पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१५७

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११२ ) भी हैं, यद्यपि स्वर या व्यंजन थे नहीं हैं, “अथोगवाह हैं । कहना चाहिए किं स्वर-व्यंजन से अतिरिक्त वर्गों का यह एक तीसरा, छोटा सा, परन्तु मह- त्वपूर्ण भेद है ? जब स्वर या स्वरों में रूज-परिवर्तन वैसी स्थिति में होता है, तो स्वर- सन्धि” कहलाती है, जैसे---‘जा +इ=जार और • “पढ़+ इ + पढ़े । जब व्यंजन या व्यंजनों में रूपान्तर हो, तो 'व्यंजनासन्धि' जैसे कि 'ब' के ‘अ’ का लोप होने के बाद “अम् +ही-अभी' । यही स्थिति संस्कृत में भी है। जब विसर्गों का रूपान्तर अन्य शब्द के अव्यवहित सान्निध्य से होता है, तो उसे ‘विसर्ग-सन्धि' कहते हैं । संस्कृत में ‘मन’ ‘तेजः श्रायुः शादि नपुंसक-लिंग शब्द विसर्गान्त हैं, जिनके सन्धियुक्त रूप 'मनोरथ’ ‘मनः- स्थिति’ ‘तेजोमय' आदि होते हैं। ये समसयुक्त और सन्धि-सहित रूप ऐसे के ऐसे ( तद्रूप ) हिन्दी में भी चलते हैं। देख रहे हैं कि विसर्ग ( मनोरथ? में ) *श्रो' के रूप में है और तेजोमय में भी यही स्थिति है, परन्तु मनः स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं है। तो, ‘मनोरथ' तथा 'तेजोमय में विसर्ग सन्धि है। ‘अन्तर्जगत् में २’ अप देख रहे हैं, जो कि ‘अन्तःकरण में विसर्ग लिए है। संस्कृत की इन सन्धियों के बारे में हिन्दी की अपनी रुचि क्या है, आगे देखने के लिए ही अह उपक्रम है। कारण, संस्कृत को सन्धिय सार्वभौम स्थिति रखती हैं.–थे जैसे हिन्दी में चलती हैं, उसी तरह अन्य सभी भारतीय भाषाओं में भी । यह पुस्तक छोटे बच्चों के लिए नहीं है कि अति - श्रावश्यक-अत्यावश्यक' आदि का विस्तार अपेक्षित हो; या ज्ञान +इन्द्र ज्ञानेन्द्र' समझाया जाए। प्रसिद्ध बातों का उल्लेख न किया जाएगा । संस्कृत की सभी सरल सन्धियाँ हिन्दी में चलती हैं। सवर्णदीर्घ-का- देश' सन्धि ज्ये, की त्यों गृहीत हैं----‘रामाश्रम' आदि। एक अन्तर है। संस्कृत में ऐसी जगह सन्धि की अनिवार्यता अनुशासन-सिद्ध है, जिसे हिन्दी त्रिकों से अवा करती है। संस्कृत में समस्त पद बिना सन्धि किए ‘राम-अरश्रम” यी लिखा जाए, तो गलत समझ जाएगा । ‘नित्या समासे संहिता'-समास में सन्धि करना जरूरी है। परन्तु हिन्दी में ऐसी जगह सन्धि की अनिवार्यता नहीं है---राम-श्रम भी चलेगा। और, इससे भी बढ़ कर, काही समास में सन्धि करने का एकदम निषेध हिन्दी में है। जब किसी