पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१९

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जो मणिकांचन योग है उसे कभी कभी लोग अक्खड़पल मान लेते हैं। मैंने उन्हें जितनी ही निकट से देखा है उतना ही उनके फक्कड़ स्वभाव के प्रति मेरा अकर्षण बढ़ा है। इस पुस्तक के कई प्रसंग में उन्होंने बड़े धैर्थ के साथ मुझे अपनी बात समझाई है, झुंझलाह बिल्कुल नहीं, पर सब समय उनकी बात मैं ठीक से समझ नहीं सका । जब भी मैंने कुछ समझकर उनकी बात मान ली तभी उनका चेहरा आनंद से खिल उठा। मेरा दुर्भाग्य यह रही कि मैं फई अवसरों पर उनको आनंदोद्दीप्त नहीं देख या मगर वाजपेयी जी हार माननेवाले नहीं हैं। उन्हें पूरा विश्वास हैं कि किसी शुभ मुहूर्त में मेरा रहा-सहा भ्रम भी दूर हो जाएगा । वाजपेयी जी का यह ग्रंथ हिंदी व्याकरण को एक नये परिपाश्र्व में देखने का अलोक देता है । यह इसकी बड़ी भारी विशेषता है। शास्त्रीय विचार- पद्धति में निष्कर्ष की अपेक्षा निष्कर्ष तक पहुँचने की प्रक्रिया महत्वपूर्ण है । बाजपेयी जी का यह प्रयत्न निश्चित रूप से सहृदय विद्वानों को सोचने को बाध्य करेगा । मुझे इस बात का खेद है कि वाजपेयी जी की प्रतिभा का यथोचित सम्म हिंदी संसार ने नहीं किया है। उनके पास अभी देने योग्य बहुत सामग्री है। नागरीप्रचारिणी सभा ने इस ग्रंथ के रूप में उनकी प्रतिभा का एक अंश हिंदी संसार के सामने रखा है। अन्य संस्थाओं को भी उसकी उपयोग करना चाहिए। मेरा विश्वास है कि इस पुस्तक से हिंदी व्याकरण को एक नई दिशा प्राप्त होगी । अभी तक जो व्याकरण लिखे गए हैं वे प्रयोग-निर्देश तक ही सीमित हैं। इस पुस्तक में पहली बार व्याकरण के तत्वदर्शन का स्वरूप स्पष्ट हुआ है। --- हजारीप्रसाद द्विवेदी