पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१३१

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क्रम से, उच्चारण’ -स्थानों के क्रम से इ' के अनन्तर 'ऋ' को वर्णमाला में रहना चाहिए था । परन्तु उच्चारण असली तो हम सब भूल गए न ! इसी लिए' अन्त्य ‘स्थान जिस स्वर (उ) का है, उससे भी चाद' पाणिनि नै ऋ' को वर्ण-समाम्रा में रखा है “ऋलक ल’ का ‘दन्त स्थान जो प्रसिद्ध है, सही नहीं है इसका उच्चार तो बहुत पहले उड़ राया होगा । इसी लिए तालु-स्त्रीय स्वर (ई) के साथ भी इसे नहीं बैठाया गया इसीलिए 3' के भी अनन्तर - वर्ण-माला में स्थित है। आज के उच्चारण के अनुसार तो ‘उ’ से पहले और 'इ' के बाद इसका स्थान अाता है। परन्तु इससे क्या १ अपने असली स्थान का महत्व होता है। उसी के लिए कहा गया है-“स्थानं प्रधानम् । नकली स्थान की कोई कदर नहीं है कोई पूछ नहीं ! वहाँ से हटना पड़ता है । “ऋ' को वर्णमाला में २’ के साथ भी नहीं बैठाया गया !

स्वरों के हस्द, दीर्घ, म त भेद

मूल स्वरों को कुछ खींच कर बोलने से स्वरूप में जो एक लम्चापन या दीर्घता आ जाती हैं, उसे प्रकट करने के लिए वर्णमाला में पूर्णतः पृथक लिपि-संकेत नहीं रखे गए हैं;-प्रत्युत साधारण या ह्रस्व स्वरों में ही कुछ चिह्न लगा दिए गए हैं।

            आ, ई, ऊ, ऋ.

थे मूल स्वरों के ही ( दीर्घ उच्चार के } लिपि-संकेत हैं । 'ऋ' का दीर्घ उञ्चार ते हिन्दी में है ही नहीं, पर शेष तीनो स्वरों का वैसा उच्चार बहुत अधिक है। अनार इमली' उपमा' में तब तीनो स्वरों का साधारण उछा- र है । लम् उच्चार का नाम “दीर्थ' रख लिया गया, तब इसे ‘ह्रस्व' कहने लगे । उपर्युक्त तीनो शब्दों में ह्रस्व उच्चारण है, इस लिए ये ‘ह्रस्व स्वर' कह- जाए-हृत्व छ ह्रस्व ‘इ' और ह्रस्व 'उ'। परन्तु ‘श्राम ईख ऊखल शब्दों में ये तीनों स्वर दी हैं । यहाँ उच्चारण खींच कर है। दीर्घ से दीर्थ- तर या दीर्घतम उचारण हों, तो प्लुत कहलाता है। स्वरों कः प्लुत उच्चा- र हिन्दी में साधारणतः नहीं होता; परन्तु दूर से किसी को लम्बी अावाज में बुलाने पर जोर से रोने-गाने में स्वरों का प्लुते उच्चारण सुनाई देता है । दीर्घ उच्चारण बताने के लिए विशेष लिपि-संकेत हैं और व्यंजनों के साथ भिलने पर जो इनके 'मात्रा-रूप होते हैं, उनमें भी दीर्घ-श्रवण स्पष्ट करने के लिए विशेष लिपि-संकेत हैं; परन्तु लुत' के लिए वैसी कोई व्यवस्था नहीं