पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४२

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तम बाण के लिये विषयगत बना रहता है। भाषा हो जाता है। फिर भी क ई - प्राधनिक कोश नियोज्य उपादान और पद्धति इसका प्रयोग होता है। इसके अतर्गत अनेक प्राचलिन वोलियाँ हैं, विभपाएँ हैं, मातृभापाए हैं। ऐसी भापा का जब ध्यापक भाग मै आधुनिक शब्दकोशो वे बहुत में वीर्य वैज्ञानिक पद्धति में होते। शिप्ट और साहित्यिक भाषा के रूप में व्यवहार होना है तव प्रचलिया | है। भापाविज्ञान के प्रयोगात्मक विज्ञान वेः प म इममै श्रम करना । अर सीमावर्ती क्षेत्रो की वोलियो शोर भपिशो के शव्दार्थों का संग्रह पटता है। उत्तम बोश के लिये, विपयगत वर्णन के पद्धतिसिद्धांत क और त्याग दुष्कर समस्या बन जाती हैं। इसका समाधान कठिनतर सामान्यीकरण र निरत प्रतिमश धन अपेक्षित रहता है। भापा हो जाता है। फिर भी कौशसपादकों के लिये अपने अनुभव र ज्ञान विज्ञान के वर्णनात्मक पक्ष की उपयोगिता यहाँ प्रत्यक्ष हैं। समलित । के आधार पर रास्ता निकालने के चेष्टा करना आवश्यक हो उठता है। शब्द के विपर्य में निम्नलिखित बातो की मह जानकारी देना आवश्यकः । होता है। (१) वर्णानुपूर्वी, (२) उच्चारण स्प, (३) व्याकरणिक । शब्दभेद की सूचना, (४) प्रकृति-प्रत्यय विवेकः, (५) व्यत्पत्ति, (६) वर्तमान एवः यो अवः अर्थ, (७) प्राचीन शब्दार्थ, (८) अगर- शब्दमग्रह का है। दूसरा पहलू है शब्दसख्या की वृद्धि । इसमें शब्द-सनिधि-मल शब्दयोग र उसका अर्थ, (६) अव्युत्पन्न शब्द, ब भ तो वैव ल्पिक विकसित तद्भव या अपभ्रष्ट स्पो के कारण संख्या(१०) पर्याय अर (११) अर्थों के भेद पर आधारित अर्यच्छायाएँ । वृद्धि होती है, और कर्म भापा मे नवमृत, नवागत, नवद्भावित और नवायातित शब्दो के सहयोग से शव्वृद्धि होती है। किसी भी इनके अतिरिक्त शब्दार्थ की आवश्यक व्याख्या और, सदर्भगपूक | जीवित भोपा में सामाजिक, वैज्ञानिक, औद्योगिक, शैणिक तथा सूचनाम्रो का विवरण में दिया जाता है। यहाँ शब्दकोण द्वारा | प्राविधिक प्रादि ज्ञान विज्ञान का विकास र विस्तार होने पर ज्ञानकोशात्मक और विश्वकोशात्मक पद्धति की विशेषता का स्पर्श नित्य नए नए शब्द आते रहते हैं। विचार के नए कोण, नई शैली हो जाता है। कभी पययि में, कभी लवे कथनो द्वारा व्दध्य अर्थ अर वोध्यार्थ की अभिव्यक्ति की नूतन व बचेतना के कारण कुछ का मात्रधारा या संयुक्त मावना सूचित करना आवश्यक है। जाता है। प्रचलित' या पुराने शादी से भी परपरागत अर्य के अतिरिक्त कृश्य इसके लिये अन्य गन्दा, विबरण या चित्रा र रेखा!