पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१०१)

कभी-कभी. दो ऐसे वर्ण पास-पास आ जाते हैं कि मेले के लिए कोई तीसरा ही वर्ण' बीच में आ कूदता है ! यह भी सन्धि-परिणाम ही है ! ऐसी सन्धि में कभी-कभी वे दोनों वर्ग पूर्ववत् ( अपरिवर्तित ) रहते तो हैं, परन्तु बीच में तीसरे के आ जाने से समुदित रूप कुछ बदल जाता है; जैसे कि छत्रपति शिवा जी तथा औरंगजेब के बीच में उस समय जयपुर-नरेश आ गए थे और रंग कुछ बदल गया था ! कहलाना' आदि इसके उदाहरण हैं । प्रकृति ( कह ) तथा प्रत्यय ( न ) के बीच में लाने का आगमन । ‘कू’ कंठ, ‘अ’ कंठ, ‘ह कंठ और ‘अ’ या ‘अ’ कंठ ! “ह' इन में महा- प्राण ! तब्र बीच में “ल अा गया। कुछ कोमलतः आ गई। यह ‘ागम” कहलाता है । य, र, ल, व “अन्तःथ' हैं ही-बीच में श्री कूदते हैं ! हिन्दी में प्रायः सभी संज्ञाएँ, सर्वनाम, विशेषण तथा धातु आदि स्वरान्त हैं। व्यंजनन्त शब्दों की कोई स्थिति यहाँ नहीं । इस लिए लोप तथा अन्य सन्धियाँ प्रायः स्वरों में ही देखी जाती है । कहीं स्वर का लोप होने पर व्यंजन मात्र जब रह जाता है, तब पास के दूसरे व्यंजन से उसकी सन्धि जरूर होती देखी जाती है । अब, जब, कचे, तब अव्ययों से अव्यवहित परै यदि ‘ही अव्यय आए, तो उन अव्ययों के अन्य ‘अ’ का वैकल्पिक लोप हो जाता हैं। और तब अबशिष्ट ‘ब्’ तथा ( ‘डी’ का ) *ह मिल कर ‘भू? हो जाते हैं और यह ‘भू’ अपने उसी पुराने श्राश्रय ( ई ) में चिपट जाता है। तत्र रूप बन जाते हैं-अभी, जभी, कभी, तभी । यो व्यंजन-सन्धि भी देखी जाती है । कभी स्वर तथा व्यंजन दोनों का लोप हो जाता हैं। किसी को अन्त्य त्वर उड़ जाता है और किसी का आद्य व्यंजन शहीद हो जाता है । तब श्राद्य पद की अवशिष्ट अन्त्य व्यंजन आगे के स्वर में जा मिलता है। यह, वह, जो, कौन सर्वनामों से परे जब 'ने–'को' आदि कोई विभक्ति हो, तो ये इस, उस, जिस, किस जैसे रूप ग्रहण कर लेते हैं—इस के ही' ! यह ‘ही जोर देने के लिए आता है और इतना जोरदार है कि प्रकृति तथा प्रत्यय के बीच में जबर्दस्ती घुस बैठता है ! तब प्रकृति के अन्य स्वर ( ‘अ’ ) को लेकर यह छिप जाता है और अपने आश्रय ‘ई' को सामने रहने देता हैं ! तब अवशिष्ट अन्त्य ‘स इस 'ई' से जा मिलता है। रूप बन जाते हैं---‘इसी के, उसी के' इत्यादि । ‘किसी' से 'निश्चय' या 'श्रब्धारण नहीं “अनिश्चव’ प्रकट होता है। किसी को किसी के । कोई’ में ही नहीं है । 'ही' से निश्चय या अवधारण प्रकट होता हैं। पर कोई अनिश्चय-वाचक है। कौन' का

  • किस' रूप होता है, विभक्ति सासने होने पर। इसी तरह कोई' के प्रकृत्यंश