पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१२७

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टुकड़े नहीं हो सकते । आपने प्' या 'अ' लिख दिया और मैं ने उसे मिटा दिया, था उता कागज फाड़ कर नष्ट कर दिया, तो इस से उन वर के टुकड़े न हो गए ! “व' तो वह छोटी से छोटी ध्वनि है, जो कान का विषय है और जिसके टुकड़े नहीं किए जा सकते। यह लिवावट ( १’ ‘आ तो लिपि-संकेत हैं, उन उच्चारण को प्रकट करने के लिए संकेतित विभिन्न रेखाएँ। आखों का विषय है। दूसरी चीज है ।। तो, किसी अर्थ के वाचक शब्द को “पद' कहते हैं। ‘पद इसलिए संस्कृट-नाम कि ये चलते हैं । भाषा में को चलते नहीं, वे “पद” नहीं । अप्रय- गह संकेतित शब्द (संस्कृत) ‘पद' नहीं, ‘प्रातिपदिक' या ‘तु' कहलाते हैं। इसी पद को व्याकरणों में ‘शब्द' भी कहा गया है । पदों से जो ‘अर्थ’ समझे जाते हैं, उन्हें पदार्थ' कहते हैं। लौटा, धोती, बड़ा आदि शब्दों से जो चीजे समझी जाती हैं, सब “पदार्थ हैं। पदाथ मूर्त ही नहीं, अमूर्त भी होते हैं । *परात्मा” शब्द से जिस दिव्य शक्ति की बध होता है, वह मूर्त नहीं है। प्रेम, बैर, ईष्य अादि शब्दों से जो अर्थ प्रकट होते हैं, मूर्त नहीं हैं । क्रियाएँ भी अमूर्त हैं, जो ‘देना' आदि शब्दों से समझी जाती हैं। यहाँ इतना ही कृहना है कि पद् य! 'शब्द' के उस अंश को ‘बश' कहते हैं, जिसके लए नहीं किए जा सकते । कभी-कभी एक ही उणे का भी एक पद होती है-तू घर ऋ' इस वाक्य में 'अ' क्रिया-पद एक ही वर्ण का है । तो कहना चाहिए 'ब' वह शब्द या ध्वनि, है जिसके खंड न किए जा सकें; चाहे वह पद का अंश हो, या कि पूरा पद हो । इन वर्षों के दो मुख्य भेद हैं १-स्वर और २-व्यंजन । जो दर्ण स्वयं स्थित रहते हैं—“स्वयं राजन्ते'-वे स्वर कहलाते हैं । अ, इ, उ, आदि स्वर हैं । जो व उच्चारण में वैसे समर्थ नहीं हैं, जिनका उच्चारण करने में स्वर की सहायता लेनी पड़ती है, वे व्यंजन' कहलाते हैं । ‘क’ ‘च’ ‘z श्रादि व्यंजन-वर्ण हैं। स्वर की बैसाखी लगाए बिना ये नहीं खड़े रह सुकदे ।

            भाषा के मूल स्वर
           अ, इ, उ, ऋ,
  • ये चार मूल स्वर' हैं। संस्कृत में 'ऋ' से आगे एक 'लु' स्वर का भी

उल्लेख रहा है। पाशिनि ने “ऋलक सूत्र में ‘लु' का भी गुम्फन किया है। परन्तु