पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४१

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शब्दी की प्रेयौगसपृक्त अर्थच्छाया ( शैडम व मीनिंग ) की के सपादको के सामने आया था, और उसके समाधान की एक पद्धति भिन्नता को भी अनेक स्थलों पर स्पष्ट करने का प्रयास लक्षित होता है। भी उन्होने अपनाई है । पर जब तक वह स्वीकृत न हो। तब तक उसका फिर भी इस दिशा का कार्य अभी और श्रम अपेक्षित करता है। शब्द ग्रह" मर्वन्न नहीं सकता। काग मे गृहीत या नवसमाविष्ट आन्दों के समस्त अयों की प्रयोगपृष्टि और प्रामाणिकता के निमित्त सर्वत्र के अतिरिक्त अधिक त हिंदी शब्दसागर या! ही व्यापक उपयोग उदाहरण नहीं हैं । जहाँ हैं वहाँ भी बहुधा ग्रंथों के नाममात्र ही नि या गया हैं। निदिष्ट हैं । उनके प्रसगस्थल और सस्करण का उल्लेख नहीं है। अनेक स्थलों पर वोलचाल के स्वनिर्मित उदाहरण भी नियोजित किए गए शब्दमाग के सहायक संपादकों में श्री रामचंद्र वर्मा जो भी हैं। सब मिलाकर इममे शब्दसंग्रह अौर अर्थविवृति दोनों की परिधि थे। सक्षिप्त हिंदी शब्दसागर के बाद अतितिः प्रामाणिक हिंदी कोश के को ययामभत्र ठाउक और विस्तृत बनाया गया है । इस क्षेत्र में नाम से उन्होने एक ग्रंथ सादित र प्राणित किया। मक्षिप्तविभिन्न पेशे और वर्ग के जनजीवन से संगृहीत शब्दभहार की व्द सागर के शारभवः अनै गा सकरणों को उन्होंने मपादन भी किया सयोजना से इस कोश का महत्व बहुत बढ़ गया है । था। हिंदी कोश मे चवद्ध अनेक प्रश्न और संक्षिप्त शब्दसागर की अन्य कगियो की अौर उनका ध्यान जाता रहा । नये निराकरण हिदी शब्दसागर के अनतर को चेष्टा में भी वे ययामाध्य प्रामाणिककोश के संपादन के पूर्व हिंदी शब्दसागर के प्रथम संस्करण का प्रकाशन जवे हुआतब । तक लगे रहे। प्रामाणिक हिदी बोन के वस्तुत मुभा के मक्षिप्त हिदी मै अग्रेजी अादि न जाननेवालो के सामने कोशविज्ञान के शब्दसागर का कुछ सुधरा हुम्रा रूप मात्र था । कोशकला की अपेक्षाकृत प्रीइ र विकमित रूप का प्रतिमान उपासित हुआ । दृष्टि से उममे नूतन विकास नहीं हो पाया। नालदाविशाल शब्द | संक्षिप्त हिंदी पब्दिमागर को हम हिंदी कोशों का प्रथम व्याव- सागर नामक--दिली से प्रकाशित एक हिदी कश-बड़े विज्ञापन हारिक और प्रामाणिक सस्करण कह सकते हैं। इसमें मुख्यत सक्षेपी- और बड़े प्रचार के साथ मामने आया। हिंदी शब्दसागर को पूर्णत करण हो किया गया है। बाद के सस्करण में थोडा बहुत शोधन- लेकर और मनमाने ढंग से उसके अगो, अशी को काट ४ टकर वर्धन होता रहा। पष्ठ संस्करण में अवश्य ही व्युत्पत्ति के निर्देश में यत्रतत्र कुछ अनावश्यकः नए शब्दों का जोडकर इमको ढाँचा खडा कुछ नई पद्धति अपनाई गई हैं। स्वल्प कुछ ही विप उपलब्धि है। किया गया। पर शव्दसरया फै। दिखावटी वृद्धि के अतिरिक्त इम अन्य अनेक कोश भी इस समय बने परतु ज्ञानमहल का वृहद् हिदा एक जिल्द 'विशाल' विज्ञेपणवाले शब्दमाग में कोई भी ऐमी शब्दकोश कुछ दृष्टि से नवीनता लकर सामने आता है । इस केश खास बात नहीं