पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।


का वचन दिया। इसके अतिरिक्त और भी अनेक छोटी-मोटी रकमों के वचन मिले। तात्पर्य यह कि सभा को पूर्ण विश्वास हो गया कि अब कोश तैयार हो जाएगा।

इस कोश के सहायतार्थ सभा को समय-समय पर निम्नलिखित गवर्नमेंटों, महाराजों तथा अन्य सज्जनों से सहायता प्राप्त हुई—

संयुक्त प्रदेश की गवर्नमेंट १३०००)
भारत गवर्नमेंट ५०००)
मध्यप्रदेश की गवर्नमेंट १०००)
श्रीमान् महाराज साहब नेपाल २०००)
{{{1}}}स्वर्गवासी महाराज साहब रीवाँ १८००)
{{{1}}}महाराज साहब छत्रपुर १५००)
{{{1}}}महाराज साहब बीकानेर १५००)
{{{1}}}महाराजाधिराज बर्दवान १५००)
{{{1}}}महाराज साहब अलवर १०००)
{{{1}}}स्वर्गवासी महाराज ग्वालियर १०००)
{{{1}}}स्वर्गवासी महाराज कश्मीर १०००)
{{{1}}}महाराज साहब काशी १०००)
डाक्टर सर सुंदरलाल १०००)
स्वर्गवासी महाराज भिनगा १०००)
कुँवर राजेन्द्रसिंह १०००)
श्रीमान् महाराज साहब भावनगर ५००)
{{{1}}} महाराज साहब इंदौर ५००)
{{{1}}} स्वर्गवासी राजा साहब गिद्धौर ५००)
डाक्टर सर जार्ज ग्रियर्सन १५०)
इनके अतिरिक्त और बहुत से महानुभावों से १००) अथवा उससे कम की सहायता प्राप्त हुई।

शब्दसंग्रह करने के लिए जो पुस्तकें चुनी गई थीं, उन पुस्तकों को सभासदों में बाँटकर उनसे शब्दसंग्रह करने का सभा का विचार था। बहुत से उत्साही सभासदों ने पुस्तकें तो मँगवा लीं पर कार्य कुछ भी न किया। बहुतों ने तो महीनों पुस्तकें अपने पास रखकर अंत में ज्यों की त्यों लौटा दीं और कुछ लोगों ने पुस्तकें भी हजम कर लीं। थोड़े से लोगों ने शब्दसंग्रह का काम किया था, पर उनमें भी संतोषजनक काम इने-गिने सज्जनों का ही था। इसमें व्यर्थ बहुत-सा समय नष्ट हो गया, पर धन की यथेष्ट सहायता सभा को मिलती जाती थी, अतः दूसरे वर्ष सभा ने विवश होकर निश्चित किया कि शब्दसंग्रह का काम वेतन देकर कुछ लोगों से कराया जाए। तदनुसार प्रायः १६—१७ आदमी शब्दसंग्रह के काम के लिए नियुक्त कर दिए गए और एक निश्चित प्रणाली पर शब्दसंग्रह का काम होने लगा।

