पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१८७

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( १४२ ) बालक को अच्छी पुस्तक पढ़नी चाहिए हमें बेद अश्य पढ़ना चाहिए तुम्हें दिन में न सोना चाहिए हमें आपस में लड़ना न चाहिए छात्रों को प्रेम से रहना चाहिए क्रिया भूतकाल की यदि अकर्मक हो, तब भी उसमें कोई विभक्ति नहीं लगती--- लड़का सोया-लड़के सो | लड़की सोई-लड़कियों सोई परन्तु क्रिया यदि सकर्मक हो, तो ‘कृत' में 'ने' विभक्ति लग जाती है। लड़के ने पुस्तक पढ़ी। लड़कियों ने पुस्तक पढ़ी । इस में एक अपवाद है। अदि सकर्मक क्रिया गत्यर्थक हो, तो फिर ‘कता निर्विभक्तिक ही आता है- राम काशी गया’--‘लुड़की वृन्दावन गई काशी' तथा 'वृन्दावन' में हैं, अधिक नहीं हैं ! म काशी में पढ़ता है लड़की बृन्दावन में रहती है। वहाँ ‘काशी-वृन्दावन’ अधिकरण हैं। ऊपर के उदाहरण में यह बात नहीं है । तो, गत्यर्थक सकर्मक क्रियाओं के भी कर्ता निर्विभक्तिक रहते हैं, चाहे क्रिया भूत काल की ही हो । हिन्दी ने यहाँ संस्कृत - व्याकरण का पूर्ण अनुराम किया है, जो ‘वाच्य-प्रकरण में अधिक स्पष्ट हो जाएगा । संस्कृत का ( भूतकाल में ) “त' । “क्त' ) प्रत्यय 'य' बन कर हिन्दी में आ गया है। नियम-चलन सब वैसा ही है। तृतीय एकवचन ( बालकेन) को ‘इन’ वर्ण-व्यत्यय तथा गुण-सन्धि से हिन्दी में 'ने' बन गया है। जहाँ ( कृदन्त भूतकाल में ) संस्कृत तृतीया विभक्ति कत में लगाती है, वहीं हिन्दी अपनी ने’ विभक्ति का प्रयोग करती है। अन्यत्र नहीं--- बालकः सुप्तः—लड़का सोया बालिका सुप्ता-लड़की सोई