हैं, जो कोशरचना के स्तर को ऊपर उठा सके। ऐसी मे सस्कृत कोशी से लेकर हजारो शब्द-मूल र योगक---चढ़ाए अव्यवस्थाएँ अवश्य जिनके कारण हिदी की कोमा-रचना-विद्या उच्च गए हैं। इनम बहुधा ऐसे दिखाई पड़ते हैं जो हिदी में अप्रयुक्त है। स्तर से कुछ नीचे विस प्राई जिसे शब्दसागर द्वारा निर्धारित और इस कोश का नवीनता है संस्कृत काशी के अनुकरण पर पेटेवानी अधिगत किया गया था। पद्धति का मथाशक्ति अपनाने की चेष्टा । इस पद्धति के अनुसार एक मूल शब्द के अतर्गत उससे बने अनेक व्युत्पन्न रूपों और योगिक पदो का समावेश किया गया है । इसम पूणता न होने पर भी इस सणि | हिंदी साहित्य समेलन द्वारा प्रकाशित और श्री रामचंद्र वर्मा की, जहाँ तक हमें ज्ञात है, कदाचित् व्यापक रूप से पहली बार हिंदी के संपादकत्व एव निर्देशन में निर्मित मानक हिंदी कशि-इस दिशा के कोश में प्रयोग हुमा है । अगरजा, संस्कृत अादि के कोणा को यह में एक महत्वपूर्ण दूसरा और नवीन विशाल ग्रथं है। इसके पद्धति हिदीं में लाकर इस कोण न हिद, काशी के निर्मा। म आरंभिक निवेदन में संपादक ने उक्त केश झा अनेक विशेषताओं नवीनता पैदा की। पर इसके अनुसरण में हिंदी कशा के लिये का निर्देश किया है जिन्हें उन्होने (१) शब्दों के रूप और अक्षरी, (२) अनक कठिनाइयाँ अा जाता है । व्युत्पन्न र समासयुक्त यागिक निरक्ति या व्युत्पत्ति, (३) शब्दों के अथ श्रीर विवेचन, (४) अर्थों पृदा के मूल शब्द के अतगत समाव से अनुपूवों का अनुसारका क्रम, (५) अथ का वर्गीकरण, (६) अर्थों के सूधम अतर, (७) शब्दक्रम के स्थापन म पूर्ण व्यवस्था काठन हो जाता है। व्याकरणिक मुहावरे, (८) उदाहरण, (६) अन्यान्य संशाधन और (१०) ध्वनिविकारों और सधिमूलक ध्वनिपरितना के कारण शब्द अंगरेजी पर्याय, इन शीपको अतर्गत निदिष्ट किया हैं । क्रम योजना अस्तव्यस्त होने लगत। है। उदाहरण के लिय वचन पर स्वयं इन्होने में ही है कि मानक हिंदी काश भी सभी शब्द के अलग त यदि 'वाचन' भ। २ख। जाय और इतिहास के प्रतगत अ।धुनिक हिंदी कोशो की तरह हिंदी शब्दसागर की भित्ति पर *ऐतिहासिक', 'दयावरण के मतगत 'वैयाकरण' शब्द समाविष्ट हो, ही आधारित है । फिर भी बहुत सी बात और विवरण में 'सर्व' के मतगत 'सावदशक', साथ भ म द' शब्द रख दिए जाय अनेक परिवतन के कारण चक कृति मे को रचना को ढाँचा सो शब्द-कम-स्थापना की जो वर मस्तव्यस्तता उत्पन्न हुन्वी बदल गया है। इसके कारण वे अपने सपादन पर गरब को भी है वह एक समस्या बन जाती है। इसका सर्वमान्य निश्चय अरि अनुभव करते हुए कहते हैं-'उसको बिल्ल नया, युक्तिसगत स्वीकरण किए विना हिदी कोणा में उक्त पद्धति को अपनाना कुछ वैज्ञानिक तथा व्यवस्यि त रूप दिया गया है। उनका कथन है कि कठिन हो जाता है। फिर भी ज्ञानमहल क काश में यह प्रयास नवीन शब्दार्थविवेचन में केवल अन्य कोणी का आधार न लेकर उनके प्रयोग ही कहा जायगा। ऐसी या अन्य कठिनाइयों का प्रश्न भ उक्त कृशि के प्रचलित पक्ष का भी सहारा लिया गया है। कृत आदि के कोण में प्रारंभिक निजिन्हें उन्होन (१)