पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१६३

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( ११८ ) सारांश यइ कि क्लिष्टता से बचने की प्रवृत्ति है। परन्तु संस्कृत के सामासिक अत्याचार आदि ( तद्रूप ) शब्दों में ई हेर-फेर नहीं कर सकता । वैसा करने पर अर्थ का अनर्थ हो सकता है । सञ्चित’ का’ ‘संचित ( अर्द्धतत्सम रूप ) और पण्डित' का ‘पंडित' चलेगा ही। परन्तु वाङ्मय ज्य का ल्यो रहेगा; यद्यपि 'शङ्कर-शंकर' दोनों चलेंगे । इस तरह सुक्षेत्र में वर्ण-सन्धियाँ इस प्रथम अध्याय में देखी-सुनी गईं। अब अगले अध्याय में शब्दों का था पदों का सामान्य परिचय और फिर प्रति-अध्याय पदों के एक-एक विशेष वर्ग का निरूपण होगा । अन्त में वाक्य-विश्लेषण श्राएगा। वैसे, पहले बाक्य, फिर पद और अन्त में बर्ण का निरूपण ठीक जान पड़ता है; परन्तु सभी व्याकरणों में युक्रम से वृणे, पद, वाक्य रखे गए हैं। हमने भी ऐसा ही रखा है। क्या बिगड़ता है ? उधर से न सही, इधर से ही सही ।। सो, प्रथम तथा द्वितीय अध्याय सामान्य-निरूपण के हैं, शेष सब विशेष निरूपण-परक }