पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१५०

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( १०५ ) क्यों? “य् कहाँ गया ? क्यों गया ? वे तो कह देंगे कि “प्रयोग वैसे मिलते हैं। और प्रचलित प्रयोगों का ही अन्वाख्यान व्याकरण में होता है । यह तो भाषा से ही पूछना चाहिए कि तेरी ऐसी प्रवृत्ति क्यों है ? भाषा में (“हर्थि- इरइह यों ) द्विविध प्रयोग होते हैं; वही व्याकरण में कह दिया था ।” संस्कृत के वैयाकरणों ने जो कुछ कहा, वही यह भी कहा जा सकता है । हिन्दी के जायसी, कबीर, सूर, तुलसी, आदि ने “आई” “श्राए' जैसे प्रयोग ही किए हैं, 1 ‘यू झा नित्य लेप कर के | लल्लू जी लाल, सदल मिश्र तथा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आदि की भी प्रवृत्ति अाए-आई’ की श्रीर ही है। तो, क्या ये सब के सब पूर्ववर्ती साहित्यकार यह भी न जानते थे कि 'या' का बहुवचन है, आये हो ? वे ‘या’ का स्त्रीलिग गयी’ बनाना भी न जानते थे क्या ? क्यों वैसा हुआ ? ‘गये गयी’ प्रयोग क्यों नहीं मिलते ? उत्तर बहुत स्पष्ट है । उन लोगों ने प्राकृत भाषा में, जन-भाषा में, अपने-अपने ग्रन्थ लिखे हैं । वे उस भाषा के प्रकृत रूप को पहचानते थे । वे जानते थे कि भाषा में ( भाषा के शब्दों में ) एकरूपता सुखद होती है । उन्हें पता था कि “हथिह' की तरह गये’ रूप भी होता है; परन्तु एकरूपता उन्हें प्रिय थी; इस लिए सर्वत्र ‘नित्य लप' ही उनझी कृतियों में मिलता है। कारण, लोप ऐसी जगह हिन्दी में कहीं अनिवार्य भी है-- किया-की, पिया-पी, लिया-लीदिया-दी अादि । काम किया और बात की। पुंविभक्ति ‘अ’ को स्त्री-प्रत्यय 'ई' के रूप में आते ही क्रिया के “ब' ने इस 'ई' को देख लिया और उसके प्राण सूख गए ! दोनो समस्थानीय हैं, सवर्ण हैं; परन्तु स्वर प्रबल और व्यंजन निर्बल ! थ' की बोलती बन्द हो गई ! 'इ' 'ई' और ' के साथ मिलने पर यू' की स्पष्ट श्रुति नहीं होती । किसी छोटे छात्र को गया' बोल कर लिखवाइम्-‘गई लिख देगा । यही स्थिति गए’ की है; क्योकि 'ए' में भी 'इ' विद्यम है, जिसे “य' देख लेता है ! परन्तु उन्ह छात्रों के सामने आप शया' या ‘गयो' बोलें, वे इसी रूप में लिखेंगे । इसी नैसर्गिक प्रक्रिया से किया’ को ‘कियई होने पर यू' का लोप हो जाता है। यह नित्यलोप है; वैकल्पिक नहीं है यानी ‘क’ की जगह ‘कियी’ कोई कर नहीं सकता, न ‘दी’ को ‘दियो' । इकार या ईयर से परे भूतकाल के यू' प्रत्यय का नित्य लोप होता हैं, यदि परे ‘ई श्रा जाए। जब ‘यु’ का लोप हो जाता है, तब दोनो सवर्ण स्वर मिल कर एक बड़े ( दीर्घ ) रूप में भी जाते हैं । यानी