पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१७३

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ब्रजभाषा तथा राजस्थानी में पैविभक्ति 'ओ' लग कर इन तद्धित-प्रत्ययों के रूप को’ ‘नो रो’ हो जाते हैं। राम का, अपना, तेरा और राम को, अपन, तेरो । वहुवचन में हिन्दी में ‘अ’ को ‘ए’ हो जाता है---राम के, अपने, तेरे । राजस्थानी में बहुवचन प्रकारान्त हो जाता है; पर ब्रजभाषा में एकारान्त, खड़ी बोली की तरह ! यह सब आगे स्पष्ट होगा । तद्धित सम्बन्ध-प्रत्यय के रूप बदलते हैं- स्वदीयः बालकः -- तेरा लड़का त्वदीयाः बालकाः - तेरे लड़के त्वदीया बालिका - तेरी लड़की परन्तु विभक्ति का रूप नहीं बदलता--- तव बालकः, तव बालकाः, तब बालिका सर्वत्र ‘तव' है, कोई परिवर्तन नहीं। त्वदीय' आदि में 'ईय’ तद्धितीय चीज है, सम्बन्ध प्रकट करने के लिए। उसी में विभिन्न विभक्तियाँ या प्रत्यय लगा कर एकवदन-बहुवचन तथा पुं०-स्त्री रूप प्रकट करते हैं । त्वदीयः’ और ‘त्वदीया श्रादि की ही तरह हिन्दी का तेरा-तेरी' आदि हैं। इसी तरह राम का, राम के, राम की आदि हैं, और अपना, अपने, अपनी भी । यानी ये तद्धित-प्रत्यय हैं--क, र, न, । इल के सम्बन्ध में आगे काहेंगे। यहाँ इतना समझिए कि ये विभक्तियाँ नहीं हैं। विभत्वि का रूप बदलती नहीं है। हिन्दी की 'ने' को 'मैं' से' आदि विभक्तियाँ सदा एक- रूप रहती हैं। इसी तरह एक-रूप रहने वाली हिन्दी की के, रे, ने ये तीन सम्बन्ध-विभक्तियाँ हैं। 'रे' केवल म० उ० सर्वनामों में लगती है और ‘ने’ केवल 'आप' शब्द में । 'के' त्रिभक्ति (उपर्युक्त दोनों विभक्तियों के विषय को छोड़ कर ) सर्वत्र चलती है। इन विभक्तियों में भी कभी कोई परिवर्तन नहीं होता, सदा एक-रूप रहती हैं- रश्म के एक लड़का है–रासस्य एकः पुत्रः अस्ति राम के एक लड़की है-रामस्य एका पुत्री अस्ति राम के चार गौएँ हैं—भिस्य चतस्रः गावः सन्ति | सर्वत्र ‘राम के–‘बालकस्थ' हैं, ने वचन-भेद से रूप-भेद, न लिङ्ग-भेद से ही । इसी तरह-२' विभक्ति---