पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

१६४५ ई० ), ए ग्लासरी अव जुडिशल ऍड रेवेन्यू टर्म स्' इत्यादि की भूमिका के पृ० १ में बताया गया है--हिदी कोश के नाम से ।। ग्रयो का निर्माण किया गया । इनसे एक और तो शासन कार्य में कलकत्ता में प्रकाशित हुआ। इसे नागरी का प्रथम कोश कह सकते सुविधा प्राप्त हुई और दूसरी ओर पाश्चात्य विद्वानो को भी भारतीय है जिसमे हिदी भापा और देवनागरी लिपि का व्यवहार किया गया। भापी या संस्कृत के ग्रथो का अपनी अपनी 'मापात्रो में अनुवाद करने में डा० कोट्स ने भी 'ए डिक्शनरी इग्लिश ऐड हिंदुस्तान' सहायता मिली । बनाई थी। मद्रास के डा० हैरिस ने बडे प्रापक पैमाने पर एक हिंदुस्तानी-अग्रेजो कोश का संपादन-कार्य आरम किया था। वे इन कोणों के अलावा पाश्चात्य विद्वानी अथवा उनकी प्रेरणा से बहुत काफी कार्य कर भी चुके थे। पर इसके पूर्ण होने से पहले ही भारतीय सुधियो द्वारा उसी पद्धति पर पाली, प्राकृत अादि के कोपा भी दिवगत हो गए। यह बहुत ही प्रामाणिक ग्रंथ था। सामान्य बने घोर बन रहे हैं। रबर्ट सीजर ने पाल' -सस्कृत-हिंक्शनरी का सदर्भ की भी इसमे सहयजनी थी। इसकी सबसे बड़ी विशे पता यह थी १८७५ ई० में प्रकाशन कराया था । १६२१ ई० में पाली टैक्स्ट कि इसमे दक्खिनी हिंदी के प्राब्दों का उपयोग हुअा था। सोसाइटी के निर्दे। न मै पाली-अग्रेजी-डिक्शनरी बनकर सामने प्राई । मातावधानी जैनमुनि श्रीरत्नचद ने अर्धमागधी डिक्शनरी' का निर्माण जान शेक्सपियर ने अपने कोश के निर्माण में इसकी पाहुलिपियो । किया। उसमें सस्कृत, गुजरात, हिंदी और अंग्रेजी का प्रयोग उपयोगका पूण उपयोग किया। उन्हें इसका इस्तलेख मिला था इडिया होने से उसे बहुभाषी पाब्दकोश कहनी सगत है। पाइयसमहष्णव' हाउस के अफिस मे। इसके शब्दों और अर्थों के सकलन में डा० हैरिस निश्चय ही प्राकृत का अत्यत विशिष्ट कोश है जिसका पुन प्रकाशन ने भारतीय विद्वानों की पूरी सहायता ली थी । किया गया है ‘प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी की ओर से । | इसके आधार पर और सकलित भाग का पूर्ण उपयोग करते हुए भारतीय माधुनिक भाषाओं में हिंदी के विशिष्ट स्थान और अपने कोशो का शेक्सपियर ने परिवधत संस्करण १८४८ ई० में मौर महत्व की घोषणा किए बिना भी पाश्चात्य विद्वानों ने उसे हिंदुस्तान दूसरी सशोधित संस्करण १८६१ ई० में प्रकाशित कराया। इस की राष्ट्रभाषा मान लिया तथा हिंदी या हिंदुस्तानी---दौनो ही नामों विशाल पब्दिको मा के दोनो अशी में वहृत परिवर्घन सशोधन हुआ। दोनो को उसके लिये--मेरी समझ में----प्रयोग किया । उर्दू को भी उसी अश 'हिंदुस्तानी ऐंड इग्लिश डिक्शनरी' तथा 'इंग्लिश ऐंढ हिंदुस्तानी की शैली समझा। अत हिंदुस्तानी और हिंदी के कोशों की ओर डिक्शनरी' एक साथ प्रकाशित किए गए। यह शब्दकोश विशेष महत्व उन्होंने विशेष ध्यान दिया। नीचे इसकी चर्चा हो रही है। का है। इसमें सबसे पहले रोमन वर्गों द्वारा शव्दनिर्देशन है, तदनंतर यथा, एस् = सस्कृत, एच् = हिदी या हिंदुस्तानी, पी = फारसी सकेतों हिंदो-हिंदुस्तानी के कोश द्वारा कहि के शब्द से संबद्ध