथ साथ दिदप्रयोग के उपर्युक्त अग्रेजी कोम के प्रारभिक विकास का त्वरित सिंहाव- स्मृतिमूलक उदाहरण भी दिए गए। सकेतरूप में मूल शब्द के लोकन गरने से यह स्पष्ट हो जाता है कि (१)--अग्रेजी को निर्देश मात्र से व्युत्पत्तिसवध का सृचन किया जाता था । समानार्थक में सर्वप्रथम लिखित लैटिन शब्द सूचियों का मरल लैटिन और फ्रांसीसी पर्याय भी दिए गए । शेरिडन और वाकर - के कोश, अग्रेजी में अर्थ देने से नोवला का प्रारंभ हुमा । यह प्रथम रूप जॉनसन की अपेक्षा अल्प महत्व के होने पर भी उच्चारणसकेत. था । (२)---दूसरे मोपान पर अग्रेजी शब्दसूचियो का तथा लैटिन की दिशा में अधिक प्रयत्नशील रहे। वेवूटर के कोश मे छोटे पौर अग्रेजी शब्दसंग्रहों या विस्तार हुआ।। ( ३ )----तसरे चरण पैमाने पर कोशकला की रचनाविधानसवधी पूर्व मान्यताप्रो के में इगलिश-नैटिन के शब्दसंग्रह का कार्य हुपा । ( ४ )--चतुर्थ अवस्या उपयोग का सवाधिक प्रयास हुआ। दूसरी चोर पूर्वोक्त विशेषतायो