पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५

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पढ़ने की उत्कंठा बढ़ने लगी। उस समय हिंदी के हितैषियों को हिंदीभाषा का एक ऐसा बृहत् कोश तैयार करने की आवश्यकता जान पड़ने लगी, जिसमें हिंदी के पुराने पद्य और नए गद्य दोनों में व्यवहृत होनेवाले समस्त शब्दों का समावेश हो, क्योंकि ऐसे कोश के बिना आगे चलकर हिंदी के प्रचार में कुछ बाधा पहुँचने की आशंका थी।

काशी नागरीप्रचारिणी सभा ने जितने बड़े-बड़े और उपयोगी काम किए हैं, जिस प्रकार प्रायः उन सबका सूत्रपात या विचार सभा के जन्म के समय, उसके प्रथम वर्ष में हुआ था, उसी प्रकार हिंदी का बृहत् कोश बनाने का सूत्रपात नहीं तो कम से कम विचार भी उसी प्रथम वर्ष में हुआ था। हिंदी में सर्वांगपूर्ण और बृहत् कोश का अभाव सभा के संचालकों को १८९३ ई० में ही खटका था और उन्होंने एक उत्तम कोश बनाने के विचार से आर्थिक सहायता के लिए दरभंगानरेश महाराजा सर लक्ष्मीश्वर सिंह जी से प्रार्थना की थी। महाराजा ने भी शिशु सभा के उद्देश्य की सराहना करते हुए १२५) उसकी सहायता के लिए भेजे थे और उसके साथ सहानुभूति प्रकट की थी। इसके अतिरिक्त आपने कोश का कार्य आरंभ करने के लिए भी सभा से कहा था और यह भी आशा दिलाई थी कि आवश्यकता पड़ने पर वे सभा को और भी आर्थिक सहायता देंगे। इस प्रकार सभा ने नौ सज्जनों की एक उपसमिति इस संबंध में विचार करने के लिए नियुक्त की; पर उपसमिति ने निश्चय किया कि इस कार्य के लिए बड़े-बड़े विद्वानों की सहायता की आवश्यकता होगी और इसके लिए कम से कम दो वर्ष तक २५०) मासिक का व्यय होगा। सभा ने इस संबंध में फिर श्रीमान् दरभंगानरेश को लिखा था, परंतु अनेक कारणों से उस समय कोश का कार्य आरंभ नहीं हो सका। अतः सभा ने निश्चय किया कि जबतक कोश के लिए यथेष्ट धन एकत्र न हो तथा दूसरे आवश्यक प्रबंध न हो जाएँ तबतक उसके लिए आवश्यक सामग्री ही एकत्र की जाए। तदनुसार उसने सामग्री एकत्र करने का कार्य भी आरंभ कर दिया।

सन् १९०४ में सभा को पता लगा कि कलकत्ते की हिंदी साहित्य सभा ने हिंदी भाषा का एक बहुत बड़ा कोश बनाना निश्चित किया है और उसने इस संबंध में कुछ कार्य भी आरंभ कर दिया है। सभा का उद्देश्य केवल यही था कि हिंदी में एक बहुत बड़ा कोश तैयार हो जाए, स्वयं उसका श्रेय प्राप्त करने का उसका कोई विचार नहीं था। अतः सभा ने जब देखा कि कलकत्ते की साहित्य सभा कोश बनवाने का प्रयत्न कर रही है, तब उसने बहुत ही प्रसन्नतापूर्वक निश्चय किया कि अपनी सारी संचित सामग्री साहित्य सभा को दे दी जाए और यथासाध्य सब प्रकार से उसकी सहायता की जाए। प्रायः तीन वर्ष तक सभा इसी आसरे में थी कि साहित्य सभा कोश तैयार करे। परंतु कोश तैयार करने का जो यश स्वयं प्राप्त करने की उसकी कोई विशेष इच्छा न थी, विधाता वह यश उसी को देना चाहता था। जब सभा ने देखा कि साहित्य सभा की ओर से कोश की तैयारी का कोई प्रबंध नहीं हो रहा है, तब उसने इस काम को स्वयं अपने ही हाथ में लेना निश्चित किया। जब सभा के संचालकों ने आपस में इस विषय की सब बातें पक्की कर ली, तब २३ अगस्त, सन् १९०७ को सभा के परम हितैषी और उत्साही सदस्य श्रीयुक्त रेवरेंड ई॰ ग्रीव्स ने सभा की प्रबंधकारिणी समिति में यह प्रस्ताव उपस्थित किया कि हिंदी के एक बृहत् और सर्वांगपूर्ण कोश बनाने का भार सभा अपने ऊपर ले; और साथ ही यह भी बतलाया कि यह कार्य किस प्रणाली से किया जाए। सभा ने मि॰ ग्रीव्स के प्रस्ताव पर विचार करके इस विषय में उचित परामर्श देने के लिए निम्नलिखित सज्जनों की एक उपसमिति नियत कर दी— रेवरेंड ई॰ ग्रीव्स, महामहोपाध्याय पंडित सुधाकर द्विवेदी, पंडित रामनारायण मिश्र बी॰ ए॰, बाबू गोविंददास, बाबू इंद्रनारायण सिंह एम॰ ए॰, छोटेलाल, मुंशी संकटाप्रसाद, पंडित माधवप्रसाद पाठक और मैं।

