पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१२५

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शासन है। सबको मान्य है। ऐसा ही चल रहा है । परन्तु स्वयं पाणिनि यदि इस से हट जाएँ, तो उनका भी अनुसरण भाषा न करे । ऊकालोड ज्झस्वदीर्घ प्लुतः' इस सूत्र में ह्रस्व दीर्घ' तथा 'लुत' शब्दों का समाहार द्वन्द्व समास होने पर भी नपुंसक लिग नहीं; पुल्लिंग पाठ है। परन्तु भाषा ने उनके इस पाठ का अनुसरण नहीं किया। वह ‘समाहार द्वन्द्व में सदा ही नपुंसक लिग एकवचन रखती है, पुलिंग नहीं । जब स्वयं पाणिनि का प्रयोग भाषा में गति-विरुद्ध होने के कारण नहीं चला, तो हम पासर जनों की चर्चा ही क्या ! विधि-मंत्री ने कोई अच्छी विधि बनाई, अच्छा अधिनियम दिया, तो अच्छी बात है। हम सब उसका पालन करेंगे। परन्तु उस' विधि के विपरीत यदि वे स्वयं कहीं चले जाएँ, तो हम लोग उनके पीछे न जाएँगे | उसे उनका स्खलन ही समझा जाएगा । हम हिन्दी का परिकार कर रहे हैं, व्याकरण बना रहे हैं। भाषा की गति के अनुसार यह सब होगा, तो सब को मान्य होगा । परन्तु, इन नियमों के विपरीत, असावधानी से, हम कहीं कोई गलत शब्द-प्रयोग कर दे, तो वह प्रमाकोटि में न आएगा। वह प्रमादिक प्रयोग समझा जाएगा । “अमुक वैयाकरण ने स्वयं ऐसा प्रयोग किया है, इसलिए शुद्ध है” यह कह कर उस गतिविरुद्ध शब्द-प्रयोग का समर्थन कर के कोई चला न सकेगा । यही शब्दानुशासन में ‘अनु' शब्द का अर्थ है। शासन तो रहेगा ही । पुस्तक रक्खी है” के रक्खी को व्याकरण गलत आहेगा; यद्यपि प्रदेश-विशेष में क्’ की आवाज सुनी जाती है । हिन्दी प्रदेश-विशेष की चीज नहीं; इसलिए ‘ख’ धातु सामने रख कर वह रखी’ को शुद्ध कहेगा । यही शासन है।

वर्ण-विचार


भावी सार्थक शब्दों का समूह है। 'सार्थक' का अर्थ है-अर्थ-संके- तित । आपने ताली बजाकर एक शब्द किया और उससे चिड़ियाँ उड़ गई, तो यह ‘फर्ट' था ‘पट' शब्द निरर्थक तो न हुआ न ? इससे एक अर्थ निकल इथा-चिड़ियाँ उड़ गई। यों यह ताली बजने का शब्द भी, एक तरह से, सार्थक ही हुआ ! परन्तु ऐसे सार्थक शब्दों का समूह ‘भाषा' नहीं है। यहाँ सार्थक' का अर्थ दूसरा है-अर्थ-संकेतित' । “इस शब्द से यह अर्थ सम- झना चाहिए इस परम्परा-प्राप्त संकेत-व्यवस्था से युक्त शब्द ही यहाँ-सार्थक कहे जाते हैं। जो अर्थ ( वस्तु ) गले से नीचे उतार कर हम अपनी प्यास