मूल भाषास्रोत का निर्देश हुआ है और हिदी, हिंदुस्तानी, फारसी, अरवी, अग्रेजी, पुर्तगाली, तुर्की, ग्रीक, | हिंदी या हिंदुस्तानी या उर्दू के कोशो का निर्माण भी इसी क्रम लातिन, तामिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड, बंगला, मराठी, गुजराती में हुआ। जानसन की लघुकोमा ‘ए लिस्ट ग्राव वन थाउजड इपाट अादि के सकेत है । तदनतर फारसी में कोशशब्द यथास्थान दिए हुए है। वस' मारभिक प्रयास था। इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कार्य था यदि आवश्यक हुआ तो नागरी रूप भी दिया गया है। रोमन में फिर विलियम हटर की हिंदुस्तानी-इग्लि घा-डिक्शनरी ( १८०६ ई० ) । | वही शब्द है और अत मे अग्रेजी पर्याय । इसका मुख्य अाधार था कैप्टन जोसफ टेलर की 'ए डिक्शनरी व ६५ व हिंदुस्तानी ऍड इग्लिश'। टेलर ने अपने उपयोग के लिये इसका | इसी युग में इकन फवूस का कोश---डिक्शनरी हिंदुस्तानी निर्माण किया था। हेटर का कोण निरतर सशोधित और परिवधित | ( १८४६ ई० ) को भी प्रकाशन किया गया। इसमें कोशशब्दों को सस्करणों में क्रमश १८१६, १८२० और १८३४ ई० में प्रकाशित होता फारसी और रोमन में तथा अर्थपर्याय म प्रेजी में दिया गया है। रही । जान शेक्सपियर भी कॉश का कार्य करते रहे। पर उनके कोश से पूर्व हटर का कोश तथा एम० टी० पदम की कृति 'ए न्यू हिदुस्तानी इग्लिश डिक्शनरी' का फैलन ने बडे श्रम के साथ 'दि डिक्शनरी व हिंदी ऐंड इग्लिश' प्रचलित था। डा० गिल सपादन किया और उसे प्रकाशित कराया। उसका महत्व इस वर्ग के क्राइस्ट की डिक्शनरी 'इग्लिश ऐ४ हिंदुस्तानी' १७८६-६६ में प्रकाशित काशो में सर्वाधिक माना गया । आधुनिक कोषाविद्या की पद्धति से निर्मित हो चुकी थी । उसका सक्षिप्त रूप उन्होने ही रोवूक के सहसपाद- यह ऐसा कोण है जिसमें पर्यायवाची शैली का भी योग है। इसमें उदाकत्व में १८१० ई० में प्रकाशित किया था। डा० रोजेरी ने उसी १३) हृत अश एक अोर तो हिंदुस्तानी साहित्य से गृहीत हैं दूसरी ओर की ए डिक्शनरी व 'इग्लिश बैंगला ऐड हिंदुस्तानी' नाम से लोकगीतों के उदाहरण भी दिए गए हैं। इतना ही नहीं, बोलचाल की संक्षिप्ततर रूप में कलकत्ता से १८३७ ई० में प्रकाशित कराया मापा और महिलाओं की शुद्ध बोलियो को पहली बार उदाहरण के या। जे० वी० थामसन की उद-अग्रेजी डिक्शनरी १८३८ ई० रूप में यही उपयोग किया गया है । हिंदुस्तानी शब्दों के अयों को में प्रकाशित हुई । १८१७ ई० में शेक्सपियर द्वारा लदन से ‘अग्रेजी

  • बोलचाल की भाषा से ही संकलित रके देने का प्रयास हुआ है। हिंदुस्तानी, और हिंदुस्तानी अग्रेजी' कोश प्रकाशित हुअा परतु व्युत्पत्तिमूले के अथों को पुराने रूप के अधार पर दिया गया है और इन सबमें रोमन या फारसी लिपि का प्रयोग मुख्यत होता कुछ हिदी शब्दों के धातु का भी निर्धारण हुआ है। यह को रही। इसी बीच १८२९ ई० मे पादरी एम् ० टी० भादम का व्युत्पत्ति की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है तथा उदाहरण और तदप्तिारित महत्वशाली को भी सामने पाया, जो-जैसा प्रथम संस्करण अयोनिदग की दृष्टि से भी अत्यंत महत्व रखता है। इसका कारण यह