पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१७६

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  • त्वदीयाः चतरूः गावः सन्ति'

त्वदीयः कन्या जाता ऐसे प्रयोग सुम्भव नहों । प्रत्य-अत; यों होते हैं- तेर लद्दकी पढ़ता है—ददीयः पुत्रः पठलि | तेरी लड़की पढ़ती है-त्वदीया कन्या पठति यानी भेद्य के सम्बन्ध में कुछ विशेष विज्ञान करना हो, तो तद्धित- मूल्य अदा हैं; अस्तित्व यः उचित्र विज्ञ हो, सो सम्बन्ध-किनकि । संस्कृत में भी अस्तित्व-उत्पाद की दिशा में विभक्त ई ई है. प्रय नहीं । * पुनः जा' की जड़ में नः वदीयः पुत्रः जातः' न होगा ।

  • तव चतलः गावः नान्सि” की जगह ‘वद्यः इतनः गाः सन्ति न होगः ।।

याँ तक दो त र हिन्दी में प्रयोग-युम् । परन्तु ऋगे भेद है । भेद्य के सुन्बन्ध में कुछ विशेष कहना है, तो हिन्दी विभक्ति का नहीं, तद्धित-प्रत्यय का इंः उपयोइ करती हैं । 'तर लड़कं पढ़ा हैका ज ल लड़की पड़ती है। कभी भी न झा; परन्तु संङ से, ऐसी जगह द्विबिंध प्रयोग होते हैं-दर्द या पुत्री पति’---‘तव पुत्री पठति । हिन्दी में ऐसी जगह प्रत्यय ही रहे---“तेरी लड़की पड़ती है। जब अस्तित्व या उत्पत्ति की विवक्षा में विभक्ति ही रहती है, सम्बन्ध-प्रत्यय नहीं; तो फिर अन्यत्र एकमात्र सम्बन्ध-प्रत्यय को ही अधिकार दे कर हिन्द ने अच्छा अथः । पर्छ विषय-भेद हो या । बस, संस्तु से ह इतनी विशेषता | हाँ, यदि सम्बन्ध आदि पर जोर देना हो, तो 'है क्रिया झी उपस्थिति में भी सम्झन्ध-प्रत्यय श्रागा---'यह राम का लड़का हैं । यहाँ सम्बन्ध पर जोर हैं। इस तरह यह् राम की गई हैं। ३ पुस्तकें मेरी है अदि समझिए । ॐछ के नन्तर भेदक “मेर’ ले से और अधिक जोर; गुनी किसी दूसरे की है नहीं । ‘राम की गौं वह है थहाँ ‘बई' पर जोर है ।

सम्बन्ध में ‘भेद्य' और 'भेदक

अभी ऊपर भेट्स' शब्द आया है । साधारणतः लोग भेद्य' कहते हैं। विशे’ को श्रौर ‘भेदरू' कहते हैं 'विशेष' को । विशेष्य' तथा 'विशेष शब्दों केर हते भी ये दो अन्य शब्द दिशेष प्रयोजन से हैं । ‘लाले झूल' झैं लाल विशेषण है और ‘फूल' विशेष्य । परन्तु अत्र फिी विशेष सम्बन्ध को ले कर य६ विशेश्य-विशेष भाव होता है, तब भेद्य-भेदक इन्हें कहते हैं । “दुष्प