पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३४

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२३ रहता है। लब्धप्रतिष्ठ और बडे बडे विद्वानों का सहयोग तो उन सस्थानो तुलनात्मक भाषाविज्ञान की प्रौढ़ उपलब्धियो से प्रमाणीकृत रूप में को मिलता ही है, जागरुक जनता भी सहयोग देती रहती है। अग्रेजी निमित हो चुके हैं। इनमें मुख्य रूप से मापावैज्ञानिक अनशीलन डिक्शनरी तथा अन्य भाषाओं में निमित कोशकारो के रचना-विष्ठान- और शोध के परिणामस्वरूप उपलब्ध सामग्री का नियोजन किया मूलक वैशिष्टयो का अध्ययन करने से अद्यतन के शो में निम्ननिदिष्ट । गया है। ऐसे तुलनात्मक को भी अाज बन चुके हैं जिनमें प्राचीन बात का अनयोग आवश्यक लगता है भोपाग्रो की तुलना मिलती है। ऐसे भी कोश प्रकाशित हैं जिनमें एक से अधिक मल परिवार की अनेक भाषा के शब्दो का तुलनात्मक | (क) उच्चारणसुचक सकेतचिह्नो के माध्यम से शब्दों के परिशीलन किया गया है। । स्वरो व्यजनो का पूर्णत शुद्ध और परिनिष्ठित उच्चार स्वरूप बताना शब्दकोशो के और भी नाना रूप अाज विकसित हो चुके हैं और और स्वरोधात वेलाघात का निर्देश करते हुए यथासंभव उन्चार्य अश हो रहे हैं । वैज्ञानिक और शास्त्रीय विपयो के सामूहिक और तत्तदके अक्षरो की वद्धता अौर घेवद्धता का परिचय देना, (ख) व्याकरण- दिपयानुसारी शब्दकोश भी अजि सभी समृद्ध भाषाम्रो में बनते जा रहे सवद्ध उपयोगी और आवश्यक निर्देश देना, (ग) शब्दों की इतिहास- हैं। शास्त्र और विज्ञान शाखाओं के पारिभाषिक शब्दकोश भी निमित सवद्ध वैज्ञानिक व्यत्पत्ति प्रदशित करना, (घ) परिवार-सवद्ध अधवा हो चुके हैं और हो रहे हैं। इन शब्दकोशो की रचना एक भाषा में भी परिवारमुक्त निकट या टूर के शब्दों के साथ शब्दरूप और अर्थरूप को होती है और दो या अनेक भाषाओं में भी । कुछ में केवल पर्याय ब्दि तुलनात्मक पक्ष उपस्थित करना, (इ) घान्दो के विभिन्न शीर पृथकृत रहते हैं और कुछ में व्याख्याएँ अथवा परिभाषाएँ भी दी जाती हैं । नाना अर्यों को अधिक-न्यून-प्रयोग क्रमानुसार सूचित करना, (च) अप्रयुक्त विज्ञान और तकनीकी या प्राविधिक विषयो से संबद्ध नीनो पारिभापिक घाब्दो अथवी शब्दप्रयोग की विलोपसूचना देना, (छ) शब्दों के पर्याय शब्दकोशों में व्याख्यात्मक परिभाषा तथा कभी कभी अन्य साधनों बताना , प्रौर (ज) सगत अर्थों के समर्थनार्थ उदाहरण देना, (झ) की सहायता से भी बिलकुल सही अर्थ का बोध कराया जाता है। चित्रों, रेखाचित्रो, मानचिन्नो अादि के द्वारा अर्थ को अधिक स्पष्ट करना। दर्शन, भाषाविज्ञान, मनोविज्ञान, समाजविज्ञान ज्ञोर समाजशास्त्र, 'आधुनिक कोश की सीमा भीर स्वरूप' उपशीर्षक के अनर्गत इन बातो राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र अादि समस्त आधुनिक विद्या के कोमा की कुछ विस्तृत चर्चा की गई है। विश्व की विविध संपन्न भापा में विशेषज्ञो की सहायता से वनाए जा रहे हैं और इस प्रकृति के सैकडो हज़ारो कोश भी बन चुके हैं। । अक्सफोर्ड इलिश डिक्शनरी' का नयतम प्रौर वृहत्तम शब्दार्थको सवधी प्रकृति के अतिरिक्त इनमे ज्ञानकोशात्मक तत्वों की सस्करण