पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/३५

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ज्ञानकोश ( अपुर्ण ) को श्री श्री नारायण चतुर्वेदी तया १० कृष्ण शब्द के शब्दार्थबोध की प्रयोगपीमा में अाने वाले सूक्ष्म अथ यन्नभ द्विवेदी द्वारा विश्वभरती अभियान दिया 7या तो भी ज्ञान कोश, की नानी अयं च्याओं की पार्थक्य और विस्तार भी सोदाहरण शानदपिका, विम्ब दर्शन, विश्वविद्यालयभार अदि तज्ञाओं का प्रयोग उपस्थित किया जाता है। शब्द के नान। अर्थो र आवश्यक भी ज्ञानकोश के लिये हुअा है। स्वय सरकार भी वालशिक्षोपयोगी उदाहरणों द्वारा तत्तदर्थबोधकता का समर्थन मी कोश में रहता है। नशामक ग्रंथ का प्रकाशन 'ज्ञानसरोवर' नाम में कर रही है। पुरतु अावश्यक व्याख्याएँ दी जाती है। इन सबके अतिरिक्त अाधुनिक इन्मदिनापीडिया के अनुवाद रूप में वि वकाश ॥a; ही प्रचलित ही प्रयोगों के नव्यतम ग्रंथों का निर्देश किए बिना कोश पूर्ण और अद्यतन गया । उडिया के एक विश्वकोश का नाम शब्दार्थानुवाद के अनुसार ज्ञान नहीं होता। मटन रया भी गयो । ऐसा लगता है कि वृहद परिवेश के व्यापक ज्ञान शब्दार्थकोश का पूर्ण और नूतनतम रूप ऐसे कोश को ही कहा जा का पारिभाषिक अौर विशिष्ट शब्दों के माध्यम से ज्ञान देनेवाने अर्थ का सकता है। परंतु ऐसे कोण संपन्न और विकसित देशों की साधना द्वारा इमाइक्लोपीडिया या विश्वकोश अभियान निर्धारित इमा अर अपेक्षा हुन लघुनकोशो को ज्ञानकोश अादि विभिन्न नाम दिए गए । अग्रेजी ही बन पाते हैं। इनके अतिरिक्तः छोटे बड़े अनेक ऐसे साधारण कोश । प्रादि भापाम्रो में बुक ग्राफ नालेज, डिक्शनरी व जनरल नालेज प्रादि भी है जो पूर्ण साधनों के अभाव में समस्त वैशिष्ट्यो से मुपग्न न शीपंकों के अनगंत नाना प्रकार के छोटे वडे विश्वकोश अथवा ज्ञानकोश होकर भी व्यावहारिक उपयोग के लिये बनाए जाते हैं और यथासंभव अौर यथाशक्ति या अशि के रूप में उत्कृप्ट फोशी की बने हैं और आज भी निरतर प्रकाशित एद विकसित होते जा रहे हैं । इतना ही नही इन्माइनोपीडिया प्राफ रिलीजन ऐंड एथिक्म आदि घटक सामग्रियों से महायता लेते हैं। सभबत भारत के अधिकांश विषयविशव से मवद्ध विश्वकोशो की मख्या भी बहुत ही बडी है । बडे कोण भी शब्दार्थकोश की अद्यतनतम पूर्णता से अभी दूर अग्रेजी भाप के माध्यम से निमित अनेक सामान्य विश्वक श और ही हैं। हिंदी के शब्दार्थकोशो में शब्द और अर्थ के प्रयोग और विशप विश्वकोश भी आज उपलब्ध हैं। विकाससवधी प्रामाणिक उदाहरण द्वरा ऐतिहामियः क्रम का नियोजन अभी नहीं हो पाया है। इनके अतिरिक्त शब्दों के उच्चारा| इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, इमाइक्लोपीडिया अमेरिकाना सब धी यथ,र्थ निर्देश की कमी प्राय मभी छोटे बड़े हिंदी कशी अग्रेजी के ऐसे विश्वकोश है। अग्रेजी के सामान्य विश्वकोशो में वर्तमान हैं। प्राचीन राजस्थानी, पिंगल, डिगल, प्राचीन अौर द्वारा इनकी प्रामाणिकता और समान्यता मवं स्वीकृत है। निरतर इनके मध्यकालीन ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली र दक्खिनी हिदी, खडी मशोधित, सर्वाधित