पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१९३

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( १४८ ) वस्तुतः सभी अपवाद में कोई न कोई कारण अवश्य होना चाहिए, भले ही हम उसका पता न लगा सकें । परन्तु थे सब बातें प्रायः निरुक्त से सम्बन्ध रखती हैं। बहुत आवश्यक होने पर यहाँ ‘ला की चर्चा इतनी की गई । इससे हिन्दी का वैज्ञानिके गठन सामने आ जाता है। कैसी नियमबद्ध भाषा है ! सो, इस ने’ विभक्ति का प्रयोग-क्षेत्र बहुत छोटा और बहुत स्पष्ट है। २--को' हिन्दी की यह ‘को' विभक्ति बहुत अधिक प्रभाव-क्षेत्र रखती है। इस का भी निकास-विकास प्राकृतधारा से है । को' का प्रयोग जहाँ होती है, वहीं सर्वनामों में 'इ' संश्लिष्ट विभक्ति का भी ( विकल्प से } होता है; यह पीछे कहा जा चुका है। कता-कारक में को' विभक्ति लगती है, जब कि क्रिया कृदन्त हो और

  • अवश्यकर्तब्यता' या क्रिया की अनिवार्यता प्रकट करनी हो-

१--राम को अभी चार विषय तयार करने हैं। २- मा को ( सवेरे ही उठ कर ) दही बिलोना है। ३-तुम्हें कल स्टेशन जाना है। ४—किसी भी तरह हमें परीक्षा में बैठना ही है। और- १---तुम्हें पाँच रूप दण्ड भुगतना ही होगा। २-राम को अब स्कूल से निकलना ही पड़ेगा ३- लड़कियों को ईघर से न जाना होगा । ४-हम सब को अपने कर्मों का फल भोगना है । नीचे के उदाहरणों में कर्ता की परवशता ध्वनित होती है-यह काम उसे करना ही होगा । | ‘मन’ आदि के योग में ‘न' या इसके पर्याय शब्दों के कर्तृत्व में कर आदि धातुओं की क्रियाएँ आएँ, तो उन भाववाचक संज्ञाओं में ‘को' विभक्ति लगती है, जिनसे ‘मन’ आदि का सम्बन्ध हो- १-वेदान्त पढ़ने को मन करता है। २-अापके साथ कुछ दिन रहने को चित चाहता है