पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१३६

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अनुस्वार और अनुनासिक में भेद

अनुस्वार तथा अनुनासिक में भेद बताते हुए लोगों ने लिखा है कि अनुनासिक का उच्चारण इल कः ( टु) होता है और अनुस्वार का खींच कर; थानी गहरा या जुर ! वह कोई भेद की बात नहीं हैं और गलत भी है । अनुनासिक कोई पृथक् ध्वनि नहीं है कि इसके उच्चार में लघुता या हलका- पर बताया जा ! हाँ; अनुस्वार अबश्य प्रथक नुनि है और इसी लिए उस के उच्चारण की एक मात्र नि का दाश्रय दर ' साना जाता है । इसी लिए इस का उरिश चैला ग र है। परन्तु मुनासिझ' वैसी चीज नहीं है । इभी { अनुस्त्रार ॐ तरह ) 4क् सन्तु जो है--स्वर से पृथक् इस की ध्वनि १ क ' एन । अनुस्वार स्वर से झुलू बीज है, जैसे अंगृर क = से अंगूर का शुरु । अपूर” कहने में अङ्गूर' की ध्वनि स्पष्ट होती हैं । एङ्गले शुद्ध ‘' उच्चरित होता है, जिसमें नासिक का तनिक भी सहारः द लिया जाता । उस ‘अ’ के अनन्तर अनुस्वार उच्चरत होत हैं, जिसकी श्राचा 'कु' जैसी श्रुत देती है। स्वर के अन्तर श्रीने से ही अनुजार' । 'अनुल्लर'>अनुस्वार' । यो अनुस्वार स्वर से पृथक् है । इसी लिए 'अंगूर के ” को अनुस्वार' कहेगे--अनुस्वार के सहित । जो ट्रीज अलग हैं, वहीं साथ रह सकती है; परन्तु जे चीज स्वरूत है, उसके लिए वैसा न कहा जाएगा । किसी ऊँची या नंःची चीज से उसकी ऊँचाई या निचई की अलर स्थिति न । 'अनुनासिक' स्वरों की स्वरूपात चीज है, इसलिए "सानुललिक स्वर' कहा जाता है । *मधुर फल' की जह ‘समधुर फल ल बोता है ? अनुनासिक जितु हैं और अनुवार संज्ञा है । अंगूर में ३ ' के नन्तर अनुस्वार मालूम ड़ता है, वैसे हुई “अँगुली' या ‘अँगूठी में बालिक भी मालूम पड़ता हैं क्या है वहाँ भई वैसा शुद्ध “श्च पह्वले उचरित होता है , जिसमें ना ऊः सह कतई । हो ? फिर उस छ' के अन्तर कोई नासि बनि सुनाई पड़ती है क्या ? नहीं ! यह स्वरूपतः अनुनासिक उच्चरित होता हैं । इसी लिए इसे ‘सानुनासिक' नहीं, अनुदासिक' में कइले ६ ६ मासिकः यहाँ अनुस्यूत है। जैसे ‘अनुस्वार अ’ कहना गलत ,सानुस्वार ठीक; उनी दरडू सानुनासिक गलत, अनुनासिक अ’ सही है सभी स्वर अनुनानिक हो सकते हैं। दीर्घ स्वरों में अनु- नासिक भी दर्थं उछरित होगा-यात, दाँत ईट, छींट, ऊँट, बँटा, में, हैं, लड़कों को, औंध, भौंश्रादि । इसलिए इदः ही अनुनासिक का उच्चारण