इस उपसमिति के कई अधिवेशन हुए जिनमें सब बातों पर पूरा विचार किया गया। अंत में ९ नवंबर, १९०७ को इस उपसमिति ने अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें सभा को परामर्श दिया गया कि सभा हिंदीभाषा के दो बड़े कोश बनवावे जिनमें से एक में तो हिंदी शब्दों के अर्थ हिंदी में ही रहे और दूसरे में हिंदी शब्दों के अर्थ अँगरेजी में हो। आजकल हिंदी भाषा में गद्य तथा पद्य में जितने शब्द प्रचलित हैं उन सबका इन कोशों में समावेश हो, उनकी व्युत्पत्ति दी जाए और उनके भिन्न-भिन्न अर्थ यथासाध्य उदाहरणों सहित दिए जाएँ। उपसमिति ने हिंदी भाषा के गद्य तथा पद्य के प्रायः दो सौ अच्छे-अच्छे ग्रंथों की एक सूची भी तैयार कर दी थी और कहा था कि इनमें से सब शब्दों का अर्थसहित संग्रह कर लिया जाए; कोश की तैयारी का प्रबंध करने के लिए उसकी एक स्थायी समिति बना दी जाए और कोश के संपादन तथा उसकी छपाई आदि का सब प्रबंध करने के लिए एक संपादक नियुक्त कर दिया जाए।

समिति ने यह भी निश्चित किया कि कोश के संबंध में आवश्यक प्रबंध करने के लिए महामहोपाध्याय पंडित सुधाकर द्विवेदी, लाला छोटेलाल, रेवरेंड ई॰ ग्रीव्स, बाबू इंद्रनारायण सिंह एम॰ ए॰, बाबू गोविंददास, पंडित माधवप्रसाद पाठक और पंडित रामनारयण मिश्र बी॰ ए॰ की प्रबंधकर्तृ समिति बना दी जाए, और उसके मंत्रित्व का भार मुझे दिया जाए। समिति का प्रस्ताव था कि उस प्रबंधकर्तृ समिति को अधिकार दिया जाए कि वह आवश्यकतानुसार अन्य सज्जनों को भी अपने में सम्मिलित कर ले। इस कोश के संबंध में प्रबंधकर्तृ समिति को सम्मति और सहायता देने के लिए एक और बड़ी समिति बनाई जाने की सम्मति भी दी गई जिसमें हिंदी के समस्त बड़े-बड़े विद्वान् और प्रेमी सम्मिलित हों। उस समय यह अनुमान किया था कि इस काम में लगभग ३००००) का व्यय होगा जिसके लिए सभा को सरकार तथा राजा-महाराजाओं से प्रार्थना करने का परामर्श दिया गया।

सभा की प्रबंधकारिणी समिति ने उपसमिति की ये बातें मान ली और तदनुसार कार्य भी आरंभ कर दिया। शब्दसंग्रह के लिए, उपसमिति ने जो पुस्तकें बतलाई थीं, उनमें से शब्दसंग्रह का कार्य भी आरंभ हो गया और धन के लिए अपील भी हुई, जिससे पहले ही वर्ष २३३२) के वचन मिले, जिसमें से १९०२) नगद भी सभा को प्राप्त हो गए। इसमें से सबसे पहले १०००) स्वर्गीय माननीय सर सुंदरलाल सी॰ आई॰ ई॰ ने भेजे थे। सत्य तो यह है कि यदि प्रार्थना करते ही उक्त महानुभाव तुरंत १०००) न भेज देते तो सभा का कभी इतना उत्साह न बढ़ता और बहुत संभव था कि कोश का काम और कुछ समय के लिए टल जाता। परंतु सर सुंदरलाल से १०००) पाते ही सभा का उत्साह बहुत अधिक बढ़ गया और उसने और भी तत्परता से कार्य करना आरंभ किया। उसी समय श्रीमान् महाराज ग्वालियर ने भी १०००) देने