पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१२८

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संस्कृत भाषा में ऐसे शब्दों के दर्शन दुर्लभ हैं, जहाँ इस 'ल' स्वर का अस्ति- त्व किसी भी रूप में प्राप्त हो ! ‘द्वितीय संस्कृत में ( “ब्राह्मण-ग्रन्थ में ) तथा उपनिषद्-साहित्य में ) भी प्रायः यही बात है। ‘प्रथम-संस्कृत में { वेदमापा में । इस लु' का अस्तित्व कदाचित् कहीं प्राप्त हो । वैसे मैं ने जितने मन्त्र देखे हैं, उनमें इस का प्रयोग नहीं मिला । परन्तु फिर भी, सुवि- स्तृत वेद साहित्य में लु' का प्रयोग असम्भावित नहीं है । ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि उस मूल जनभाषा में 'लु' स्वर का प्रयोग अवश्य होता होगा, जिसका परिष्कृत रूप वेदों में मिलता है । जनभाषा के कई उच्चारण सा त्यिक उषा में छोड़ दिए जाते हैं ! राष्ट्रभाषा की मूल जनभाषा में ( श्राधुनिक ‘कौरी' में) 'ल' तथा 'डु के बीच का एक उच्चारण मिलता है । 'ल' 5 जगहू किती-किसी शब्द में यह उचरित होता है, अाज भी { ‘साड़ा जोड़ापुर गया है--साला ज्वालापुर गया है । परन्तु राष्ट्रभाषा ने ( परिकृत या सुसंस्कृत कौर ने } वह उच्चारण ग्रहण नहीं किया । उसकी जगह ‘ल उच्चरित होता है यहाँ । फलतः उस उच्चार के लिए लिपि में कोई संकेत भी नहीं-वर्णसाला' में उस के लिए कोई स्थान नहीं ! हाँ, कौरवी 'बोली' में ग्रामीण जन जो गीत बनाते-आते हैं, उनमें वह ध्वनि सुनी जाती है । यदि वे रात राष्ट्रभाषा में कोई कहीं उद्धृत करे, तो उस ध्वनि के लिए कोई संकेत निर्धारित करना आवश्यक हो जाएगा । अन्यथा, पूरा आनन्द न श्राएगा । इसी तरह जुनभाषा के जो तुत्व वेद में लिए गए होगे, उनके लिए

  • ल' स्वर जानने-समझने की व्यवस्था हुई होगी। आगे चलते-चलते ल’ को

प्रयोग एकदम उड़ गया; परन्तु पुरानी ( वैदिक ) संस्कृत समझने के लिए संस्कृत-व्याकरण में ‘लु' का स्मरण श्नावश्यक है। इसीलिए वह समम्तिय- प्राप्त चीज वहाँ विद्यमान है ।। 'ऋ' का प्रयोग संस्कृत में खूब है - संज्ञाओं में, धातुओं में, अव्ययों में, सर्वत्र | परन्तु हिन्दी आदि आधुनिक भारतीय भाषाओं का गठन ऐसा हैं कि यहाँ 'ऋ' का एकान्त अभाव है । संस्कृत के जो तद्रूप शब्द यहाँ चलते हैं- ऋण, ऋतु श्रादि-उन्हीं में 'ऋ' के दर्शन होते हैं, अन्यत्र नहीं है परन्तु यह ध्यान देने की बात है कि दीर्घ 'ऋ' का प्रयोग संस्कृत शब्दों में भी फहीं हूँढे ही मिलेगा ! ऋकारान्त शब्दों के बहुवचन में अवश्य 'ऋ' को दीर्घत्व प्राप्त हो जाता है-'पितृन्-मातृः' इत्यादि । तो, 'ल’ गया; 'ऋ' की दीर्घ रूप गया और हिन्दी आदि आधुनिक भारतीय भाषा के अपने रूप-गठन में 'ऋ'