श्राधनिक कोणविद्या की प्राय सभी विशेषता प्रो से सपन्न विस्तत या लघ व्याख9 10 भी समिश्रित २टतं. ॐ विस्तृत या लघु व्याख9 १९ भी समिश्रित रहते हैं। प्राचीन शास्त्री और है। पर भारतीय भाषाओं के कोशों में अभी उपर्युक्त समस्त दशनो अादि के विशिष्ट एव पारिभापिक शब्दो के कोण भी बने हैं। सामग्री को पुष्ट एकत्रीकरण नहीं हो पाया है। नागरीप्रचारिणी और बनाए जा रहे हैं। इनके अतिरिक्त एक एक ग्रंथ के शब्दार्थ कोश सभा के हिंदी शब्दसागर के अतिरिक्त हिंदी साहित्य संमेलन ६ रा ( यथा मानस शब्दावली ) और एक एक लेखक के साहित्य की प्रकाश्यमान मानक माव्दकोश ( जिसके चार खड प्रकाशित हो चुकेशव्दावली भी योरप, अमेरिका और भारत आदि में सकलित है ) एक विस्तृत आयाम है। हिंदी कोशकला के लब्धप्रतिष्ठ संपादक । हो रही है। इनमे उत्तम कोटि के कोशकारो ने ग्रथुसद के श्रीरामचंद्र वर्मा के इस प्रशंसनीय कार्य का उपजीव्य भी मुख्यत सस्करणात्मक सकेत भी दिए हैं। अकारादि वर्णानुसारी अनुक्रमणिशब्दसागर ही है। उसका मूल फलेवर तात्विक रूप में पाबंद मागेर । कात्मक उन शव्दसूचियो का--जिनके अर्थ नहीं दिए जाते है पर से ही अधिकारात परिकलित हैं। हिंदी के अन्य कोशो में भी । सदर्भसकेत रहता है-यहाँ उल्लेख आवश्यक नहीं है। योरप और अधिकाश सामग्री इसी कोश से ली गई है। थोड़े बहुत मुख्यत । इगलैड में ऐसी शव्द सूचियाँ अनेक वनी। शेक्सपियर द्वारा प्रयुक्त संस्कृत कोणो से और यदा कदा अन्यत्र से घान्दो और अर्थों को आवश्यक शब्दो की ऐसी अनुक्रमणि की परम प्रसिद्ध है । वैदिक शाब्दिो की अनावश्यक रूप में ठूस दिया गया है। ज्ञानमडल के वृहद् हिंदी और ऋकसहिता में प्रयुक्त पदों की ऐसी शब्दसूचियों के अनेक संकलन शब्दकोश में पेटेंवाली प्रणाली शुरू की गई है। परंतु पहले ही बन चुके हैं। व्याकरण महाभाष्य की भी एक एक ऐसी वह पद्धति सस्त के कोपों में जिनका निर्माण पश्चिमी शानक्रमणिका प्रकाशित हैं। परत इनमें अर्थ न होने के कार 7 विद्वानों के प्रयास से प्रारंभ हुआ था, सैकड़ों वर्ष पूर्व से प्रचलित उनका विवेचन नहीं किया जा रहा है । हो गई थी । पर आज मी, नव्य या अाधुनिक भारतीय ज्ञानकोश भाषायों के को उस स्तर तक नहीं पहुंच पाए हैं जहाँ तक अक्सफोर्ड इग्लिश डिक्शनरी अथवा रूसी, अमेरिकन, जर्मन, इताली, फ्रांसीसी कोश की एक दूसरी विधा ज्ञानकोश भी विकसित हुई है । अादि भाषाओं के उत्कृष्ट और अत्यत विकसित कोश पहुंच चुके हैं। इसके बहत्तम मौर उत्कृष्ट रूप को इन्साइक्लोपिडिया कहा गया है। हिंदी में इसके लिये विश्वकोश शब्द प्रयुक्त और गृहीत हो कोशरचना की ऊपर वणित विधा को हम साधारणत सामान्य गया है। यह शब्द वैगला विश्वकोशकार ने कदाचित मर्वप्रथम भाषा मान्दकोश कह सकते हैं। इस प्रकार शब्दकोश एकमपी, बेगना के ज्ञानकोश के लिये प्रयुक्त किया। उसका एक हिंदी संस्करण द्विभाषी, विनापी और वहभापी भी होते हैं। बहुभाषी शब्दकोश हिदी विश्वकोश के नाम से नए सिरे से प्रकाशित हुआ है हिंदी में यह मे तुलनात्मक शब्दकोश भी युरोपीय भाषाओं में ऐतिहासिक और शब्द प्रयुक्त होने लगा है। यद्यपि हिदी के प्रथम किशोरोपयोगी