नियों द्वारा ज्ञान और वार का वध कराया जाता है। कभी नए शब्द, नए यौगिना ? वा वा वrs a कराया जाता है। इसी प्रकार प्रसगंगभित अर्थ भी व्यक्त करना पड़ता समस्त पद अथवा नधकायित ( न्यू क्राएड ) शब्दो के • Jध्यम से हैं, कभी कभी अर्यप्रकाशक उद्धरणो का उपयोग भी आवश्यक हो तद्भापाभार्प समाज के अभिव्यजनय विवक्षा की पूर्ति का प्रयास जाता है। होता है। हिंदी कोश में शब्दसकलन--कुछ समस्याएँ नवीन शब्दो-अर्थों का प्रश्न निर्मय कोश के अनुरूप शब्दसकलन वर्ड, सावधानी से और | हिंदी जीवत भापा है। राष्ट्रभाषा है। जाने के बाद देश और विवेकपूर्वक करना पड़ता है। साथ ही अर्थसंकलन भी करना पड़ता काल ६ सपूर्ण परिस्थितियों के अनुरूप उमक बधमा अौर है। इसका तात्पर्य यह है कि 'भापा में नवीन अर्थचित्रो और अभिव्यक्ति वाच्या क्ति के प्रयासों का विस्तार अपेक्षित भी है, अबश्यमाघी दृष्टियो का आयात होता रहता है। कर्म पुराने ही शब्दों से र भी । उद्योग, व्यवसाय, ज्ञान विज्ञान आदि के क्षेत्र में वतमान युग कर्भ नए शब्दो या शब्दयोग द्वारा इनका अभिव्यजन होता हैं। के समस्त आवश्यक अर्थरूप र अर्थविवो का पूर्ण अभिव्यक्ति अत शब्दसकलन के साथ माथ भोपा में नवागत अर्थचित्रों, विचार के लिये--इमी वारण हिंदी प्रयत्नशील है। ज्ञान विज्ञान की सैकडो बिवौं र अर्थबोध के रूपो का सवालन, शब्दसकलन के साथ माथ | शाखाम्रो से पारिभापिक, प्राविधिक र नव्य अर्थबोध के अभिधेय * उत्तम कोशो में संयोजित करना आवश्यक होता है। इसलिये अयवा प्रतीकवाध्य, अर्थरूप की अभिव्य जना का वह प्रयास कर रही सकलयिता और संपादक के लिये प्रबुद्धता, जागरूकता र भाषाप्रयोग हैं। प्रत हिंदी का कोशकायं भविष्य में भी सर्वदेव तब तक निर्माण के विस्तृत क्षेत्र के गहरे जानकारी अत्यत अपेक्षित होती है, उनके प्रक्रिया में श्रम में ही रहेगा जब तक वह जीवत भाप बनी रहेगी। लिये तत्तविपयो का प्रौढ ज्ञान और तटस्थ्यबोध भी आवश्यक है। अत यथाशक्ति शब्द-सया-वृद्धि भी सर्वदेव अत्यत श्रावश्यक रहेगी। कोणोपयोगी शब्द और अर्थ के सग्रह और योग की शक्ति और उस पारिभाषिक, वैज्ञानिक, प्राविधिक एवं नानाशास्त्रीय घाब्दकोशो के क्षेत्र मे गरी पैठ नितात उपयोगी होता है। तत्तविपर्य के मर्मज्ञ श्रीर निर्माण में भारत सरकार की ओर से बड़े विशाल पैमाने पर कार्य हो फाशकार्य की बोधचेतना से समन्वित पुरुप है। अच्छे कोश के उत्तम रहा है । तत्तद्ववियों ने दिशैपज्ञ प्रौर हिदीविज्ञों के सहयोग से शब्दसकलन में सहायक हो सकते हैं। वहीं इस क्षेत्र के संग्रह अंतर अग्रेजी हिंदी के शव्दमुग्रहात्मन को बन रहे हैं। 'पारिभाषिक त्याग का मर्म ठीक ठीक पहचान सकते हैं। जो नए एव विलक्षण-- शब्दसंग्रह, विज्ञान प्राब्दावली ( माइस ग्नासरी ) प्रौर 'पदनामशब्द और अर्थ के प्रयोग भाषा में कार्फ चल पडे हो, उनका सग्रह ब्दावली' अदि बन चुके हैं। डा० रघुवीर में भी ऐसे अनेक कोश होना चाहिए। यदि वे मान्य हो गए हो त उनको संग्रह अनिवार्य हो। घनए हैं। जाता है। हिंदी कुछ विलक्षण भाषा है। यह राष्ट्रभापा है अौर बडे भार | शाब्दसागर के अनतर बनने वाले निदिप्ट को शो में प्राप सर्वत्र भूभाग के व्यवहारभाषा में हैं। किसी अचल का पूणरूपेण मरावृद्धि की चर्चा हुई हैं। परतु यह वयं इलिये अत्यत कठिन मातभापा न होते हुए भी लगभग २० मोड जनता के ब्यवहार में है कि पूवक्त शायं में से अह और योग या प्रश्न व¥। ही वैदय