पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१८१

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लीजिए । वैदिक संस्कृत में “ताति' भाववाचक प्रत्यय है, जिसका उल्लेख पाणिनि भगवान ने भी किया हैं। ‘शिवतातिः' जैसे प्रयोग वेदों में हैं । अाज कल की प्रचलित संस्कृत में “शिव हैं, “शितः” है; ‘शिवतातिः' नहीं है । सम्भव है, ‘ताति' का घिसा हुअा रूप ही ‘ता' हो । जनभाषा में ( ‘ति' से ) व्यंजन-लोप और स्वर दीर्घ करके 'ताई' आ --‘मूरखताई' । संस्कृत में

  • सुन्दरताई असम्भव है। ऋग्वेदे च कर “ताई’ को ‘ता' भी विकल्प से

लुप्त हो कर एक ई स्वतन्त्र भावाचक प्रत्यय बन गयः-‘बुद्धिमानी । कहीं ‘हा-ई' के ‘ता’ का व्यंजन मा लुप्त हुआ और 'ई' प्रत्यय बन गया-चतुराई । ताति' झा ई' जल जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है । नुषा' का जब पंजाबी में ‘नू' { बहू ) मन गया, तब ताति' का ई’ भी सम्भव है । प्र झा घो' तथा 'दश' का ‘डश’ देखिए---‘दोश' । अंग्रेजी के बैन्टी' * *टैन टू' दशकद्वय) क्या बन गए हैं ? भाषा का प्रवाह है। सो, “मेभिः' वैदिक प्रयोग से हिन्दी की ‘हिं असम्भव नहीं है ।

कारक-विचार

झिया के साथ जिसका सीधा सम्बन्ध हो, उसे कारक' कहते हैं - ‘क्रिया- न्वयित्वं कारकत्वम् । ‘राम पानी पीता है। वाक्य में पता है' शब्द एक क्रिया का वाक है । किसी द्रव पदार्थ को मुँह में ले कर गले के नीचे उतार लेना, एक क्रिया है। इस क्रिया के अर्थ में हिन्दी की जी' धातु संकेतित है, जिसका वर्तमान काल में प्रथम पुरूप इकवचन का रूप जीता है' शब्द है। क्रिया-वाचक होने से इसे क्रिया-पद' या क्रिया-ब्द' कहते हैं । वाच्य-वाचक का अभेद कर के केवल *क्रिया भी ऐसे शब्दों को इ तो, ‘म पानी पीता है' इस वाक्य में वह ‘क्रिया’ फन कर रहा है । राम कर रहा है, यानी जिस व्यक्ति का नाम 'रास हैं, वह पानी पी रहा है ।। तो, दृह व्यक्ति ‘कर्ता कारक हुथी। वही उस क्रिया के कारने-न करने में स्तन्त्र है । स्वतन्त्रः कत' ! क्रिया के करने-न करने में जो स्तन्त्र हो, उसे कत' कहते हैं। जो करता है, बद्दी छत है । क का क्रिया से सीधा सम्बन्ध है, इस लिए यह कारक हु “छत कारक' । कत के अनन्तर दूसरा कारक है 'कर्म' । सकर्मक क्रियायों में कर्म मिले; अकर्मक क्रियाओं में ( 'राम सोता हैं। श्रादि में ) कर्म होता ही