पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१०९

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तब यह ‘रक्खा' कहीं किसी विकार का परिणाम है; ऐसा कहा जाएगा । जहाँ ‘रक्खा बोला जाता है, चलता रहेगा, चलता रहे ! वहाँ रखा’ को भी उसी तरह पढ़ेंगे । परन्तु राष्ट्रभाषा से वह “गलस्तन’ बँट जाएगा, जैसे कि शेट्टी’ धोची अादि से अनावश्यक तत्व छैट कर रोटी’ ‘धोती' आदि बना लिए गए। बस, इतना अनुशासन व्याकरण करेगा । इसके अतिरिक्त, व्याकरण यह भी देखेगा कि “जायेगा’ ‘जायेगा? ‘जावेगः जाएगा' आदि साहित्य-प्रचलित रूपों में सही कौन है और गलत कौन । यदि जायगा' लोग बोलते-लिखते हैं, तो फिर ‘ायगा' क्यों नहीं ?

  • श्रयगा’ शुद्ध है, तो फिर ‘गायगा क्यों नहीं ? फिर तो सोयेगा' धोयगा’

श्रादि भी चलने चाहिए ! यह हो नहीं सूझता कि उपर्युक्त सभी रूप शुद्ध हीं ! चलते भी नहीं ! तब विचार करना होगा और भाषा की प्रकृति तथा भाषा-विज्ञान के बल पर तर्क उपस्थित करने होंगे। बताना होगा कि इनमें से कौन-सा रूप शुद्ध हैं और शेष सब क्यों अशुद्ध हैं । अपना पक्ष तर्क से सिद्ध करना होगा । तब साहित्य उस रूप को ग्रहण करेगा। शेष सब छूट जाएँगे । साहित्यिक भाषा में इस तरह के नियन्त्रण व्याकरण कर सकती है। उसे करना चाहिए। और, सच पूछा जाए, तो यहीं उसकी शक्ति देखने को मिलती है । व्याकरण व्यवस्था यहाँ भी दे सकता है कि ‘लिए-लिये’ ‘चाहिए- चाहिये' अादि द्विविध रूपों में तर्क किस के साथ है। क्या दोनों रूप शुद्ध हैं, या एक ? और एक शुद्ध, तो क्यों ? इस प्रकार की व्यवस्था व्याकरण झरेगा, तब साहित्यिक भाषा का रूप निखरेगा । यहाँ अवश्य ही उच्चारण भेद नहीं, लिखावट का भेद है और यह निश्चय ही व्याकरण के नियन्त्रण का विषय है । समास श्रादि पर भी व्याकरण व्यवस्था देगा । वह देखेगा कि स्वदेश के साथ जब देशान्तर भी सम्मिलित हों, तो उनके बारे में अन्तर्देश' शब्द का प्रयोग सही होगा, या ‘अन्तरदेश’ का ? जो ‘शब्द’ ‘अन्तर्गृह' में भीतर या भीतरी' अर्थ देता है, वही ‘अन्तर्देश' अन्तर्विश्वविद्यालय' अदि में 'अन्य' अर्थ भी दे सकता है क्या ? दे सकता है, तो फिर ‘अन्तर्देशीय पत्र को सरकारी लिफाफों पर छपा रहता है, उसका क्या अर्थ होगा ? क्या निर्विशेष देशीय' शब्द से वह अर्थ निकल सकता है, जो 'अन्तर्देशीय' शब्द