पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१०२

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चन का विस्तार, ‘देशस्य विस्तारः-देश का विस्तार आदि । परन्तु शब्द विस्तर:' और 'अन्थ-विस्तरः । यहाँ ‘विस्तारः' नहीं । हिन्दी ने सर्वत्र विस्तार ही रखा है--विस्तर नहीं लिया | ऐसा क्यों ? इस लिए कि हिन्दी ने सरल मार्ग अपनाया है। कहीं ‘विस्तर' और कहीं विस्तार करने में कठिनाई बढ़ती, भ्रम भी बढ़ता । सभी संस्कृत-व्याकरण नहीं पढ़ते । ऐसा होता, तो फिर हिन्दी का जन्म ही न होता । ‘विस्तर' ले लेने पर लोग शब्द-संबन्धी

  • प्रकार’ को ‘प्रकर' भी लिखने लग जाते हैं सब प्रकर से समझा

दिया है। ऐसे प्रयोग भी संभावित थे । तब हिन्दी की क्या दशा होती है। ‘राष्ट्रिय' देख कर लोग केन्द्रिय तथा प्रदेशिय' आदि लिखने ही लगे थे' ! प्रवाह चलता है, गलत या सही ! फिर उसे रोकना कठिन काम ! परन्तु दह उपक्रम तुरन्त दबा दिया गया | एक ही व्यक्ति ने उसे रोक दिया ! यों एक तूफान दब गया । हिन्दी को विकृत कर देता, यदि जहाँ का तहाँ दबा न दिया जाता। हिन्दी ही नहीं, सभी भाषाओं की अपनी प्रकृति होती है। उसे कोई व्याकरण क्या, महाव्याकरण भी बदले नहीं सकता । पाणिनि-व्याकरण

  • विश्रम' शब्द शुद्ध-सिद्ध बतलाता है; परन्तु चल रहा है ‘विश्राम’ अधिक !

हिन्दी ने तो “विश्रम' कतई लिया ही नहीं । विश्रम' न लेने में भी वही कारण है, जो ‘विस्तर न लेने में ! हाँ, ‘श्रम' चलता है, 'क्रम चलता है । | इसी तरह ‘राष्ट्रिय तद्धित' शब्द हिन्दी ने नहीं लिया । भारतीय, जातीय, केन्द्रीय, प्रान्तीय आदिं की बिरादरी में ‘राष्ट्रिय क्या अच्छा लगता ? भ्रम से लोग दूसरे शब्दों को भी गलत लिखने लगते, जैसा कि देखने में आने लगा था । तब फिर उसका परिकार करने में एक यु लग जाता ! इसीलि हिन्दी ने राष्ट्रिय' न लेकर राष्ट्रीय ही ग्रहण किया । संस्कृत में 'राष्ट्रिय तथा राष्ट्रीथ' दोनो शब्द बनते हैं । प्रयोग दोनों का पृथक्-पृथक् श्रुत है । राजा के साले को ‘राष्ट्रि' कहते थे--‘राजश्यालस्तु राष्ट्रियः' ( अमरकोश ) । विशेषण श्रादि में राष्ट्रीयं धनम् चलेगा । इस भेद को न समझ कर लोगों ने हिन्दी में ‘राष्ट्रिय भाषा’ लिखना शुरू कर दिया था, जो कि इसकी प्रकृति के विरूद्ध था । इसी लिए न चल सका । और मान लीजिए, संस्कृत में राष्ट्रीय नहीं, सर्वत्र ‘राष्ट्रिय' ही चलता है। यह भी मान लीजिए कि अमर सिंह ने गलत लिख दिया कि राजा के साले को “राष्ट्रिय' कहते हैं । यह सब सही; परन्तु फिर भी हिन्दी ‘राष्ट्रिय' न लेगी; इस लिए कि सरलता का प्रवाह भंग होग!