पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४०

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। से पालन नहीं हुआ हैं तथापि उसी पद्धति पर चलने की प्रारंभिक उसके तैयार होने में ७३ वर्ष लगे । पर उसकी बहुत सी आधारिक सामग्री प्रयास शुरू हो गया था । अकारादिवरणानुक्रम इनकी सर्वप्रथम उसमे पूर्व ही इ० जानससन, रिचर्डसन और वेस्टर के कोशो में विशेषता है । पग्तु वह क्रम मी पुराने कोशो में पूर्णत, व्यवस्थित संकलित हो चुकी थी। उनकी सहायता मिली, यद्यपि उसे भी नहीं था । व्यवस्थित र सुनियोजित केरने में बहुत बडा श्रम करना पड़ा। हिंदी शब्दसागर या संपादन साधन और आधारिक सामग्री को हिंदी शब्दसागर के पूर्व निर्मित हि कोणो में शब्दसंग्रह का देखते हुए अपने आपमें स्तुत्य प्रौर सफल प्रयास था। नव्यकोशविज्ञान मुख्याधार संस्कृत शब्द हैं। थे । व्यवहार की भाषा में प्रयुक्त शब्दों को क दृष्टि मै अक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के स्तर से नीचे होने भ सकलन हुआ, परतु वह अपेक्षाकृत कम हो रहा । इन कामों में पर भी वह उपलब्धि बहुत बड़ी रही। व्याकरणपरक निर्देश श्रर शब्दार्थबोध के लिये प्राय पर्याय दिए जाते थे । व्याख्या कहीं कही दे दी जाती थी, परतु बहुधा सक्षिप्त पूर्ववर्ती अधिकांश हिंदी कोण की भाति यह को एक पक्ति द्वारा और अपूर्ण रहूर्त थी। किस किस कश में व्युत्पत्ति देने के चेप्टो निमित न हो कर भाषा र साहित्य के मर्मज्ञ अनेक सुधियों द्वारा हैं पर वह प्रामाणिक र भापावैज्ञानिक नहीं है, और न उस युग में तैयार किया गया है । शब्दसकलन के लिये केवल पुराने कोशो का इसकी अशी ही की जा सकती थः । उदाहरण उद्धृत करने की ओर ही आधार न लेकर ग्रथों और व्यवहरयुक्त भाषा और बोलियों के सर्वथा उपेक्षाव लक्षित होता है। प्राय समस्त उपलब्ध सामान्य और विशेष शब्दो के संग्रह का उसमे प्रयास हुआ है । प्राय प्रत्येक शब्द का मूल स्रोत देखने के प्रयास के साथ | इन सब कारणों से हिंदी शब्दसागर से पूर्व की कोशरचना का साथ विभिन्न भापामूलक स्रोतो का निर्देश करने की चेष्टा हुई है। स्वरूप और स्तर इाल्यावस्था का ही कहा जा सकता है । प्राय एक व्युत्पत्तियां यद्यपि देहुत सी ऐसे हैं जो सदिग्ध और भ्रामक अथवा व्यक्ति के प्रयास में निर्मित इन कोशो में विशेप प्राढता तत्कालीन वही कहीं अशुद्ध भी है तथापि उसके लिये यथासाधन और यथा- कोशचेतना के हिंदी विद्वानो मे युगवाघ के अनुरूप है। था । इनका शक्ति जो प्रयास है वह भी अपने अपने बडा महत्व रखता है। प्रय जन मुख्यत व्दिार्थज्ञान कराना था, और वह भी पर्याय द्वारा । व्युत्पत्ति निर्देश का स्वरूप भी विकासक्रम के विभिन्न स्तरों में उपस्थित इनमें सकलित अधिकाश शब्द संस्कृत, हिदी अादि के पूर्ववर्ती कोश से नही किया जा सका है। फिर भी पूर्ववर्ती हिंदी कोशी की तुलना में ही ले लिए जाते थे और एक जिल्द में व्यवहारोपयोगी कोघा तैयार शब्दसागर की व्युत्पत्ति विपयक अग्रगति पर्याप्त महत्व की है। हिंदी करना है। इन कोशकारी और कोशो का मुख्य प्रयोजन था। के कोशकार' आज भी इस दिशा में बहुत