पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१५२

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काल-वाचक “जब तब अादि अव्यय में 'ही' क्या परिवर्तन करता है, पीछे बता आए हैं । कभी-कभी किसी विदेशी शब्द में भी चूर्णलोप अदि होता है। ‘खर दार' की चर्चा की जा चुकी है। स्वर-लोप भी होता है- यह वैकल्पिकृ लोप है । 'हर एक भी लिखते-बोलते हैं । ' का लोट्स नहीं होता। चार दिन से वह अदा नहीं हों चार्क' में 'ए' का लोप न समझ लीजिशा । यह ‘लाग” का अर्थ देनेवाला तद्धित प्रत्यय है, जो कि संख्या-वाचक तथा परिमा-वाचक शब्दों में लगता है। हिन्दी की अपनी चीज हैं । ‘धरीके हैं ठाड़े में यही प्रत्यय है । कि दूर हैं। में *ब्रू' अल्पथक है---‘बिलकुल थोड़ी दूर' । 'बहुतक कहाँ कहाँ ल' में कि स्वार्थि है-*बहुत त कहाँ तक कहूँ’ ! यानी, ऐसे स्थलों में एक के साथ समास तथा ‘ए’ का लोप ख्याल न कीजिए ! पांच-एक सात-एक प्रयोग ( लगभग के अर्थ में } गलत हैं । “लगभग सात जैसा कुछ लिखना चाहिए, या फिर ‘सात-पाँचक-ठक आदि लिखना चाहिए, जैसा कि कानपुर आदि में चलन हैं। था, ‘सात से कुछ ही झम’---‘सातक'। इसी तरह 'बीसक' आदि } बड़ा सुन्दर प्रत्यय है । इसके विपरीत है, आधिक्य प्रकट करने के लिए बीसों आदम जमा थे' । “बीसो' पृथक हैं । यहाँ केबुल इतने से मदलब कि 'क' प्रत्यय भिन्न चीज है, ' का लोप करके 'एक' यहाँ नहीं है। ‘क’ का ‘क’ होता, तो ‘पाँचक' का अर्थ ‘छह होता ! वर्ण-हानि ही नहीं, वर्ण-वृद्धि भी देखी जाती है । 'दीन' के सामने ( समास में ) नाथ चब श्रा जाता है, तो दीन के 'न' में स्थित दीनं हो जाता हैं। दीननाथ = दीनानाथ इसी तरह मूसल-सी धार' के अर्थ में- मूसल + धार = मूसलाधार कभी-कभी मू’ का ऊ' ह्रस्व भी हो जाता है—‘मुसलधार' । संस्कृत में जैसे ‘विश्वामित्र', उसी तरह हिन्दी में दीनानाथ श्रादि हैं।