पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२९८

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अपेत अपंथ अपत ---मा श्री० [म० अ = नहीं +पति -प्रतिष्ठा, हि० पन] अपत्य-मशा पु० [सं०] स तान (पुत्र य कन्या) । उ०—मार्ग है। अप्रतिष्ठा । वेइज्जती । दुर्दशा । उ०—जौ मेरे दीनदयाल शत्रुघ्न दुर्गम सत्य, तुम रहो उनके यथार्थ अपत्य ।---माकेन, न होते । तो मेरी अपत करत कौरवमुन होत पईवनि श्रोते । । पृ० १७५।। | -सूर० ११५६ । यौं०-~-अपत्यकाम । अपत्यजीव । अपत्यदा । अपत्यपथ । अपत -सज्ञा पुं० [सं० प्रपत् ] विपति । अापत्ति । अपत्यविक्रयो । अपतई -सझा स्त्री० [सं० अपात्र, पा० अपत्त + हि० ई (प्रत्य॰)] १. अपत्यकाम--वि० [सं०] [वि० स्त्री० अपत्यकामा मतानेच्छुक । पुत्र की निर्लज्जता । वेहयाई । ढिठाई । उत्पात । उ०—-नयना लुये इच्छा रखनेवाला (को॰] । रूप के अपने सुख माई । अतिहि करी उन अपतई हरि सो अपत्यजीव----सज्ञा पुं॰ [स] एक पौधा जिसे पुत्रजीवी भी कहते हैं। ममताई । —सूर (शब्द०)। ३ चचे नता। उ०—कान्ह [को॰] । तुम्हारी माय महाबन सब जग अपजस कीन्हो हो) । सुनि अपत्यता--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] बाल्यावस्था । शैशव [को॰] । ताकी सब अपतई सुक मेनकादिक मोहे (ही) । नेक दृष्टि पथ अपत्यद-वि० [स०] पुत्र देनेवाला (मत्र ) [को०] । पडि गए शकर सिर टोना लागे (हो) !-—सूर (शब्द॰) । अपत्यदा--संज्ञा स्त्री० [स०] गर्मदात्री नाम का पौधा (को०)। अपतर्पण-सच्चा पु० [सं०]१ बीमारी के समय को उपवास । लघन। अपत्यपथ-सा पु० [म०] योनि [को०] । २ तृप्ति का अभाव (को०)। अपत्यविक्रो-वि० [स० अपत्यविक्रयिन्] १. सतान बेचनेवाला । अपतह –सर्व० [म० मत , प्रा० अपतह ] अपने श्राप । खुद वे २ रुपए लेकर कन्या को विवाह के लिये धेचनेवाला । बेटी खुद ! स्वय । अपने तई (को०)। उ०—हम अपनह अपनी पति बेचवा को०] । खोई, हमरे खोज परहु मति कोई ।—कबीर ग्र०, पृ० २८७ । अपत्यशत्रु- सच्चा पु० [सं०] १ अपत्य वा मतान जिसका शत्रु हो । अपतानक—सच्चा पु० [सं०] एक रोग जो स्त्रियों को गर्भपात तयार केकडा । पुरुषों को विशेष रुधिर निकलने अथवा 'भारी चोट लगने से । विशेष—अडा, देने के उपरात केकही का पेट फट जाता है और होता है । इसमें बार बार मु अाती है, नेत्र फटते हैं तथा वह मर जाती है । कठ मै कफ एकत्रित होकर घरघराहट की शाब्द करता है ।। २ अपत्य का 'शत्रु, । वह जो अपने अड़े बच्चे को खी अपताना –संज्ञा पुं॰ [हिं० अप= अपना+ताना] जजाल । प्रपच ।। जाय । साँप । उ०-दारागार पुत्र प्रपताना । ततघन मोह मानि कल्पना । अपन'--वि० [सं०] पत्र विहीन । पत्तो मे रहित । उ०--बरि बेलि सी विश्राम (शब्द०)। फैन अमूल, छा अपत्र सरिता के कन, विकसा हो सकुचा श्रपति –वि० सी० [सं० अ= नहीं+पति] १ बिना पति या नवजात बिना नाल के फेनिल फन ।