आगे नहीं बढ़ पाए है। | हिंदी शब्दसागर में अनेकन्ने उदाहरण का सहयोग लिया हिंदी शब्दसागर के द्वारा हिंदी में जिस प्रकार का महत्वपूर्ण गया है। परतु प्रथम शव्द के प्रयोग का ऐतिहासिक कालनिर्देश और नूतन कोश विज्ञान की रचनादृष्टि से समन्वित भापा के महाकोश । नवीन संस्करण में भी संभव नहीं हो सका । इप सवध की अममर्थता बनाने की प्रेरणा मिल र तदनुकूल प्रयास किया गया, उमा सकेत का निर्देश किया जा पृका है। पर दूसरी शोर घ्याकरणमूलक प्रथम संस्करण की भूमिका में प्रधान संपादक बाबू श्यामसुदरदास व्यवस्था पौर तदनुसार शब्दै एवं अर्थ के व्यवस्थित निर्देश का द्वारा किया गया है। यहां उनकी उद्धरणः अनावश्यक है। इस हिंदी शब्दसागर में अत्यत प्रौढ विनियोजन दिखाई देता है। पर्याय- सवर्घ में इतना हैं। कहना पयप्ति होगा कि डी० श्यामसुंदरदास निर्देशन पर जहा एक अोर संस्कृत कीशो का व्यापक प्रभाव है और के नेतृत्व में और प्राचार्य रामचंद्र शुक्ल जैसे मर्मज्ञ अनोचक और प्राय अधिकाधिक यौगिक पदो का उल्लेख भी सस्कृत व्याकरण पर हिंदी साहित्यविज्ञ के सहायकत्व में तथा वालकृष्ण भट्ट, श्री अर्मर अधिकत अाधारित हैं वहीं दूसरी और हिंदी की प्रकृति और प्रयोग- सिंह, श्री जगन्मोहन वर्मा, श्री ( लाला ) भगवानटीन और श्री परपरा का आकलन और सकलन भी वडे यरत प्रौर मनोयोग के साथ रामचंद्र वर्मा के सपादकत्व में तथा अनेक विद्वानों, कार्यकता किया गया है । हिंदी के मुहावरे और लोकोक्तियो या प्रयोग अथवा के सहयोग से संपादित र निर्मित यह कोश एक महान् प्रयाम् । क्रियाप्र रोग फी प्रय गपरपरा से अागते अर्थों की व्याख्या भी इसमें साधन और परिन्थितियों के विचार से उक्त महकोण के सपदिन में पत्र । सभा के फर्णधार पर कोण के कार्यकर्ताओं को महान् सफलता प्राप्त हुई। यह ठीक है कि पाश्चात्य मापा के प्रति कोशो की तुलना में इसमें अर्थ निर्धारण में 6qTख्यात्मक पद्धति अपनाई गई है। पर साथ अनेक कमियां रह गई है। फिर भी इसकी कुछ उपलब्धियाँ हैं जो ही मुख्य शब्दो के अतर्गत अधिकत पर्याय भी रख दिए गए हैं। इस त्य और अमिनदनीय हैं। यह भी कहा जा सकती है कि हिंदी शब्द- कारण भी कभी ऐसा भी लगता है कि यह कोश अधूनिक ढग का सागर के अनतर वने हिंदी के सभी छोटे बड़े कोशी का यही महाकोश पर्यायवाची अौर नानार्थक कोश एक साथ बन गया है । पाख्यात्मक उपजब अरि अाधार रहा। अक्सफोर्ड इगलिश डिक्शनरी के पद्धति के प्रतर्गत व्यक्ति, विपय, वस्तु अादि का पौराणिक, ऐतिहासिक.. प्रथम सस्करण की रचना का कार्यारंभ हो गया था। १८५७ ई० से शास्त्रीय और परंपरागत अनेक प्रकार के परिचय एवं विवरण यथा १८७६ ई० तक उसकी तैयारी अादि होती रही, और १८८४, ( १८ स्थान दिए गए हैं। इस कारण यह कोश विश्वकोश, ज्ञानकोश १।१८८४] ई० में उसका प्रथम अग्निम सादित प्रारूपांश छपकर चरितकोश मोर पारिभाषिक कोश के परिवेश की भी यत्र तत्र सामने आया। १८६५ ई० से लेकर १९२८ ई० तक रापादन और स्पर्श करता दिखाई देता है । कुछ कुछ यही दी है Butो प्रकाशन के कार्य चलते रहे। लगभग ४४ वर्षों में उसका प्रकाशन हुमी । डिक्शनरी के प्रथम संस्करण की।