पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३१

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है कि इसमें बोलचाल की मापी का मंथन और निकट से सूक्ष्मदर्शन ध्यान दिया। पादरियो भोर अग्रेजी शासकों ने निश्चय हिदी या किया गया है। इन्होंने इंग्लिश हिंदुस्तानी का भी कोश तैयार किया। हिंदुस्तानी के एकभापी, द्विभाषी, कोशी अोर नवीन कोश रचना-पद्धति का प्रवर्तन किया। लल्लू जी लाल जैसे नौगो ने भी इन फोगो का विवरण संक्षेप में नीचे दिया जा रहा है। त्रि मापी कोश बनाए । श्रीराधेलाल वा शब्दकोश ( १८७३ ई० ), गिलक्राइस्ट की हिंदुस्तानी इगलिश डिक्शनरी, जो अपनी प्राचीनता पादरी वैटम का काश से ( १८७५ ई० में ) प्रकाशित हिदीकोश और के कारण बडे महत्व भी है, १७८६ में बनी थी। इसमे भूमिका मु० दुर्गाप्रसाद का अंग्रेजी उर्दू कोश ( १८६० ई० )--इम दिशा के देने के अलावा भापासवधी कुछ अावश्यक वाते तथा युद्ध की अनवरत चलते रहने वाले प्रयास के उदाहरण हैं । १८७३ ई० से लेकर कहानियाँ भी सगृहीत हैं । सज्ञा, सर्वनाम, क्रियाविशेषण, अव्यय आदि । यौर उन्नीसवीं शती के अंत तक---भारत और बाहर (पेरिम आदि में) के शब्द है। इसमें संस्कृत तत्सम शब्दों को छोड़ दिया गया इस दिशा के कार्यों का सिंहावलोकन प्रथम सस्करण की भूमिका ( १० है परतु तद्भव, देशज एव भारत में प्रचलित अरवी फारसी के १ २) में दिया गया है। अत यह इतना ही कहना है कि हिंदी के नवपादों को ले लिया गया है। रोमन वर्णमाला के अनुसार शब्दक्रम । फोशो की अद्य रचना और प्रेरणा--पश्चिम के कोशकारों द्वारा ही है। शब्दों की व्याख्या कम की गई है और अग्रेजी पर्याय अधिक है। प्राप्त हुई। फलत हिंदी ही नही, उमकी बोलियों के भी अनेक कोश जे० टी० थामसन ने दो शब्दकोश--(१) उर्दू और अंग्रेजी । वने । ब्रजभापा का कदाचित् सर्वप्रसिद्ध कोण हैं श्री द्वारकाप्रसाद तथा (२) हिंदी और अंग्रेजी--बनाए । फासिम ग्लेविड ने पर- चतुर्वेदी द्वारा निमित----शव्दार्थ पारिजात । सूर-व्रजभाप -कोश भी डा० नियन, हिंदुस्तानी और अग्रेजी की डिक्शनरी निमित की । जे० डी० दहन ने बनाया है। अवघी का प्रसिद्ध नवकोश--श्री रामाज्ञा द्विवेदी वैट्स ने ए डिक्शनरी प्राव हिदी लैंग्वेज (१८७५ ई० में ) वनाई । द्वारा संपादित कराकर हिंदुस्तानी एकाडमी में प्रकाशित किया है। उदयपुर से इधर एक विशाल राजस्थानी सवद कोश भो प्रकाश में भी कैप्टन टेलर का शब्दकोश ( हिंदुस्तानी अग्रेजी ) धना था अपने । रहा है । इसी प्रकार मैथिली को श भी प्रकाशित हो चुका है। व्यक्तिगत उपयोग के निमित्त । हटर ने उसी का श्राधार लेकर विस्तत को बनाया था। कोशकार के कथनानुसार उसका शव्दसंकलन हिदीतर भाषाग्रो मे कोश जनता से हुआ था। सस्कृति के तत्सम, तद्भव और देशज शब्दों के साथ साथ अरबी, फारसी, ग्रीक, अग्रेजी, पुर्तगाली के तद्भव यादव भी पर कभी कभी तत्सम और देश ज शब्द भी उसमे लिए गए। (क) द्रविड़ भापाएँ । हैं। दक्खिनी हिंदी और बैंगाली के शब्द भी नहीं