पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१३३)

“तुम' प्रकृति बहुत्व प्रकट करती है; पर कपड़' एक ही है: इस लिए “तुम्छा कड़ा । मैं एक बच पर ‘मेरे में बहुवचन है। क्योंकि भेद्य ‘कपड़े है। मैं एक और मेरे कई बहुत ! संस्कृत में भी यही हैं--- युष्मदीयं बलम् ( तुम्हारा कपड़ा ) मानि चलाए- मेरे कपड़े )। सर्वत्र ‘भेद्य' का अनुवर्तन है ‘भेदक’ है । | यह हिन्द की { के, २, ३ } इन सम्न्ध -विभक्षियों का ऑर ( ६, र, न} इन तद्धितीय सन्ध-भल्य कः संक्षेप में इरिचय है।

हिन्दी की 'इ' संश्लिष्ट बिमुक्ति

35 त्रिभक्ति युइ, यह, जो, एक सर्वनाम में वह रात है, हाँ अन्य शब्दों में के लगती हैं । इन सुनाम में भी इस का वैकल्पिङ प्रो' है। इ-इसकी, उले-उल को, जिसे-जिनु , यो द्विविध इस यथा-सचि या यथावश्यक होते हैं । 'तु-दुम' तथा 'मैं-हस' में भी इसका प्रयोग उडी तरह होता है। विभक्ति लगने पर वह ऋदि को ‘उस दि रूप मिलता है, उसी तरह हैं ” को सुझ-सु-के- मुझे-मुझको । उसे तथा “तुझे अादि में गुण-सन्धि; 'अ' तथा 'इ' मिल कर 5। बहुवचन में प्रकृति तथा इस 'इ' प्रत्यय ॐ वैच में एक है' विकरा आ जाता है । प्रकृति-प्रत्यय के लंच में आ जाने काल रद बिकरा' कहलाना है । बहुवचन में, विभक्तिं ३२ हो, तब यई, वह ब्रादि के इन-उन ऋदि इ. वादा है। *तुम’ ‘म’ के त्यों रहते हैं। ऐसा जान पड़ता है कि अनु- नाभि से वर-सूजन की व्यापक प्रवृति हैं। छल्ति-सन्ति', अति-भवन्ति आदि में ‘न्’ से बच सूचित होता है । ‘रालान्’ ‘माम् अादि में भी न्’ ‘’ के दर्शन ६ ६ ६ हैं जैसे हिन्दी क्रिया में अनुनाशिक व्यंजन छी जह } वर अनुनासिक कर दिए गए हैं। उसी तरह यह हः । 'इन'-उन' कर दिया जाता हैं । “तुम ‘इम' में ‘म’ पहले से ही है; इस लिए अन्य अनुदासिल की जरूरत ही नहीं । हाँ, इ” को अनुनासिक रूप ६ ६ ) अवश्य प्राप्त हो जाता है-- इन्हें-इनको, उन्हें-उन को

  • तुम्हें-नुम को, इसे-इझ को