ब्रजभाषा तथा राजस्थानी में पैविभक्ति 'ओ' लग कर इन तद्धित-प्रत्ययों के
रूप को’ ‘नो रो’ हो जाते हैं। राम का, अपना, तेरा और राम को,
अपन, तेरो । वहुवचन में हिन्दी में ‘अ’ को ‘ए’ हो जाता है---राम के,
अपने, तेरे । राजस्थानी में बहुवचन प्रकारान्त हो जाता है; पर ब्रजभाषा
में एकारान्त, खड़ी बोली की तरह ! यह सब आगे स्पष्ट होगा । तद्धित
सम्बन्ध-प्रत्यय के रूप बदलते हैं-
स्वदीयः बालकः -- तेरा लड़का
त्वदीयाः बालकाः - तेरे लड़के
त्वदीया बालिका - तेरी लड़की
परन्तु विभक्ति का रूप नहीं बदलता---
तव बालकः, तव बालकाः, तब बालिका
सर्वत्र ‘तव' है, कोई परिवर्तन नहीं। त्वदीय' आदि में 'ईय’ तद्धितीय
चीज है, सम्बन्ध प्रकट करने के लिए। उसी में विभिन्न विभक्तियाँ या
प्रत्यय लगा कर एकवदन-बहुवचन तथा पुं०-स्त्री रूप प्रकट करते हैं ।
त्वदीयः’ और ‘त्वदीया श्रादि की ही तरह हिन्दी का तेरा-तेरी' आदि
हैं। इसी तरह राम का, राम के, राम की आदि हैं, और अपना, अपने,
अपनी भी । यानी ये तद्धित-प्रत्यय हैं--क, र, न, । इल के सम्बन्ध में आगे
काहेंगे। यहाँ इतना समझिए कि ये विभक्तियाँ नहीं हैं। विभत्वि का रूप
बदलती नहीं है। हिन्दी की 'ने' को 'मैं' से' आदि विभक्तियाँ सदा एक-
रूप रहती हैं। इसी तरह एक-रूप रहने वाली हिन्दी की के, रे, ने ये तीन
सम्बन्ध-विभक्तियाँ हैं। 'रे' केवल म० उ० सर्वनामों में लगती है और ‘ने’
केवल 'आप' शब्द में । 'के' त्रिभक्ति (उपर्युक्त दोनों विभक्तियों के
विषय को छोड़ कर ) सर्वत्र चलती है। इन विभक्तियों में भी कभी कोई
परिवर्तन नहीं होता, सदा एक-रूप रहती हैं-
रश्म के एक लड़का है–रासस्य एकः पुत्रः अस्ति
राम के एक लड़की है-रामस्य एका पुत्री अस्ति
राम के चार गौएँ हैं—भिस्य चतस्रः गावः सन्ति
| सर्वत्र ‘राम के–‘बालकस्थ' हैं, ने वचन-भेद से रूप-भेद, न लिङ्ग-भेद
से ही । इसी तरह-२' विभक्ति---
पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१७३
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