छोड़े गए हैं। शब्दो भारतीय हिंदीतर मापा के कोशो का निर्माण भी प्राचीन काल से की वैकल्पिक पीर भूगोलमूलक भिन्नताशो को स्थान स्थान पर सकेत लेकर आधुनिक काल तक वरावर चल रहा है। भी किया गया है। रीति रिवाजों का भी अनेक स्थानों पर काफी विवरण मिलता है। कुछ व्यक्तिवाचक सज्ञाओं के प्रयोग में पौराणिक तमिल भाषा मे को शनिमण की परपरा बहुत प्राचीन कहीं " और प्राचीन कथाप्रो का वर्णन भी मिल जाता है । जाती है। उनका प्रसिद्ध व्याकरण ग्रंथ 'ताल काप्पियम्' कहा जाता है। उसी व्याकरण ग्रंथ में ग्रंथकार ने सुत्र शैली में शब्दकोश तैयार १८१७ में निर्मित शेक्सपियर की हिंदुस्तानी-अप्रेजी डिक्शनरी । किया था । ग्रथ के लेखक ने तमिल भापा के शब्दों को चार वर्ग में में पर्याप्त पाब्दों की व्युत्पत्ति देने का प्रयत्न लक्षित होता है । घाब्दी के वक्त किया है-(१) सामान्य देणी शव्द, (२) साहित्यिक सन्द, (३) पृव ही सकेताक्षरो द्वारों भाषाओं का निर्देश हुआ है । शब्दक्रम की । ना हैं । ब्दिकम का विदेशी भाषामो से व्युत्पन्न शब्द और (४) सस्कृत से पपन्ने शब्द । योजना में फारसी लिपिमाला का अनुसरण है परंतु संस्पात से व्युत्पन्न इसमें शहदसह वनक्रम से रखा गया है। इसका प्रकाघाने यद्यप शाद नागरी लिपि में है। इस कोण के अनेक संस्करण हुए। चतुर्थ हुए। पथ अट्ठारहवी शताब्दी की है तथापि इसकी रचना ईसा की प्रथम द्वितीय सस्य रण में दक्खिनी 'भापा के अनेक कवियो से भी पाव्द संकलित मा०६ सकालत शताब्दी में बताई जाती हैं। तमिल का दूसरा कोण 'तिवाकरम हुए हैं। है । १२ खडो को यह कोश अमरकोश के आधार पर बना है। | एन कोणों की रचना में धर्म प्रचार के अतिरिक्त मुख्य उदेशय इसमें दस खंडों में वगमूलक' शब्दसंचय हैं, ११व खड हानायं शब्दों का था विदेशी शासन के अधिकारी वर्ग को भारतीय भाषा सिखाना। और १२ समूहवाचक शब्दो का है । प्रत शब्दसकलन के क्रम में बोलचाल के शब्दों को इन कशिकारो ने १६७६ ई० में प्रथम तमिल-पुतं गाली-कोश घना और १७१० ई० यता दी और अप्रचलित या अल्पप्रचलित तत्सम या तद्भव शब्दों के में फादर वेली ने पूर्णत अकारादि क्रम पर निर्मित 'कतुर अकाराति 1711 मालन से फोशकलेवर की विस्तार से बचाने का उन्होंने नाम कोश तैयार किया। तमिल का प्रथम अजी को लयर के rnमें किया। हिंदुस्तानी के । इन कुछ कोशो में अधिकत अनयायी धर्म प्रचारको द्वारा १७७६ ई० में 'मलाबार ऐड इंग्लिश उद' शब्दो का प्राधान्य हैं और बट्स तथा एकाघ शौर कोशकारी डिक्शनरी' नाम से प्रकाशित हुअा। उसी का दूसरा संस्करण सोशो को छोडकर प्राय सबमें शब्द-कम-योजना का 'वार फारसी सणोधित रूप से तमिल में 'इंग्लिश हिमशनरी के नाम में १८०६ ई० में । फैलन के कोश में गं मुख्य रूप "चाल की मद्रित है। - ५१ ई० में एक त्रियाषी कोश ( अग्रज, वन या का माधार गृत हुी थी, अतः जॉन टी० : ,सने 'दू और तमिल या प्रकाशित हुआ । इनकी ता"से अनेक तमिल मौर हिंदी के साथ में प्रयुक्त शब्दों के सकलुन , कोण बनते मौर ' । मे व्याकरण