पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१०

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पास जवाब नहीं था । इस प्रकार स्पष्ट है कि किशोरीदास जी रस और अलङ्कार के अखाड़े के भी भारी पहलवान हैं । असहयोग- के जमाने में असहयोगी किशोरीदास जी ने ‘ "रस और अलङ्कार” के नाम से एक पुस्तक लिख डाली, जिसके स्वरचित सारे उदाहरण देशभक्ति और स्वातंत्र्य-प्रेम से इतने ओत-प्रोत थे कि पुस्तक के छपते ही बम्बई-सरकार ने उसे जब्त कर लिया !

सो, वाजपेयी जी साहित्य के भी आचार्य हैं। इसमें सन्देह नहीं है इस का और स्पष्ट प्रमाण पंडित पद्मसिंह शर्मा के संजीवन-भाष्य' पर उन की आलोचनात्मक लेखमाला है ! वाजपेयी जी के ऊपर 'बज्रादपि कठोराणि मृदुनि कुसुमादपि' की सूक्ति पूरी तौर से चरितार्थ होती है । पद्मसिंह शर्मा का खूब खण्डन उन्होने ‘बिहारी सतसई और उनके टीकाकार' नामक लेखमाला के रूप में करना शुरू किया । पर जब शर्मा जी का निधन हो गया, तो उन्होंने न छपे भाग को मंगवाकर नष्ट कर दिया और कहा--"जब सुनने वाला ही न रहा, तो बात कहने का फल क्या ?? आज बाजपेयी जी प्यालों से नहीं, लोटों से चाय पीते हैं और पीते वक्त एक टीस-भरी आवाज में कह उठते हैं-“शर्मा जी ने मुझे चाय पीना सिखा दिया !”

नाजबरदारी की आवश्यकता

हरेक असाधारण प्रतिभाशाली पुरुष' में कुछ ऐसी विलक्षणता या विशिष्टता भी होती है, जिसे सभ्य गुणग्राही समाज को बर्दाश्त करने के लिए तैयार रहना पड़ता है । यह कोई मँहगा सौदा नहीं है; क्योंकि थोड़ी-सी नाजबरदारी करके आप उनसे बहुमूल्य वस्तु प्राप्त कर सकते हैं। प्रतिभाएँ सात खून माफ' बाली श्रेणी में होती हैं । पावलोफ् लेनिन तथा सभी बोलशेविकों को हमेशा गालियाँ सुनाता था, जब कि बोल्शेविक अभी-अभी अधिकारारूढ़ हुए ही थे। लेकिन लेनिन उसकी सारी कटूक्तियों को हँसकर टाल दिया करते थे और कहते थे कि पावलोफ् जीवन और मनोविज्ञान के ऐसे तत्वों और तथ्यों का आविष्कार कर रहा है, जो मार्कसवादी भौतिकवाद के जबर्दस्त समर्थक हैं । यह प्रतिभाओं की कदरदानी, उनकी नाजबरदारी और सब तरह से उनकी सेवा की भावना ही है, जिसके कारण बोल्शेविक आज ज्ञान-विज्ञान में दुनियाँ के अगुआ हैं ।