पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१३८

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हिन्दी के गठन में विसर्गों का कोई स्थान नहीं है । रामः' के विसर्गों को हिन्दी ने 'अ' ( १ ) के रूप में पुविभक्ति बना लिया है और तद्रूप” संस्कृत शब्द विसर्ग-रहित यइ गृहीत होते हैं---‘रामः पिबति’-‘राम पीता है। इसी तरह ‘हरिः पठति'-‘हरिं पढ़ता है। श्रायुः ‘तेजः पयः' आदि शब्दों के विसर्ग हटा कर ‘अायु’ ‘तेज’ ‘प' आदि के रूप में निर्विसर्ग यहाँ लिए गए हैं । हाँ ‘प्रायः अादि संस्कृत-अव्यय यहाँ तद्रूप जरूर चलते हैं। या फिर संस्कृत के सामसिक शब्द मनःस्थिति' तेजोमय' आदि में विसर्ग या उस के रूपान्तर ( श्रो’ आदि ) चलते हैं । ‘मनस्तत्व’ ‘निश्चेतन' आदि संस्कृत तप सोमसिक शब्द हिन्दी में चलते हैं, जहाँ विस कै ‘स' तथा “श” रूपान्तर दिखाई देते हैं। वैठ हिन्दी शब्दों में विसर्ग कहीं न मिलेंगे । उस झंझट से अलग होने का ही परिणाम तो भापा-विकास है । कहाँ विसर्ग लगाश्रो, कहाँ न लगाओ; कहाँ उनको श्रो’ करो और कहाँ “स” या श” किंवा ५ करो; यह सब साधारण जनता के लिए बड़ा सिरदर्द है। इसी लिए वह झंझट हटा दी गई। हिन्दी के गठन से विसरों का कोई सम्बन्ध नहीं । हाँ. जो शिक्षित जन अपनी भाषा को संस्कृत के तद्रूप शब्दों से समृद्ध- गम्भीर करना चाहें, करें । वे विसर्गों का ययास्थित प्रयोग करें, करते ही हैं । परन्तु संस्कृत शब्दों में ही । ऊपर हमने हिन्दी के गठन में विसरों की चर्चा प्रसंगवश संक्षेप में कर दी है। आगे यह बिष और स्पष्ट हो जाएगा, जब

  • कारक' समझाए जाएँगे। मनः स्थिति आदि तत्सम शब्दों में ‘मनः

चलता है; परन्तु “प्रातिपदिक' रूपसे ‘भनः न आएगा; यानी विसंगन्ति कारक' हिन्दी में न होंगे। ‘मन चला गया की जगह 'सन; चलाया न होगा; ने 'मनः को नियन्त्रित करो’ चलेगा। ‘मन को हिन्दी है। इसी तरह सम्बन्ध और सम्वोधन में-‘मन का रूप’-‘मन, तु मानता क्यों नहीं होगा-‘मन’ कभी भी नहीं । विशेषणों में भी यही बात है । 'महामनाः' के विसर्ग अलग करके ‘महामना मालवीय'। जो बात बिसर्गों के सम्बन्ध में यहाँ कही गई है, वही व्यंजनों के सम्बन्ध में भी है। हिन्दी में सब कुछ स्वरान्त है। इस तरह स्वरों की चर्चा संक्षेप से की गई और इनके साथी ‘अयोग- वाह' ( अनुस्वार-विसग ) का भी उल्लेख किया गया । ‘अयोगवाह' स्वरों के ही अनन्तर आते हैं। अब वर्गों की दूसरी बड़ी जाति व्यंजन’ देखिए । पहले स्वतन्त्र स्वर, तब पराश्रित व्यंजन ।