तथा परिप्त सस्करण निकलते रहते हैं । बोनी तथा हिंदी प्रदेश के विस्तृत क्षेत्र में प्रचलित अाधुनिक इन्साइक्लोपीडिया स्रिटानिका के दो परिशिष्ट प्रथ भी हैं जो प्रकाशित परिनिष्ठित हिंदी के उच्चार रो का निर्देश अत्यत आवश्यक है। होते रहते हैं और जो नृतन मस्करण की मामग्री के रूप में सातत्य भाव हिंदी पढ़नेवाले हिदी तर भाषा भाषियों के लिये उच्चारणनिर्देश से मकलित होते रहते हैं । इगलैंड में इन्साइक्लोपीडिया के पहले से ही विना शद्ध और सही उच्चारण करना नितांत कठिन हो जाता है। ज्ञानकोशात्मक कोशों के नाना रूप बनने लगे थे। पर अबतक के वृहत् हिदी को शो में, यहाँ तक कि इस हिदी शब्द सागर के नवीन सस्करण में उच्चारणनिर्देश की योजना कायइनकीशों के भी इतने अधिक प्रकार और पद्धतियाँ हैं जिनकी । चर्चा का यह अधमर नहीं है । चरितकोश, कथाकोश इतिहासकोश, |न्विन नहीं हो सकी। ऐतिहासिक काल कोश, जीवनचरितकोश पुराख्यानकोश, पौराणि इसके अतिरिक्त एक प्रौर वडी भारी कमी हिंदी को शो में रह गई पातपुरुपयोश अादि आदि प्रकार के विविध नामरूपात्मक ज्ञानकोशो है । उसका सबंध ऊपर निन्टि शब्दप्रयोगों के ऐतिहासिक क्रम निर्देश की बहुत सी विधाएँ विव मित और प्रचलित हो चुकी हैं । यहाँ प्रमगत से है । भाषा में अनेन शाव्द ऍमें भी मिलते हैं जिनका पहल तो प्रयोग ज्ञानकोश का मकैतात्मक नामनिर्देश मान्न कर दिया जा रहा है । हम होता था पर कालपरपरा में उनका प्रयोग लुप्त हो गया। आज के इस प्रसग को सही समाप्त करते हैं और शव्दार्थकोश से मबद्ध प्रकृत उत्कृष्ट कोशो में पह भी दिखाया जाता है कि कई उनका प्रयोग अरिभ विपय को चर्चा पर लौट आते हैं। हुमा और कब उनका लोप हुआ। पर हिर्द कोशो में इनका अभाव हिदी कोशों की सीमा अौर उनके रूप है । नागरी प्रचारिणी सभा का यह कोश इस दिशा में थोडा प्रयत्न शील हैं । व्यवहारलुप्त शव के आरभ और मुमाप्ति के प्रयोगसपृक्त अद्यतन शब्दकोशों की दिने पनामों और उनकी विभिन्न विधायो ऐतिहासिक क्रम को सूचित किए बिना भी पुरानन-प्रयोग संबंधी समेतयी चर्चा अन्यत्र हुई है। आज के कौश में भाषावैज्ञानिक, व्याकरणिक वोधक चिह्न के द्वारा लग्नप्रयोग गवदों का निर्देश कर दिया गया है। और भाषा में ऐतिहामि फ व्वरूप और अर्यरूप में म व्युत्पत्ति इन सब कमियों को दूर करने की मोर के निर्माण में प्रवृत्त निर्देश और अर्थ विकास- म वा कोश में समाये उमा अत्यंत सस्याओं और व्यक्तियों के विचार काम कर रहे हैं। पर अभी अनिवार्य अग हो गया है, यह अन्यत्र पहा ।चा है। भाषा के । साधनाभाव के कारण प्रगति संतोषजनक नहीं है। शरद ना भारदामय में प्राद्य प्रयोग = क्रममा तरवर्ती प्रयोग नै उदाहरण मी अबश्य होने हैं। इन्पत्तिन्न भ्य यौगिक व्यावहारिक उपयोगिता की दृष्टि से मामन्य पावो के लिये बने पौर गठ-नाना आय में भी मदाहरण निर्देश-कोश की हुए समान्य कोशों में अतिरिक्त हिंदी में कुछ कोश और हैं जिन्हें प्रामाणिक मुचित भरने के लिये चमाविष्ट किए जाते हैं। एक हम शव्दार्थकोश मात्र कहते है। इनमे व्याकरणसदद्ध निर्दा मोर में विकास- अन्यत्र और नव यौकी हुइव्दार्थको