आरंभ में कोश के सहायक संपादक पंडित बालकृष्ण भट्ट, पंडित रामचंद्र शुक्ल, लाला भगवानदीन और बाबू अमीर सिंह के अतिरिक्त बाबू जगन्मोहन वर्मा, बाबू रामचंद्र वर्मा, पंडित वासुदेव मिश्र, पंडित रामवचनेश मिश्र, पंडित ब्रजभूषण ओझा, श्रीयुत् वेणी कवि आदि अनेक सज्जन भी इस शब्दसंग्रह के काम में सम्मिलित थे। शब्दसंग्रह के लिए सभा केवल पुस्तकों पर ही निर्भर नहीं रही। कोश में पुस्तकों के शब्दों के अतिरिक्त और भी अनेक ऐसे शब्दों की आवश्यकता थी जो नित्य की बोलचाल के, पारिभाषिक अथवा ऐसे विषयों के शब्द थे जिनपर हिंदी में पुस्तकें नहीं थीं। अतः सभा ने मुंशी रामलगनलाल नामक एक सज्जन को शहर में घूम-घूमकर अहीरों, कहारों, लोहारों, सोनारों, चमारों, तमोलियों, तेलियों, जोलाहों, भालू और बंदर नचानेवालों, कूचेबंदों, धुनियों, गाड़ीवानों, कुश्तीबाजों, कसेरों, राजगीरों, छापेखानेवालों, महाजनों, बजाजों, दलालों, जुआरियों, महावतों, पंसारियों, साईसों आदि के पारिभाषिक शब्द तथा गहनों, कपड़ों, अनाजों, पेड़ों, बरतनों, देवताओं, गृहस्थी की चीजों, पकवानों, मिठाइयों, विवाह आदि की रस्मों, तरकारियों, सागों, फलों, घासों, खेलों और उनके साधनों, आदि-आदि के नाम एकत्र करने के लिए नियुक्त किया। पुस्तकों के शब्दसंग्रह के साथ-साथ यह काम भी प्रायः दो वर्ष तक चलता रहा। इस संबंध में यह कह देना आवश्यक जान पड़ता है कि मुंशी रामलगनलाल का इस संबंध का शब्दसंग्रह बहुत संतोषजनक था। इसके अतिरिक्त सभा ने बाबू रामचंद्र वर्मा को समस्त भारत के पशुओं, पक्षियों, मछलियों, फूलों और पेड़ों आदि के नाम एकत्र करने के लिए कलकत्ते भेजा था जिन्होंने प्रायः ढाई मास तक वहाँ रहकर इंपीरियल लाइब्रेरी से ‘फ्लोरा और फॉना आफ ब्रिटिश इंडिया सीरिज’ की समस्त पुस्तकों में से नाम और विवरण आदि एकत्र किए थे। हिंदी भाषा में व्यवहृत होनेवाले अँगरेजी, फारसी, अरबी तथा तुर्की आदि भाषाओं के शब्दों, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों की जीवनियों, प्राचीन स्थानों तथा कहावतों आदि के संग्रह का भी बहुत अच्छा प्रबंध किया गया था। पुरानी हिंदी तथा डिंगल और बुंदेलखंडी आदि भाषाओं के शब्दों का भी अच्छा संग्रह किया गया था। इसमें सभा का मुख्य उद्देश्य यह था कि जहाँ तक हो सके, कोश में हिंदी भाषा में व्यवहृत होने या हो सकनेवाले अधिक से अधिक शब्द आ जाएँ और यथासाध्य कोई आवश्यक बात या शब्द छूटने न पावे। इसी विचार से सभा ने अँगरेजी, फारसी, अरबी और तुर्की आदि भाषाओं के शब्दों, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों और स्थानों के नामों आदि की एक बड़ी सूची भी प्रकाशित कराके घटाने-बढ़ाने के लिए हिंदी के बड़े-बड़े विद्वानों के पास भेजी थी।

दो ही वर्ष में सभा को अनेक बड़े-बड़े राजा महाराजाओं तथा प्रांतीय और भारतीय सरकारों से कोश के महायतार्थ बड़ी-बड़ी रकमें भी मिलीं, जिससे सभा तथा हिंदीप्रेमियों को कोश के तैयार होने में किसी प्रकार का संदेह नहीं रह गया और सभा बड़े उत्साह से कोश का काम कराने लगी। आरंभ में सभा ने यह निश्चित नहीं किया था कि कोश का संपादक कौन बनाया जाए, पर दूसरे वर्ष सभा ने मुझे कोश का प्रधान संपादक बनाना निश्चित किया। मैंने भी सभा की आज्ञा शिरोधार्य करके यह भार अपने ऊपर ले लिया।

सन् १९१० के आरंभ में शब्दसंग्रह का कार्य समाप्त हो गया। जिन स्लिपों पर शब्द लिखे गए थे, उनकी संख्या अनुमानतः १० लाख थी, जिनमें से आशा की गई थी कि प्रायः १ लाख शब्द निकलेंगे, और प्रायः यही बात अंत में हुई भी। जब शब्दसंग्रह का काम हो चुका, तब स्लिपें अक्षरक्रम से लगाई जाने लगीं। पहले वे स्वरों और व्यंजनों के विचार से अलग-अलग की गईं और तब स्वरों के प्रत्येक अक्षर तथा व्यजनों के प्रत्येक वर्ग की स्लिपें अलग-अलग की गईं। जब स्वरों की स्लिपें अक्षरक्रम से लग गईं, तब व्यंजनों के वर्गों के अक्षर अलग-अलग किए गए और प्रत्येक अक्षर की स्लिपें क्रम से लगाई गईं। यह कार्य प्रायः एक वर्ष तक चलता रहा।

जिस समय कोश के संपादन का भार मुझे दिया गया था, उसी