—पल्लव, पृ० ३२ । २. स्वामी की। विधवा । २ अविवाहित । कुमारी (को॰) । ‘पखरहित । पक्षहीन (को०) । अपति–वि० [सं० प्र= बुरा+पत्ति =गति] पापी । दुष्ट। दुराचारी। श्रपत्र--सच्ची पुं० १ बम का कल्ला या पूती । २.वृक्ष जिसके पत्ते गिर गए हो । ३ चिडिया जिमे पख न हो कौ०] । उ०—कहा करों सखि काम को हिय निर्दयपन आज । तनु अजित अंपत्रप-वि० [स ०] निर्लज्ज । ढीठ । धृष्ट किो०] । जारत पारत निपत अपति उजारत लाज पद्माकर (शब्द॰) । अपत्रपण-सज्ञा पुं० [सं०] १ लज्जा । म कोच । २३ व्याकुलता । अपति ---सच्चा स्क्री० [हिं० अ = नहीं +पत= प्रतिष्ठा अप्रतिष्ठा । अकुलता [को॰] । दुर्गति । दुर्दशा । उ०—(क) पति विनु पतिनी पतित न मग अपत्रपा–सझो सी० [सं०] १० 'अपत्रपण' [को०] । मे । पति विनु अपति नारि की जग मे --सवन (शब्द॰) । अपत्रस्त–वि० [सं०] अत्यत भयग्रस्त । भय से घवराया हुआ (को०] । |' (ख) पैये निसि बासर कलकित ने अक सम, वरने मरक अपत्रिका-वि० [सं०] पत्तो से हीन । पत्रविरहित (को०)। उ०-- कविताई की अपति होइ ।--भिखारी अ०, पृ० ६६ । । हे विमुख, सदा मैं मुखर पीन । अाम्रो प्रपत्रिका के मर्मर ।अपतिक---वि० [सं०] १ पतिहीन । २. अविवाहित । कुमारी । ३. गोतिको (भू०), पृ० १३ । । | मालिक या स्वामीहीन [को०] । । अपथ–संा पुं० [सं०] १. वह मार्ग जो चनने योग्य न हो । बीहट अपती---सज्ञा स्त्री० [देश॰] प्राय. एक बालिश्त चौडा एक तब्ता जो राह । विकट मार्ग । उ०---माघौ नैकु हटको गाइ । भ्रमत नाव की लबाई में मरिया के दोनो सिरों पर लगाया जाता | | निसि वासर अपय पथ अगह, गहि नहिं जाइ ।—मूर १६४। है । ( मुल्लाह )। । । २. कुपथ । कुमार्ग । उ०—(क) हरि हैं राजनीति पट्टि प्राए । अपतोस --सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अफसोस । ते नयी नीति करे ग्रापुन जिन अौर ने अपथ छुडाए ।--सूर अपत्त--समा स्त्री० [हिं०] ६० अपत ४'। । (शब्द॰) । (ख) गनत न मन पय अपथ लखि वियुरे सुधरे अपनी--वि [सं०] अविवाहिता । कुमारी। जो पत्नी न हो। जितेका | यार !-बिहारी (शब्द०)। ३. मार्ग या पय का अभाव पति न हो [फौ०] ।' (फी०) । ४ योनि । अपरमपथ (फो०)। ५.किनी प्रचलित मत अपत्नीक--वि० [सं०] जिसकी पत्नी ने हो । पत्नीविहीन । स्त्रीरहित | वा सिद्धांत का दृढ़तापूर्वक विरोध (०) ।। कि 1 अपथ--वि० भागहीन। पथविहीन (फो०)।